पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लंबे समय से संकट से गुजर रही है, जिसका बड़ा कारण उच्च विदेशी कर्ज, ऊर्जा की कमी, इंफ्रास्ट्रक्चर की कमजोरी और राजनीतिक अस्थिरता है. ऊपर से एक-एक करके विदेशी कंपनियां पाकिस्तान छोड़कर जा रही हैं, जिस कारण पड़ोसी मुल्क में बेरोजगारी-भूखमरी जैसी स्थिति गहराती जा रही है.
दूसरी तरफ, चीन और अमेरिका पाकिस्तान से डील करके वहां अपना प्रभाव जमा रहे हैं. चीन और अमेरिका के साथ हो रही डील्स को पाकिस्तान के ‘बिकने या गिरवी’ रखने के तौर पर देखा जा रहा है, क्योंकि पाकिस्तान एक आर्थिक सहायता के बदले रणनीतिक प्रभाव और संसाधनों का कंट्रोल इन दोनों देशों को दे रहा है.
चीन ज्यादा कर्ज देकर और इंफ्रास्ट्रक्चर विकास से पाकिस्तान पर कंट्रोल बढ़ा रहा है, जबकि अमेरिका अमेरिका खनिजों और तेल पर फोकस कर पाकिस्तान को चीन से दूर करने की कोशिश कर रहा है और अपना रणनीतिक प्रभाव बढ़ा रहा है. यह चीजें पाकिस्तान को आर्थिक तौर पर मजबूत बनाने का वादा करती हैं, लेकिन वास्तव में यह पाकिस्तान के लिए खतरा हैं.
चीन के हाथों कैसे बिक रहा पाक?
चीन ने पाकिस्तान के साथ मिलकर एक फ्लैगशिप प्रोजेक्ट शुरू किया है, जो चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) से जाना जाता है. यह तकरीबन 46 अरब डॉलर का प्रोजेक्ट है और अब 65 अरब डॉलर का हो चुका है. इसमें सड़क, रेल, पोर्ट, एनर्जी प्लांट्स और आर्थिक क्षेत्र निर्माण शामिल है.
कर्ज का जाल: 2025 में पाकिस्तान पर चीन का 30 अरब डॉलर पैसा बकाया है, जो इसके कुल कर्ज का 30 फीसदी है. एक्सपर्ट इसे ‘डेट ट्रैप डिप्लोमेसी’ कह रहे हैं, जो पाकिस्तान द्वारा चुकाने में असमर्थ होने पर चीन का रणनीतिक तौर पर पाकिस्तान की संपत्तियों पर कंट्रोल हो सकता है. जैसे ग्वादर पोर्ट पर चीन को 40 साल का लीज मिला है, जो पाकिस्तान को अरब सागर तक पहुंचने से रोक सकता है.
CPEC गिलगित-बाल्टिस्तान (PoK का हिस्सा) से गुजरता है, चीनी कंपनियां इस एरिया में संसाधनों (जैसे तांबा, सोना) का दोहन कर रही हैं. CPEC से बिजली उत्पादन बढ़ा, लेकिन उच्च ब्याज दरों और अपारदर्शी डील्स से पाकिस्तान का कर्ज चुकाना मुश्किल हो गया है. 2025 में 2 अरब डॉलर लोन रोलओवर हुआ है, लेकिन पाकिस्तान को आईएमएफ बेलआउट 7 अरब डॉलर के लिए चीन की भी मंजूरी चाहिए. यह चीन के ऊपर निर्भरता को दिखाता है.
अमेरिका को अपना कंट्रोल दे रहा पाकिस्तान
अमेरिका-पाकिस्तान डील्स 2025 में तेज हुईं हैं. जुलाई 2025 में व्यापार समझौता हुआ, जिसमें 19% टैरिफ रेट पर सहमति बनी. अमेरिका को पाकिस्तान के तेल भंडार (बलूचिस्तान के ऑफशोर) विकसित करने और क्रिटिकल मिनरल्स जैसे एंटीमनी, कॉपर, रेयर अर्थ पर पहुंच मिली है. क्रिटिकल मिनरल्स के लिए 50 करोड़ डॉलर की डील हुई है.
पहला अमेरिकी तेल कार्गो अक्टूबर 2025 में आने वाला है. यह डील चीन पर निर्भरता कम करने के लिए हैं, लेकिन पाकिस्तान को संसाधन बेचने पड़ रहे हैं. अमेरिका बलूचिस्तान के खनिजों और तेल पर फोकस कर रहा है. भले ही यह डील चीन के प्रभाव को कम करने के लिए हो, लेकिन एक्सपर्ट इसे पाकिस्तान को अमेरिका का मोहरा मान रहे हैं. यह डील निवेश तो ला रही हैं, लेकिन पाकिस्तान को खनिजों का दोहन अमेरिकी कंपनियों को लाभ पहुंचा रहा है.
ट्रंप को मिला बड़ा ऑफर
फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट में एक बड़ा खुलासा किया गया है कि सेना प्रमुख असिम मुनीर खनिजों तक पहुंच के लिए पसनी में एक पोर्ट बनाने का प्रस्ताव दिया है. इस प्रस्ताव के तहत अरब सागर के किनारे स्थिति पासनी शहर में पाकिस्तान के महत्वपूर्ण खनिजों तक पहुंचने के लिए एक टर्मिनल का निर्माण और उसका संचालन शामिल है.
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