भक्ति काल के प्रमुख कवि रसखान लिखते हैं कि…
पाहन हौं तो वही गिरि को जो धर्यौ कर छत्र पुरंदर कारन.
जो खग हौं तौ बसेरो करौं मिलि कालिंदी-कूल-कदंब की डारन॥
(अगर मैं पत्थर बनकर बन कर जन्म लूं तो मैं उसी गोवर्धन पर्वत का एक हिस्सा बनूं जिसे श्रीकृष्ण ने छत्र की तरह अपने हाथ पर उठा लिया था. यदि मुझे पक्षी-योनि मिले, तो मैं ब्रज में ही जन्म पाऊं ताकि मैं यमुना के तट पर खड़े हुए कदम्ब वृक्ष की डालियों में निवास कर सकूं, जिस पर श्रीकृष्ण झूला झूलते हैं.)
श्रीकृष्ण की लीलाओं का साक्षी है कदंब
कवि रसखान की इस कविता में खास तौर पर कदंब के वृक्ष की बात हुई है. उन्होंने कदंब वृक्ष को श्रीकृष्ण से नजदीकी के तौर पर सामने रखा है. औषधीय गुणों से भरपूर, साहित्य में कवियों और लेखकों का प्रिय और पुराणों में वर्णित भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय वृक्ष साथ ही उनकी लीलाओं का साक्षी भारतीय संस्कृति और धरोहर का प्रतीक है.
किंग चार्ल्स ने पीएम मोदी को दिया है उपहार
आज इसकी बात करने का खास दिन इसलिए है, क्योंकि इसकी चर्चा ब्रिटेन तक हो रही है. हुआ ये है कि, ब्रिटेन के किंग चार्ल्स तृतीय ने पीएम नरेंद्र मोदी को उनके 75वें जन्मदिन पर एक खास उपहार के तौर ‘कदंब का पेड़ भेंट’ किया है. नई दिल्ली में ब्रिटिश हाई कमीशन ने एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए ये जानकारी शेयर की है. यह उपहार पीएम मोदी की पर्यावरण संरक्षण पहल “एक पेड़ मां के नाम” मुहिम से प्रेरित है, जो दोनों ही देशों की की पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है. यह पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता और दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों का प्रतीक है.
प्राचीन कर्नाटक और कदंब राजवंश
ब्रिटेन से मैत्री, पर्यावरण के संरक्षण और भारतीय संस्कृति को खास तौर पर तवज्जो देने का प्रतीक ये पेड़ यूं ही सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक नहीं बन जाता है. इसके महत्व को पुराणों से लेकर आदिकाल के संस्कृत काव्यों में भी रेखांकित किया गया है. बल्कि आपको जानकर आश्चर्य होगा कि कदंब के वृक्ष को उपहार में देने की एक प्राचीन परंपरा भी रही है. कर्नाटक में प्राचीन काल में कदंब की पौध का आदान-प्रदान दो राज्यों के बीच मित्रता के तौर पर ही देखा जाता था. राज्यों की सीमा पर कदंब वृक्ष लगाने का ये संकेत होता था कि इन राज्यों में शत्रुता नहीं है.
कर्नाटक में कदंब राजवंश का शासन भी रहा है. उत्तरी कर्नाटक के प्राचीन क्षेत्र बनवासी में ३४५ से ५२५ ईसवी तक राज्य करने वाले कदंब शासकों का भी इस वृक्ष से गहरा संबंध माना जाता है. तुलु ब्राह्मणों के इतिहास का वर्णन करने वाले एक ग्रंथ ग्राम पद्धति में दर्ज है कि कदंब वंश के प्रवर्तक मयूर शर्मा का जन्म कदंब के पेड़ के नीचे हुआ था. इसी कारण उनके शासन कदंब वृक्ष पूज्यनीय था और लोग वार्षिक धार्मिक उत्सव के दौरान मित्रों-संबंधियों को कदंब वृक्ष की डाल उपहार में देते थे.
साहित्य में कदंब वृक्ष
भारतीय साहित्य और संस्कृति में कदंब ऐसा वृक्ष है कि जिसका उल्लेख साहित्य वाली उपमाओं में काफी हुआ है. इसके फूल, इसके फल प्रेम, विश्वास और शुद्ध कामना के प्रतीक हैं. उत्तर भारत में भी ब्रजक्षेत्र का यह प्रसिद्ध फूलदार वृक्ष जब फूलता है, तब हल्के पीले रंग के छोटे-छोटे फूलों से भर जाता है. उस समय इसके फूलों की मदमस्त सुगंध से ब्रज के बाग-बगीचे गमकने लगते हैं. कदंब का भारतीय संस्कृति और साहित्य के साथ गहरा नाता है.
शास्त्रीय संगीत में कदंब
यमुना नदी के किनारे भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं की अनेक कथाएं इस वृक्ष से जुड़ी हैं. कालिया मर्दन के लिए उन्होंने इसी पेड़ से कूदकर छलांग लगाई. भागवत पुराण में तो गोपी वस्त्रों को चुराने की कथा आती है. एकदिन गोपियां यमुना में स्नान कर रही थीं और उन्होंने अपने सारे कपड़े किनारे पर रखे थे. अब बालकृष्ण आए और उन्होंने उनके वस्त्र चुरा लिए और चढ़कर कदंब के पेड़ पर बैठ गए. तब गोपियों ने उनसे प्रार्थना की.
