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    क्या चुनावों के बाद बदल जाती हैं फ्रीबीज और महिला केंद्रित स्कीम?

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    बिहार विधानसभा चुनावों से ठीक पहले महिलाओं पर केंद्रित योजनाएं चर्चा के केंद्र में हैं. ये ट्रेंड असामान्य नहीं है, क्योंकि पिछले दो सालों में दस प्रमुख राज्यों में हुए चुनावों में भी महिलाओं के लिए फ्रीबी योजनाओं की घोषणाएं हुईं. ये योजनाएं अक्सर चुनाव जीतने की रणनीति के तौर पर शुरू की जाती हैं, लेकिन बाद में वित्तिय दबाव का कारण इन में बदलाव कर दिया जाता है.

    इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 सितंबर 2025 को बिहार की ‘मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना’ की शुरुआत की, जिसमें प्रत्येक लाभार्थी को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिए प्रारंभिक अनुदान के रूप में 10,000 रुपये मिलेंगे. बाद के चरणों में अतिरिक्त वित्तीय सहायता 2 लाख रुपये तक हो सकती है.

    चुनाव जीतने की रणनीति?

    एक रिसर्च में पता चला है कि ऐसी ोयोजनाएं चुनाव जीतने की रणनीति साबित हुई हैं, लेकिन चुनाव के बाद इन योजनाओं में कई बड़े बदलाव कर दिए जाते हैं. जिससे योजनाओं का मूल स्वरूप बदल जाता है. रिसर्च में बताया गया है कि महिला-केंद्रित योजनाओं की घोषणा अक्सर चुनावों के दौरान खुले तौर पर की जाती है, लेकिन बाद में वित्तीय दबाव बढ़ने पर लाभार्थियों के संदर्भ में इन्हें तर्कसंगत बना दिया जाता है.

    खर्च में कटौती का अनुमान

    एमके रिसर्च के अनुसार, महिलाओं को नकद हस्तांतरण योजनाओं पर राज्यों का खर्च वित्त वर्ष 2025 के बजट अनुमान से वित्त वर्ष 2026 के बजट अनुमान की तुलना में मामूली रूप से, सकल घरेलू उत्पाद के 0.1 प्रतिशत अंक कम हुआ है.

    रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हरियाणा, महाराष्ट्र और ओडिशा जैसे राज्यों में कटौती ज्यादा हुई है, क्योंकि वित्तीय दबाव बढ़ गया है. आगे चलकर इन योजनाओं पर खर्च नाममात्र की वृद्धि ही देखने को मिलेगी.’

    राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी

    चुनावों से पहले मुफ़्त गिफ्ट्स की घोषणा करने का व्यापक रूप से प्रचलित चलन, राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के औसतन 1.7 प्रतिशत के बराबर है. इसके कारण चुनावी वर्ष में राजकोषीय घाटा पिछले वर्ष की तुलना में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के एक प्रतिशत अंक के बराबर बढ़ गया है.

    क्या हैं छत्तीसगढ़ का हाल

    चुनाव से एक साल पहले और बाद के वित्तीय घाटे की तुलना करने पर छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा उछाल देखा गया. नवंबर 2023 में चुनाव हुए छत्तीसगढ़ का पूर्व-चुनाव वर्ष में वित्तीय घाटा 1 प्रतिशत था, लेकिन चुनाव के बाद 4.9 प्रतिशत हो गया.

    एमपी और ओडिशा में भी बढ़ा घाटा

    पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार ओडिशा, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में भी वित्तीय घाटा 1.4-1.5 प्रतिशत बढ़ा है, लेकिन चुनाव-पश्चात वर्ष में यह 4.9 प्रतिशत रहा. तो चुनाव-पूर्व वर्ष में इसने एक प्रतिशत का राजकोषीय घाटा दर्ज किया. 

    विकास या योजनाओं में कटौती

    बता दें कि बढ़ते वित्तीय घाटे से राज्यों पर दबाव पड़ता है कि  वे या तो पूंजीगत व्यय कम करें और विकास कार्यों को बंद करें, या वित्तीय स्थिति को बनाये रखने के लिए कल्याणकारी योजनाओं को तर्कसंगत बनाकर अपनी वित्तीय स्थिति को संभालें, या दोनों करें.

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