अमेरिका ने नए H-1B वीज़ा आवेदकों के सामने फीस को कई गुना बढ़ाकर बड़ी मुश्किल खड़ी कर दी है. अब अमेरिकी H-IB वीजा हासिल करने के लिए 1,00,000 डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) की मोटी फीस चुकानी होगी, जबकि पहले यह शुल्क एक से आठ लाख रुपये के बीच था. यह कदम विदेशी स्किल्ड लेबर की एंट्री को सख्त बनाने के मकसद से उठाया गया है.
‘टॉप टैलेंट सिर्फ अमेरिका के लिए’
वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने ओवल ऑफिस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ बोलते हुए इस कदम का बचाव किया. उन्होंने कहा, ‘क्या वह व्यक्ति इतना कीमती है कि कपंनी सरकार को 1,00,000 डॉलर हर साल दे. यही तो इमिग्रेशन का मकसद है. अमेरिकियों को नौकरी पर रखें, यह सुनिश्चित करें कि आने वाले लोग टॉप टैलेंट हों. राष्ट्रपति का रुख बिल्कुल साफ है. टॉप टैलेंट सिर्फ अमेरिका के लिए है, बकवास बंद करो.’
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अमेरिका में काम कर रहे भारतीय प्रोफेशनल्स के बीच 21 सितंबर से लागू इस ऐलान ने खलबली मचा दी. आव्रजन वकीलों और कंपनियों ने H-1B वीजा होल्डर्स और अमेरिका से बाहर उनके परिवारों को 24 घंटे के भीतर लौटने की चेतावनी देते हुए कहा कि ऐसा न करने पर फंसने का खतरा रहेगा. हालांकि, बाद में व्हाइट हाउस ने साफ किया कि यह फीस सिर्फ नए आवेदकों पर लागू होगी.
एच-1बी वीजा होल्डर्स में 70 फीसदी भारतीय
एच-1बी वीज़ा प्रोग्राम 1990 में खास बिजनेस में विदेशी कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए शुरू किया गया था और इसने ऐतिहासिक रूप से अमेरिकी टेक और ट्रेड को आकार देने में मदद की है. अमेरिकी सिटिजनशिप और इमिग्रेशन सर्विस (यूएससीआईएस) के मुताबिक, हाल के वर्षों में अमेरिका से मंजूर सभी H-1B आवेदनों में 70 फीसदी से ज्यादा आवेदन भारतीयों के हैं.
वीजा प्रोग्राम के टॉप लाभार्थियों में अमेजन (10,044 वीजा), टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (5,505), माइक्रोसॉफ्ट (5,189), मेटा (5,123), एप्पल (4,202), गूगल (4,181), डेलोइट (2,353), इंफोसिस (2,004), विप्रो (1,523) और टेक महिंद्रा अमेरिका (951) शामिल हैं.
‘वीजा प्रोग्राम का हुआ गलत इस्तेमाल’
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इस कदम को H-1B वीजा सिस्टम के गलत इस्तेमाल के जवाब के रूप में सही ठहराया, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि इसने हाई सैलरी वाले अमेरिकी वर्कर्स की जगह सस्ते, कम स्किल्ड विदेशी श्रमिकों को ले लिया है. ट्रंप ने कहा, ‘H-1B प्रोग्राम का दुरुपयोग राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा है. अमेरिकी एजेंसियों ने वीजा धोखाधड़ी, मनी लॉन्ड्रिंग की साजिश और विदेशी श्रमिकों को अमेरिका आने के लिए प्रोत्साहित करने वाली अन्य अवैध गतिविधियों में शामिल वीजा पर निर्भर आउटसोर्सिंग कंपनियों की पहचान की है और उनकी जांच की है.’
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वाणिज्य मंत्री लुटनिक ने बताया कि नई फीस का मकसद टॉप लेवल की प्रतिभाओं को प्राथमिकता देना है. उन्होंने कहा, ‘हम ऐसा करना बंद कर देंगे. हम सिर्फ असाधारण लोगों को ही टॉप पर रखेंगे, न कि उन लोगों को जो अमेरिकियों से नौकरियां छीनने की कोशिश कर रहे हैं. यह फैसला व्यवसाय और अमेरिकियों के लिए नौकरियां पैदा करेगा और अमेरिका के खजाने के लिए 100 अरब डॉलर से ज़्यादा जमा करेगा.’
‘फीस भरो, वरना अमेरिकी को जॉब दो’
वर्तमान H-1B होल्डर्स पर फीस लागू होने के बारे में पूछे जाने पर, लुटनिक ने कहा, ‘पहली बार रिन्यू के बारे में कंपनी को फैसला लेना होगा. क्या वह व्यक्ति इतना मूल्यवान है कि वह सरकार को प्रति वर्ष 100,000 अमेरिकी डॉलर का भुगतान कर सके, या उन्हें घर भेजकर किसी अमेरिकी को नौकरी पर रख लेना चाहिए?’
व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी कैरोलिन लेविट ने साफ किया, ‘यह कोई वार्षिक शुल्क नहीं है. यह एकमुश्त शुल्क है जो सिर्फ आवेदन करने पर लागू होता है. जो लोग पहले से ही H-1B वीजा होल्डर्स हैं और इस समय देश से बाहर हैं, उनसे फिर से एंट्री करने पर 100,000 डॉलर की फीस नहीं वसूली जाएगी.’
नए वीजा आवेदन पर लागू होगा फैसला
उन्होंने आगे कहा कि H-1B वीजा होल्डर्स देश से बाहर जा सकते हैं और उसी डेडलाइन तक फिर से एंट्री कर सकते हैं जिस सीमा तक वे सामान्य रूप से करते हैं. यह सिर्फ नए वीज़ा पर लागू होता है, रिन्यू पर नहीं, और न ही मौजूदा वीज़ा होल्डर पर. यह पहली बार अगले आगामी लॉटरी सर्किल में लागू होगा.’
इस नीति का भारतीय टेक प्रोफेशनल्स और H-1B टैलेंट पर अत्यधिक निर्भर कंपनियों पर बुरा प्रभाव पड़ने की आशंका है. नैसकॉम जैसे बिजनेस ग्रुप ने चल रहे प्रोजेक्ट में रुकावट की चेतावनी दी है. यह कदम ऐसे संवेदनशील समय में उठाया गया है जब भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता आगे की तरफ बढ़ रही है.
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