उत्तर प्रदेश में मुस्लिम सियासत के चेहरा माने जाने वाले सपा महासचिव आजम खान 23 महीने के बाद मंगलवार को जेल से बाहर आएंगे. अदालत से जमानत मिलने के बाद उनकी रिहाई का रास्ता साफ हो सका. अब उनकी रिहाई में कोई कानूनी अड़चन नहीं बची है, जिसके चलते वह सीतापुर जेल से बाहर आएंगे.
आजम खान की जमानत की खबर जैसे ही सामने आई, रामपुर में सियासी हलचल बढ़ गई. कई लोग इसे राहत की खबर मान रहे हैं, तो कुछ इसे सियासत के लिए नए दौर की शुरुआत बता रहे हैं.
सवाल उठता है कि आजम के जेल से बाहर आने के बाद क्या उत्तर प्रदेश का सियासी समीकरण बदलेगा, क्योंकि रामपुर की पूरी सियासत ही बदल गई है. आजम के जेल चले जाने के बाद रामपुर की सियासत मानो खत्म हो गई थी. रामपुर में सपा का कब्जा जरूर है, लेकिन अब आजम खान का जलवा फीका पड़ा है. ऐसे में सभी की निगाहें आजम पर टिकी हैं कि वह किस तरह की राजनीति करते हैं.
आजम खान की 23 महीने के बाद रिहाई
आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम को दो जन्म प्रमाण पत्र मामले में 18 अक्टूबर 2023 को न्यायालय ने सजा सुनाई थी. सपा नेता आजम खान, उनकी पत्नी पूर्व सांसद डॉ. तंजीम फातिमा और बेटे पूर्व विधायक अब्दुल्ला को सात-सात साल के कारावास की सजा हुई थी. इस मामले में पहले तंजीम फातिमा को सात माह 11 दिन बाद जमानत मिली, तो अब्दुल्ला को 17 महीने के बाद राहत मिली और आजम खान को 23 महीने के बाद जमानत मिली.
आजम खान पिछले 23 महीनों से सीतापुर के जिला कारागार में बंद थे. इस दौरान उन्हें 100 से ज्यादा मामलों में आरोपी बनाया गया था, जिनमें से अधिकांश मामले जौहर यूनिवर्सिटी से संबंधित हैं. इन पर सरकारी जमीन हथियाने और शत्रु संपत्ति के रिकॉर्ड में हेरफेर करने के आरोप लगाए गए थे. जेल में रहने के दौरान उनकी सेहत भी कई बार खराब हुई और राजनीति का मिजाज भी बदल गया.
योगी सरकार में आजम की बढ़ी मुसीबत
उत्तर प्रदेश में 2017 में हुए सियासी बदलाव का सबसे ज्यादा सियासी असर आजम खान और उनके परिवार को उठाना पड़ा है. योगी सरकार के आने के बाद आजम के खिलाफ ऐसा कानूनी शिकंजा कसा कि एक के बाद एक कुल 90 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हो गए. पहली बार 26 फरवरी 2020 को आजम रामपुर में गिरफ्तार हुए, जिसके बाद सीतापुर जेल से 27 महीने के बाद जमानत पर बाहर आए थे.
इसके बाद दोबारा अब्दुल्ला आजम के दो जन्म प्रमाण पत्र के मामले में 18 अक्टूबर 2023 से सीतापुर जेल में बंद थे. इस मामले में पहले जमानत पर तंजीम फातिमा और फिर अब्दुल्ला आजम को जेल से रिहाई मिली और अब 23 महीने के बाद आजम खान हाईकोर्ट से मिली जमानत के बाद बाहर आ रहे हैं. लोगों की निगाहें उन पर लगी हुई हैं कि वह क्या सियासी रास्ता चुनते हैं.
आजम के हाथ से बाहर निकली सियासत
आजम खान पर कानूनी शिकंजा कसने और उनके परिवार के जेल जाने के बाद रामपुर की सियासत ही पूरी तरह बदल गई है. आजम खान के परिवार का कोई भी सदस्य मौजूदा समय में किसी भी सदन का सदस्य नहीं है. न तो आजम खान, न ही अब्दुल्ला आजम खान और न ही तंजीम फातिमा, विधायक और सांसद हैं. आजम खान के जेल में जाने के चलते रामपुर की पूरी सियासत ही उनके और उनके परिवार के हाथों से बाहर निकल गई है.
रामपुर की सियासत में एक समय आजम खान की तूती बोलती थी. आजम खान रामपुर सीट से खुद विधायक थे, तो उनके बेटे अब्दुल्ला आजम रामपुर के स्वार टांडा सीट से विधायक थे. इसके अलावा तंजीम फातिमा भी राज्यसभा सदस्य रह चुकी हैं. रामपुर में आजम खान की मर्जी के बिना सपा का पत्ता भी नहीं हिलता था और टिकट मिलना तो दूर की बात थी, लेकिन उनके जेल जाने के बाद रामपुर की पूरी सियासत ही उनके हाथों से निकल गई है.
रामपुर सांसद मोहिबुल्लाह नदवी जरूर सपा से हैं, लेकिन आजम खान के विरोधी खेमे के माने जाते हैं. सपा रामपुर सीट पर अपने किसी करीबी को चुनाव लड़ाना चाहती थी, लेकिन अखिलेश यादव ने मोहिबुल्लाह नदवी को उतारा था. आजम के प्रभावी वाले इलाके रामपुर विधानसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा है, तो स्वार टांडा में बीजेपी की सहयोगी अपना दल (एस) के विधायक हैं.
