कर्नाटक में प्रस्तावित सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक सर्वेक्षण (जिसे जाति जनगणना के रूप में जाना जा रहा है) को लेकर बढ़ते विवाद के बीच उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार आज रात दिल्ली रवाना हो रहे हैं. वह कांग्रेस हाईकमान से मिलकर सर्वेक्षण को स्थगित करने की अनुमति मांगेंगे. राज्य में यह सर्वेक्षण 22 सितंबर से शुरू होने वाला है, लेकिन कई कैबिनेट मंत्रियों ने पिछड़ा वर्ग आयोग के जाति कॉलमों पर निराशा जताई है. उनका कहना है कि समुदायों को यह समझाने के लिए अधिक समय चाहिए कि किस कॉलम में क्या लिखना है.
कर्नाटक भाजपा अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार ने अपने सामाजिक और शैक्षिक सर्वेक्षण के माध्यम से हिंदू धर्म को विभाजित करने का फैसला किया है. उन्होंने राज्य की विभिन्न जातियों से धर्म के कॉलम में खुद की पहचान हिंदू के रूप में दर्ज करने का आह्वान किया. शिकारीपुरा विधायक ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘कांग्रेस सरकार ने इस सर्वेक्षण को हिंदू समाज को बांटने की कवायद में बदल दिया है. उन्होंने 47 नई जातियां बना दी हैं – ईसाई लिंगायत, ईसाई वोक्कालिगा, ईसाई बुनकर, ईसाई अनुसूचित जाति, ईसाई जनजाति- जिससे भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है. राष्ट्र और राज्य के हित में, सभी को धर्म वाले कॉलम में हिंदू लिखना चाहिए.’
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मुख्यमंत्री को राज्यपाल के पत्र की मुख्य बातें
इस बीच, कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने 16 सितंबर को मुख्यमंत्री सिद्धरामैया को एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने सर्वे फॉर्म में कई हिंदू जातियों के आगे ‘क्रिश्चियन’ पहचान जोड़ने पर गंभीर आपत्ति दर्ज की है. भाजपा के सांसदों, विधायकों और विधान परिषद सदस्यों के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल से मुलाकात की और सर्वेक्षण को ‘विभाजनकारी’ बताते हुए इसे रोकने की सलाह देने का अनुरोध किया.
राज्यपाल के पत्र में कहा गया है: ‘भाजपा के सदस्यों ने मुझे कर्नाटक सरकार के प्रस्तावित जाति-आधारित शैक्षिक और सामाजिक सर्वेक्षण के खिलाफ अपनी चिंताओं और आपत्तियों से अवगत कराया. उन्होंने कुम्बारा और कुरुबा जातियों के साथ क्रिश्चियन पहचान जोड़ने और राज्य में अवैध घुसपैठियों के मुद्दों पर लिखित आपत्तियां सौंपी हैं. ऐसे क्रिश्चियन पहचान का उपयोग राज्य की किसी भी जाति सूची में नहीं दिखता और मेरे ज्ञान के अनुसार, क्रिश्चियन धर्म में ऐसी जातियां मौजूद नहीं हैं.’
राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को लिखे पत्र में कहा है, ‘राज्य सरकार का यह कदम क्रिश्चियन धर्म में जाति पहचान देने वाला हो सकता है, जो सामाजिक अशांति, दीर्घकालिक जटिलताओं और राज्य के सामाजिक ताने-बाने को अपूरणीय क्षति पहुंचा सकता है. इसलिए, सामाजिक संरचना को बाधित न करने और दीर्घकालिक प्रभावों को ध्यान में रखते हुए इस विषय पर पुनर्विचार आवश्यक है.’ राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से आवश्यक कार्रवाई करने का अनुरोध किया है.
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मंत्रियों की आपत्तियां और सर्वे रोकने की मांग
कई कैबिनेट मंत्रियों ने सर्वेक्षण के जाति कॉलमों को लेकर नाराजगी जताई है. उनका तर्क है कि पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा तैयार सूची जटिल है और समुदायों को यह समझाने में समय लगेगा कि किस कॉलम में सही जानकारी भरनी है. उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने आज एक बैठक में कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष माधुसूदन आर नायक और अन्य सदस्यों से चर्चा की. उन्होंने कहा, ‘सर्वेक्षण की जाति सूची आयोग द्वारा कानूनी ढांचे के तहत और समुदायों की मांगों के आधार पर तैयार की गई है. लेकिन किसी भी निर्णय से पहले मुख्यमंत्री सिद्धरामैया से परामर्श किया जाएगा.’ सर्वेक्षण का अनुमानित खर्च 420 करोड़ रुपये है और यह 22 सितंबर से 7 अक्टूबर तक चलेगा. सरकार ने 1.75 लाख शिक्षकों को सर्वे के काम में नियुक्त किया है.
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मुख्यमंत्री सिद्धरामैया ने सर्वे का किया बचाव
मुख्यमंत्री सिद्धरामैया ने सर्वेक्षण का बचाव करते हुए कहा, ‘क्रिश्चियन और मुस्लिम भी भारतीय नागरिक हैं. यदि कोई धर्म परिवर्तन कर चुका है, तो केवल उसकी वर्तमान जाति ही मानी जाएगी.’ उन्होंने भाजपा पर सर्वे का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया और कहा कि राज्य के लोगों की आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक स्थिति को जानने के लिए यह सर्वेक्षण आवश्यक है. भाजपा ने सर्वेक्षण को ‘धर्मांतरण को बढ़ावा देने वाला’ बताते हुए विरोध जताया है. भगवापार्टी का कहना है कि हिंदू जातियों के साथ क्रिश्चियन जोड़ना सामाजिक विभाजन पैदा करेगा.
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