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    बसपा की महारैली: मायावती की घोषणाएं, निशाने और सेल्फगोल

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    कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर लखनऊ में आहूत बहुजन समाज पार्टी की महारैली देखने लायक थी. अपार भीड़. बेहिसाब गाड़ियां, राज्य और देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग. अनुमान लगभग दो लाख लोगों की मौजूदगी का. दावा पांच लाख का. लखनऊ में इस तरह की भीड़ और महारैली इससे पहले भी मायावती के नाम ही दर्ज हो शायद. और फिर लगभग चार साल बाद मायावती लोगों के सामने थीं. मुखातिब. वही परिचित अंदाज़. मंच के बीच में अकेली कुर्सी, हल्के रंग का सूट, लिखा हुआ भाषण. सामने नीले रंग में रंगा अपार जनसमूह.
     
    इस रैली की तीन प्रमुख बातें थीं. एक लंबे भाषण की शुरुआत में ही सपा को घेरते घेरते मायावती योगी सरकार की तारीफ कर गईं. बाद में सरकार की आलोचना की. कानून व्यवस्था पर घेरा, मंदिर मस्जिद और आई लव पर घेरा. लेकिन तबतक देर हो चुकी थी. जिस बात को शायद आखिर में आभार जैसा कहना था, शुरुआत में आ गई थी और मायावती का संबोधन योगी सरकार की तारीफ के तौर पर प्रचारित हो गया.

    दरअसल, मायावती सपा कार्यकाल पर आरोप लगा रही थीं कि उन्होंने दलित नायकों के स्मारकों का पैसा दबा लिया. इससे बेहतर तो योगी सरकार है जिसने बसपा के अनुरोध पर पार्कों में आने वालों के टिकट का पैसा इन स्मारकों की मरम्मत पर खर्च किया.

    दूसरी अहम बात थी मायावती के भतीजे आकाश आनंद की प्रभावी लॉन्चिंग. मायावती के भाषण से ठीक पहले आकाश आनंद का भाषण हुआ. उन्होंने मायावती को पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनाने के लिए आह्वान किया जिसका गर्मजोशी से स्वागत हुआ. और मायावती के बायीं ओर लगाई गई सामान्य कुर्सियों में पहली कुर्सी आकाश आनंद की ही थी. मंच से मायावती के भाषण से पहले जो नारे लगे उनमें भी आकाश आनंद ज़िंदाबाद की गूंज रही. इतना ही नहीं, मायावती ने अपने भाषण में कहा कि जैसे आप लोगों ने कांशीराम के बाद मेरा साथ दिया है, वैसे ही मेरे बाद आकाश आनंद का साथ देना है. यानी आकाश आनंद का ये प्रॉपर लॉन्च भी हो गया और मजबूत कम-बैक भी. उत्तर प्रदेश की बसपा इकाई में उन्हें लेकर जो थोड़ी बहुत खींचतान थी, उसका भी आज अंत हो गया.
     
    वैसे लॉन्च केवल आकाश आनंद नहीं हुए, मायावती के मंच पर उनके सबसे करीबी समझे जाने वाले बसपा नेता एडवोकेट सतीश चंद्र मिश्र भी मौजूद थे. लेकिन लॉन्चिंग हुई इनके बेटे कपिल मिश्र की. मायावती ने उनके कामकाज की तारीफ भी की और पार्टी के लिए उनके योगदान की सराहना भी की. जातीय समीकरण को साधने के लिए मंच पर सतीश चंद्र मिश्र के अलावा उमाशंकर सिंह भी मौजूद थे और उन्हें भी अगली पंक्ति की कुर्सियों पर जगह दी गई थी.

    तीसरी अहम बात है शक्ति प्रदर्शन. इस रैली की तैयारी पार्टी की ओर से पिछले कुछ महीनों से चल रही थी. पार्टी के कामकाज को जो लोग जानते समझते रहे हैं, उन्हें पता होगा कि मायावती साइलेंट एक्टिविज्म वाली रणनीति पर चलती हैं. बसपा का काम और लामबंदी दिखाई नहीं देती. लेकिन वो अपने पारंपरिक वोटरों के बीच बहुत समझदारी के साथ संपर्क बनाती हैं और मोबलाइज़ करती हैं. लेकिन अगर केंद्रीय स्तर पर एक आवाज़ लंबे समय तक सुनाई न दे तो राजनीति में इसके संदेश गलत जाते हैं. केवल पारंपरिक वोटरों के दम पर राजनीति में सत्ता मिलती नहीं. और जिन्हें जोड़ना है, उन्हें सार्वजनिक संदेश देना ज़रूरी होता है. गुरुवार की महारैली उस लिहाज से काफी महत्वपूर्ण थी. यहां से एक संदेश मायावती ने अपने कार्यकर्ताओं, वोटरों और प्रतिद्वंद्वियों को देने की कोशिश की है.

