संसदीय और विधानमंडलों के चुनाव लड़ने की न्यूनतम उम्र 25 साल है. इसे घटाकर पंचायतों और स्थानीय चुनाव की तरह 21 साल करने को लेकर संसद की स्थायी समिति की सिफारिश से इलेक्शन कमीशन इत्तेफाक नहीं रखता. दरअसल, चुनाव आयोग को इस बाबत समिति के सुझाव वाली रिपोर्ट मिली तो उसने सहज प्रतिक्रिया राय समिति को भेजी कि वह चुनाव लड़ने की उम्र घटाने के कतई पक्ष में नहीं है. क्योंकि 18 साल की उम्र में अगर एक वोट दे भी दिया तो इस अवस्था में इतनी परिपक्वता नहीं आती कि युवा संसद या विधान मंडल जैसे महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारियों को संभालने और समझने की गंभीरता हासिल कर ले.
संसद की स्थायी समिति की अगुआई फिलहाल बीजेपी सांसद बृजलाल कर रहे हैं. समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि विकसित और नए जमाने की सोच वाले युवाओं को लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से रूबरू कराने और अंतरराष्ट्रीय माहौल को ध्यान में रखते हुए देश को चुनाव लड़ने की न्यूनतम उम्र 25 साल से घटाकर 21 साल करने पर फिर से गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए.
हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि इस बदलाव को गति देने के बाद देशभर में कम से कम आठ करोड़ और युवा चुनाव लड़ने की उम्र संबंधी योग्यता पूरी करने लायक हो जाएंगे.
स्थायी समिति ने विधि और न्याय मंत्रालय को मशविरा देने के लिए भेजी रिपोर्ट के साथ उम्मीद जताई कि विभिन्न विभागों के बीच इस प्रस्ताव पर व्यापक चर्चा होनी चाहिए. इससे युवा संगठनों, संविधान विशेषज्ञों, सामाजिक और नागरिक संगठनों के हितधारकों को शामिल कर उनकी राय ली जाए.
बता दें कि चुनाव लड़ने की उम्र घटाने की एक सिफारिश 2023 में भी गई थी, तब तो चुनाव लड़ने की उम्र 25 साल से घटाकर 18 साल करने की सिफारिश की गई थी. अगस्त 2023 में संसद की स्थायी समिति ने विधानसभा और लोकसभा चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु 25 से घटाकर 18 साल करने की सिफारिश की थी. समिति ने पश्चिमी देशों मसलन कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों की नकल में यह सिफारिश की थी. इन देशों में मतदान करने और चुनाव लड़ने की उम्र एक समान है.
भारत में फिलहाल कुल मतदाता एक अरब के आसपास हैं. यानी कुल 99 करोड़ से अधिक. उनमें से 20 से 29 साल के औसत वाले 19 करोड़ 74 लाख वोटर हैं, जबकि इनमें भी 21 से 25 साल की उम्र के बीच 8 करोड़ मतदाता हैं. देशभर में 18 से 19 साल के मतदाता 1 करोड़ 84 लाख हैं.
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