केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि मोदी सरकार के ग्यारह साल के कार्यकाल में सबसे चुनौतीपूर्ण दौर कोरोना का समय था. उस समय दुनिया भर के मुल्कों को लगता था कि भारत जैसा देश कोविड का मुकाबला कैसे करेगा. भारत का हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर कोविड-19 के पहले उतना विकसित नहीं था. लेकिन, प्रधानमंत्री मोदी ने उसी समय इसे बदलने और मजबूत करने का काम किया. कोरोना के खिलाफ पूरी दुनिया में सबसे बेहतर प्रबंधन भारत का रहा.
शाह बोले- कोरोना के ख़िलाफ़ सबसे बेहतर प्रबंधन करके भारत ने सबको चौंका दिया. इसके पीछे की वजह है प्रधानमंत्री मोदी का नेतृत्व.
आजतक के साथ अमित शाह की एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में क्या-क्या बातचीत हुई, आप नीचे पढ़ें.
सवाल: कोरोना काल में प्रधानमंत्री मोदी ने जनता को कैसे जोड़कर रखा?
जवाब: जनता कर्फ्यू इसका बड़ा उदाहरण था. कोई सरकारी आदेश नहीं था, लेकिन 130 करोड़ लोग घरों में रहे. घंटी बजाना, दिया जलाना—ये सब लोगों के मनोबल को जोड़ने और लड़ाई को सामूहिक बनाने के तरीके थे. यही संगठन और नेतृत्व की खासियत है.
सवाल: वैक्सीन निर्माण और वितरण में भारत ने कैसे सफलता पाई?
जवाब: प्रधानमंत्री मोदी ने शुरुआत में ही कमिटी बना दी थी. भारत उन देशों में रहा जिसने सबसे पहले वैक्सीन तैयार की. चुनौती थी 130 करोड़ लोगों तक वैक्सीन पहुंचाना और डिजिटल सर्टिफिकेट देना. अमेरिका जैसे देशों में महीनों लग गए, लेकिन भारत में तुरंत सर्टिफिकेट मोबाइल पर मिल गया.
सवाल: दूसरी लहर में ऑक्सीजन संकट सबसे बड़ा मुद्दा बना. सरकार ने इसे कैसे संभाला?
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जवाब: अमित शाह बोले उस समय हमारी क्षमता से नौ गुना ज्यादा मांग हो गई थी. प्रधानमंत्री मोदी ने दिन-रात काम किया. इंडस्ट्री, सेना, रेलवे – सबको जोड़ा गया. विदेशों से ऑक्सीजन उपकरण मंगाए गए. ट्रेन के डिब्बों को रातों-रात ऑक्सीजन कैरिज में बदला गया. यह एक बड़ा क्राइसिस मैनेजमेंट था.
सवाल: कोविड प्रबंधन से सबसे बड़ी सीख क्या है?
जवाब: अगर कोई पढ़ना चाहे कि क्राइसिस को अवसर में कैसे बदला जा सकता है, तो भारत का कोविड प्रबंधन और प्रधानमंत्री मोदी का नेतृत्व उसका अध्ययन होना चाहिए. इसमें जनता, सरकार, सभी राजनीतिक दल और संस्थाएं बिना मतभेद के साथ खड़े रहे.
सवाल: क्या कभी ऐसा हुआ कि कोविड प्रबंधन पर प्रधानमंत्री की राय और आपकी राय अलग रही हो?
जवाब: चर्चा के दौरान अलग-अलग राय स्वाभाविक है. कई बार प्रधानमंत्री दूसरों की राय मान भी लेते थे. लेकिन निर्णय सामूहिक होता था. प्रधानमंत्री मोदी से बेहतर श्रोता मैंने आज तक नहीं देखा. वे सबकी सुनते हैं और फिर नेतृत्व के तौर पर फैसला करते हैं.
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