    “लड़ूंगी, अकेले लड़ूंगी, लड़ना और जीतना है, आप लोगों को बहन जी को फिर से सत्ता में लाना है, गठबंधन की तीन सरकारें कार्यकाल पूरा नहीं कर सकीं और पूर्ण बहुमत में आए तो टिके भी, अच्छा काम भी किया…”, ऐसी कई बातें मायावती ने अपने भाषण में कहीं. लेकिन सबसे अहम था पीडीए पर गुस्सा. अखिलेश को दोगला और कांग्रेस को हवा-हवाई बताती रहीं मायावती. 

    हमला केंद्र पर भी था. “मुफ्त का अनाज लोगों को गुलाम और लाचार बनाने के लिए है. ईवीएम में धांधली करके बसपा को चुनाव जीतने से रोका गया. आज उसी ईवीएम पर सवाल उठ रहे हैं. संभावना है कि आने वाले समय में चुनाव वापस बैलेट पेपर पर हों. लोगों को मजहब के नाम पर लड़वाया जा रहा. घोषणा पत्रों के आधे से अधिक वादे अधूरे हैं”, ऐसे कई तल्ख हमले मायावती ने केंद्र पर भी किए.

    लेकिन “संविधान हाथ में लेकर किस्म किस्म की नाटकबाज़ी कर रहे हैं..” से लेकर “सपा का चरित्र दोहरा और दोगला, सत्ता में रहते हुए पीडीए याद नहीं आता. दलित आदर्शों के नाम पर बने शहरों के नाम वापस कर दिए, योजनाएं बंद कर दीं” जैसे हमले सबसे तीखे थे. अंबेडकर से लेकर दलित राजनीति के नायकों का अपमान करने का आरोप मायावती ने कांग्रेस और सपा पर लगाया. इसके पीछे मायावती के पास पर्याप्त कारण भी हैं.

    दरअसल, मायावती की सूबे में लड़ाई भाजपा से है नहीं. वर्चस्व और प्रभाव को वापस पाने की जद्दोजहद कर रही बसपा के लिए सबसे ज़रूरी उस ज़मीन को बचाना है तो 2024 के आम चुनाव के बाद से खिसकती नज़र आ रही है. पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक का अखिलेश फार्मूला मायावती के वोटबैंक में डायरेक्ट सेंध था. इसका खामियाजा मायावती और बसपा को उठाना पड़ा है. यही कारण है कि मायावती भाजपा और केंद्र सरकार से ज्यादा समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के खिलाफ मुखर रही हैं. गुरुवार की रैली में उसे उन्होंने और मजबूती से दर्ज किया.

    लेकिन पीडीए पर हमलावर मायावती योगी सरकार की तारीफ करके एक बड़ी चूक कर गईं. मायावती पर विपक्षी दल भाजपा के साथ भीतरखाने मिले होने का आरोप लगाते रहे हैं. ये आरोप भले ही बेबुनियाद हों, योगी सरकार की तारीफ से शुरू हुआ भाषण इस आरोप की गवाही के तौर पर देखा जा रहा है. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मायावती के भाषण में यह सेल्फ गोल जैसा था.
     
    दूसरा बड़ा नुकसान यह है कि पश्चिमी यूपी से लेकर पूर्वांचल तक मायावती के साथ खड़े होने वाले मुस्लिम वोटरों के लिए भी योगी सरकार की ये तारीफ गले न उतरने वाली बात साबित होगी. इस महारैली से जो बड़ा संदेश मायावती अल्पसंख्यकों को दे सकती थीं, वो न केवल उससे चूक गईं बल्कि उन्हें अपने से दूर करने वाला संदेश दे बैठीं.

    राजनीति में कहे गए से भी ज्यादा हावी वो धारणा हो जाती है, जो मायने के तौर पर समझी जाती है. बसपा अब भले ही सफाई देने की कोशिश करे, लेकिन एक डैमेज तो इस महारैली में हो चुका है. हालांकि राजनीति में समय बहुत मायने रखता है. सूबे के चुनाव अभी डेढ़ साल दूर हैं. तबतक मायावती इन मुद्दों पर क्या कहती और करती हैं, ये मायने रखेगा. 

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