बिहार में साढ़े तीन दशक से सत्ता से बाहर कांग्रेस अपनी वापसी के लिए बेताब है. कांग्रेस के खिसके सियासी जनाधार को दोबारा जोड़ने के लिए राहुल गांधी ने छह महीने पहले संविधान और आरक्षण के बहाने ‘सामाजिक न्याय’ का एजेंडा सेट करने का दाँव चला था. चुनाव की सियासी तपिश जैसे-जैसे बढ़ी, वैसे-वैसे कांग्रेस की सियासी चाल भी बदलती जा रही है.
राहुल गांधी के सामाजिक न्याय के साथ कांग्रेस ने बिहार में पलायन, बेरोज़गारी और पेपर लीक जैसे मुद्दों पर सियासी बिसात बिछाने में जुटी थी. कांग्रेस अपना एजेंडा दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक वोटों के इर्द-गिर्द बुन रही थी, जिसके लिए प्रदेश संगठन की कमान भूमिहार समाज के नेता से लेकर दलित समुदाय को सौंप दी थी.
बिहार चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग की मतदाता सूची की विशेष संशोधन प्रक्रिया (SIR) शुरू हुई तो कांग्रेस ने अपनी सियासी चाल बदल दी. कांग्रेस का फोकस अब ‘वोट चोरी’ के मुद्दे पर पूरी तरह केंद्रित हो गया. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ‘वोट चोरी’ के शोर में बिहार के अहम मुद्दे कहीं छूट न जाएंगे?
सामाजिक न्याय से कांग्रेस के कैंपेन का आगाज
राहुल गांधी ने बिहार में कांग्रेस के चुनावी कैंपेन का आगाज़ सामाजिक न्याय के साथ किया था. 18 जनवरी को पटना में ‘संविधान रक्षा’ के नाम पर आयोजित कार्यक्रम में राहुल गांधी ने शिरकत की थी. इस दौरान राहुल ने सामाजिक न्याय का नारा बुलंद करते हुए जातिगत जनगणना और दलित-पिछड़ों की भागीदारी का मुद्दा उठाया था.
फरवरी में राहुल गांधी पासी समाज से आने वाले जगलाल चौधरी की 130वीं जयंती में शामिल हुए थे. इस तरह राहुल गांधी ने बिहार में अगस्त से पहले तक पांच दौरे किए थे, वो सभी आरक्षण, संविधान और सामाजिक न्याय के मुद्दे पर थे. इस दौरान राहुल ने दलित समाज के तमाम नेताओं को अपने मिशन के साथ जोड़ा था. दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर रतन लाल बिहार से आते हैं और उन्होंने भी कांग्रेस का दामन थाम लिया था.
राहुल गांधी का दलित-ओबीसी पर फोकस
जनवरी से लेकर जुलाई तक राहुल गांधी अपने बिहार दौरे पर अनुसूचित जाति और अति पिछड़े वर्ग से जुड़े हुए लोगों से मुलाक़ात भी करते रहे और 50 फीसदी की आरक्षण सीमा हटाने की वकालत करते नज़र आते. पसमांदा मुस्लिम महाज़ के नेता, पूर्व सांसद अली अनवर अंसारी और दशरथ माँझी के बेटे को राहुल गांधी ने बिहार में कांग्रेस में शामिल कराया था. दशरथ माँझी दलित समाज की मुसहर जाति से आते हैं.
कांग्रेस दोबारा से अपने कोर वोटबैंक रहे दलित और अतिपिछड़ी जातियों के बीच अपनी सियासी पैठ जमाने की कोशिश कर रही है. राहुल गांधी दलित-पिछड़े और आदिवासी समुदाय की निजी कंपनियों और सरकार के अहम पदों में भागीदारी के मुद्दे को लगातार उठा रहे हैं. राजेश राम जैसे दलित नेता को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी तो सुशील पासी को सह-प्रभारी नियुक्त किया. इस तरह राहुल ने बिहार में कांग्रेस के कैंपेन का आगाज़ किया.
रोज़गार और पलायन पर यात्रा निकाली
कांग्रेस ने बिहार में कन्हैया कुमार की अगुवाई में बेरोज़गारी और पलायन के मुद्दे पर पदयात्रा निकाली थी. पश्चिम चंपारण से शुरू हुई यह यात्रा विभिन्न ज़िलों से होते हुए पटना में समाप्त हुई थी. इस यात्रा का नाम ‘नौकरी दो, पलायन रोको’ रखा गया था. पलायन और नौकरी के मुद्दे पर कांग्रेस ने पदयात्रा निकालकर सियासी माहौल बनाने का काम किया. कांग्रेस ने इस यात्रा में प्रमुख रूप से शिक्षा, नौकरी और पलायन का सियासी नैरेटिव सेट किया था.