रामपुर में सपा के जिला संगठन में भी आजम खान के कुछ करीबी लोग ही बचे हैं, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद स्थिति बदल गई है. सपा सांसद मोहिबुल्लाह नदवी का प्रभाव भी लगातार रामपुर में बढ़ रहा है, जिसके चलते आजम खान विरोधी खेमा पूरी तरह से एक्टिव है, लेकिन अब आजम की रिहाई से आजम खान के तमाम करीबी खुश हैं. उन्हें अपने सियासी अच्छे दिन की उम्मीद दिख रही है.
आजम के आने से क्या बदलेगी सियासत
आजम खान की रिहाई से रामपुर की सियासत पर असर पड़ना लाजिमी है. आजम खान के समर्थक 23 महीने से साइलेंट मोड में थे, लेकिन अब उनके जेल से बाहर आने से एक्टिव हो जाएंगे. आजम खान अभी तक जेल में रहकर जिस तरह से सपा पर प्रेशर पॉलिटिक्स का दांव चलते रहे हैं, आजम के बाहर आने के बाद रामपुर की राजनीति बदलेगी.
रामपुर में सपा की सियासत में सांसद मोहिबुल्लाह नदवी का प्रभाव कम होगा और आजम का असर बढ़ेगा. इसकी एक बड़ी वजह यह है कि रामपुर के सपा जिला संगठन में ज्यादातर आजम खान के करीबी लोग शामिल हैं. इस तरह रामपुर का सपा संगठन आजम के साथ कदमताल करता नजर आएगा. रामपुर के आसपास के इलाके में आजम सक्रिय होते हैं, तो फिर उसका भी असर पड़ सकता है. आजम खान का प्रभाव सिर्फ रामपुर ही नहीं बल्कि मुरादाबाद और संभल के इलाके सहित पश्चिमी यूपी के कई जिलों में है.
उत्तर प्रदेश की मुस्लिम सियासत के सबसे कद्दावर नेताओं में आजम खान एक हैं, उनकी जैसी पकड़ किसी दूसरे नेता की नहीं मानी जाती. जेल में रहते हुए आजम खान ने पत्र लिखकर सपा से लेकर कांग्रेस तक की टेंशन बढ़ा दी थी. रामपुर के सपा जिला अध्यक्ष अजय सागर ने आजम के सियासी संदेश को पत्र के जरिए लोगों के सामने रखा था. आजम खान के हवाले से पत्र में इंडिया गठबंधन पर मुस्लिमों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए कहा था कि मुसलमानों पर इंडिया गठबंधन को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी, अन्यथा मुस्लिमों को हालात और भविष्य पर विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.
सपा की साइकिल से उतरेंगे आजम खान?
आजम खान के जेल से बाहर आने के बाद सभी की निगाहें इस बात पर लगी हैं कि क्या वह सपा का साथ छोड़ देंगे? आजम खान 23 महीने तक सीतापुर की जेल में बंद थे. इस दौरान सपा प्रमुख अखिलेश यादव महज एक-दो बार ही आजम खान से मिलने सीतापुर जेल गए थे. अखिलेश उनकी रिहाई के लिए किसी तरह का कोई बड़ा आंदोलन नहीं खड़ा कर सके थे. ऐसे में आजम ने अपने समर्थकों के जरिए महज एक इशारा दिया कि वह सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से नाराज हैं. इसके बाद शिवपाल यादव से लेकर चंद्रशेखर आजाद तक उनसे मिलने पहुंच गए, लेकिन आजम खान ने सपा नेताओं से दूरी बनाए रखी.
पिछले दिनों आजम खान के साथ जेल में नगीना से सांसद बने आजाद समाज पार्टी के सांसद चंद्रशेखर आजाद ने मुलाकात की थी. चंद्रशेखर कई बार उनसे मिले हैं, जिसे लेकर सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं. चंद्रशेखर अब अगर आजम से मिलते हैं, तो उसके सियासी मायने भी निकाले जाएंगे. यूपी में पहले से ही चर्चा है कि आजम खान के साथ चंद्रशेखर आजाद सियासी नजदीकियां बढ़ाकर पश्चिमी यूपी और रुहेलखंड के क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं. नगीना से लोकसभा सांसद बनने के बाद से ही चंद्रशेखर आजाद दलित-मुस्लिम समीकरण के सहारे यूपी की सियासत में अपनी जगह बनाना चाहते हैं.
असदुद्दीन ओवैसी भी दलित-मुस्लिम फॉर्मूले पर अपना सियासी ताना-बाना बुन रहे हैं. वहीं, आजम खान का सियासी आधार पश्चिमी यूपी खासकर मुरादाबाद मंडल में मुस्लिमों के बीच रहा है. आजम के सहारे ही सपा मुरादाबाद मंडल में अपनी सियासी जड़ें जमाने में कामयाब रही थी. इसी पर नजर चंद्रशेखर आजाद की है. ऐसे में देखना है कि आजम के जेल से बाहर आने के बाद किस तरह की सियासी खिचड़ी पकती है और राजनीतिक दशा किस तरह बदलती है.
हालांकि, आजम खान को करीब से जानने वाले कई लोग कहते हैं कि आजम खान भले ही सपा से नाराज हों, लेकिन सपा का दामन नहीं छोड़ेंगे. इससे पहले भी आजम खान 27 महीने तक जेल में बंद थे, तो सपा से उनकी नाराजगी की बातें सामने आई थीं, लेकिन जेल से बाहर आते ही अखिलेश यादव ने उन्हें साध लिया था. आजम खान प्रेशर पॉलिटिक्स के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं, जिसके सियासी चक्रव्यूह में अच्छे से अच्छे नेता को फंसा देते हैं.
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