बिहार और बिहार के लोग पढ़ाई, इलाज और कमाई के लिए ही बिहार से पलायन करने को मजबूर हैं. नीतीश सरकार इसे रोकने में फेल रही है. बिहार में समय से न नौकरियों के पदों को भरा जाता है और न ही परीक्षा के रिज़ल्ट आते हैं. बिहार चुनाव से पहले कांग्रेस ने रोज़गार और पलायन के मुद्दे को लेकर नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार के ख़िलाफ़ सियासी एजेंडा सेट करते नज़र आए थे.
‘वोट चोरी’ पर शिफ़्ट हो गई कांग्रेस
कांग्रेस ने रोज़गार और पलायन के मुद्दे पर यात्रा निकाली, संगठन में दलितों, पिछड़ों को जगह दी, लेकिन एसआईआर प्रक्रिया के शुरू होते ही कांग्रेस ने वोटर अधिकार यात्रा निकाली. राहुल गांधी ने 17 दिनों में 20 से ज़्यादा ज़िलों से होते हुए 1300 किलोमीटर का सफ़र तय किया, जिसके चलते पार्टी का फोकस ‘वोट चोरी’ पर केंद्रित हो गया. कांग्रेस का बिहार में कैंपेन पूरी तरह ‘वोट चोरी’ के इर्द-गिर्द सिमटता जा रहा है.
राहुल गांधी ने गुरुवार को बीजेपी और चुनाव आयोग पर ‘वोट चोरी’ के मुद्दे पर दूसरी बार प्रेजेंटेशन दिया. कर्नाटक और महाराष्ट्र की विधानसभा सीटों का उदाहरण देते हुए राहुल गांधी ने मतदाता सूची में कथित धांधली का आरोप लगाया. राहुल ने दावा किया कि कैसे कर्नाटक में कांग्रेस के वोटरों के नाम वोटर लिस्ट से काट दिए गए, जबकि महाराष्ट्र में पाँच महीने के अंतराल में नए वोट जोड़े गए. राहुल ने कहा कि उनके पास पूरे सबूत मौजूद हैं.
बिहार में कैसे पीछे छूटते गए अहम मुद्दे
‘वोट चोरी’ के मुद्दे पर राहुल गांधी जिस तरह से हमलावर हैं, उसे बिहार के चुनाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है. बिहार में उनकी ‘वोटर अधिकार यात्रा’ को अच्छा रिस्पॉन्स मिला था और कांग्रेस के कई नेता मानते हैं कि वे सही मुद्दा उठा रहे हैं, लेकिन पार्टी के कुछ नेताओं को चिंता है कि ‘वोट चोरी’ पर अधिक ध्यान देने से कांग्रेस के सामाजिक न्याय, रोज़गार और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पीछे छूटते जा रहे हैं.
राहुल गांधी ने गुरुवार को जिस तरह ‘वोट चोरी’ के मुद्दे पर आक्रामक तेवर अपनाया है, उसे देखते हुए माना जा रहा है कि इस अभियान को लंबे समय तक बनाए रखना मुश्किल होगा. वहीं, प्रशांत किशोर युवाओं को नौकरी, शिक्षा जैसे मुद्दे उठाकर सियासी नैरेटिव सेट करने में जुटे हैं तो सीएम नीतीश कुमार लोकलुभावन ऐलान करके सियासी माहौल अपने अनुकूल बनाए रखने में जुटे हैं. कांग्रेस के लिए ‘वोट चोरी’ मुद्दा ही अहम बन गया है, जिसके चलते बिहार को प्रभावित करने वाले अहम मुद्दे पीछे छूट रहे हैं.
तेजस्वी ने राहुल से अलग पकड़ी राह
राहुल गांधी ‘वोट चोरी’ के मुद्दे को कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि इसे सीधे आम जनता की ज़िंदगी से संबंधित दिखाया जा सके. रणनीति यह है कि मतदाता सूची से नाम कटने का मतलब है कि लाभार्थी योजनाओं से भी बाहर होना, लेकिन कांग्रेस के भीतर ही यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह संदेश चुनाव तक टिक पाएगा और पर्याप्त रूप से स्पष्ट होगा.
महागठबंधन के नेताओं के मुताबिक़ ज़मीनी स्तर पर ‘वोट चोरी’ का मुद्दा उतना असरदार साबित नहीं हो रहा और आशंका है कि चुनाव नज़दीक आते-आते लोग इसे भूल भी सकते हैं. यही वजह है कि आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने ‘बिहार अधिकार यात्रा’ शुरू करके उन मुद्दों को उठाने की कोशिश की है, जिनसे बिहार चुनाव पर सियासी प्रभाव डाला जा सके.
तेजस्वी अपनी यात्रा में रोज़गार, महिलाओं, शिक्षा, किसानों के मुद्दे को उठा रहे हैं. इससे साफ़ है कि तेजस्वी इस बात को बखूबी समझ रहे हैं कि सिर्फ़ ‘वोट चोरी’ के नैरेटिव से नीतीश कुमार को मात नहीं दी जा सकती है.
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