भागवत की इस कथा और गोपियों की प्रार्थना को हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के राग देशकार में बहुत खूबसूरती से पिरोया गया है.
तुम पर वारी कृष्ण मुरारी
इतनी हमारी सुनो बनवारी
लेकर चीर कदंब पर बैठे
हम जल मांझ उघारी….
वृंदावन के यमुना तट पर स्थित कदंब के संबंध में एक पौराणिक कथा है कि विष्णु का वाहन गरुड़ जब स्वर्ग से अमृत पीकर वापस लौटा तब उसकी चोंच में लगी अमृत की कुछ बूंदें कदंब के वृक्ष पर गिर गईं. उस अमृत का ही प्रभाव है कि कदंब का पेड़ हमेशा हरा भरा रहता है. वर्षा ऋतु में जहां हर ओर हरियाली छायी रहती है, इस हरितिमा में कदंब की अनोखी ही पीली आभा छा जाती है, क्योंकि बारिश के समय में कदंब का वृक्ष पीले रंग के गोल फूलों से लद जाता है. ऐसा लगता है कि हरे-हरे दोनों में पीले लड्डू से रख दिए गए हों. या पीली गेंदे झूल रही हों. इन पीले फूलों की गंध बड़ी ही मनभावन होती है.
पुराणों में कदंब की महिमा
वामन पुराण के अनुसार कदंब कंदर्प यानी कामदेव के हाथ से उपजा वृक्ष है. इसी कारण इसके फूलों की गंध वातावरण को मादक बना देती है. यह भी कहा गया है कि कामदेव अपने धनुष पर जिस फूल का तीर चढ़ाते हैं वह कदंब ही है. रामायण में जिक्र आता है कि जब श्रीराम ऋष्यमूक पर्वत पर भ्रमण कर रहे थे, तब भंवरे कदंब के फूलों का रसपान करने में इतने मस्त थे कि बारिश आने पर उनसे उड़ा ही नहीं गया. अरण्य कांड में पंचवटी के वृक्षों में कंदंब का भी उल्लेख है. विष्णु पुराण में भी कदंब का जिक्र है, जहां ये भी लिखा मिलता है कि श्रीकृष्ण के भाई बलराम कदंब के फूलों से बने रस को बहुत पसंद करते थे. इसलिए उनका एक नाम हलिप्रिय भी है. कदंब के फूलों तथा फलों से बनी मदिरा को कादंबरी कहा जाता है.
पुराणों में इसका महत्व है तो पूजा में भी यह कम जगह नहीं घेरे है. देवी काली को यह प्रिय है. महार्णव तंत्र में सिद्ध काली को कदंब वन में विहार करने वाली देवी कहा गया है. वे कदंब वृक्ष में ही वास करती हैं और कादंबरी का पान करती हैं. ब्रह्माण्ड पुराण में ललिता देवी यानी त्रिपुर सुंदरी जो माता पार्वती का विराट स्वरूप हैं, उन्हें भी कदंबेशी और कदंब वासिनी माना गया है. भागवत पुराण के अनुसार विष्णु कदंब पुष्पी रंग के वस्त्र पहनते हैं. जो पीली आभा लिए हुए हैं.
सस्कृत साहित्य में कदंब
कालिदास ने रघुवंश में भी कदंब के केसर के लेप का महत्व बताया है. विक्रमोर्वशीयम में उन्होंने पुरुरवा के विरह वर्णन का जिक्र कदंब पुष्पों के सहारे ही किया है. ‘मेघदूत` में यक्ष की अलकापुरी की सुंदरियों के केश भी कदंब पुष्पों से सजे-धजे दिखते हैं. बाणभट्ट की कादंबरी की नायिका कादंबरी है.
भारवि, माघ, भवभूति ने भी कदंब को साहित्य में खूब रचा है. बौद्ध और जैन ग्रंथों में भी कदंब की सुगंध बसी हुई है. वैष्णवों के अलावा कदंब वृक्ष शैवों के लिए भी पूज्य है. दक्षिण भारतीयों के अनुसार यह पार्वती का प्रिय है. इसीलिए वे कदम्बवन में निवास करती हैं और उनका एक नाम कदंब प्रिया है. कदंब पुष्पों से भगवान कार्तिकेय की तथा इसकी सुकोमल टहनियों से भगवान शिव का पूजन किया जाता है. मान्यता है कि इस पवित्र वृक्ष का पूजन करने से सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. कदंब के पेड़ को बौध धर्म का पेड़ भी कहा जाता है. एक और पौराणिक कथानुसार बिछुड़े हुए प्रेमियों को मिलाने में भी कदंब की महत्ता है.
आयुर्वेद में कदंब
तभी तो राधा-कृष्ण के शाश्वत प्रेम में कदंब मिलन के एक रूपक के तौर पर बार-बार सामने आता है. ज्योतिष कदंब शतभिषा नक्षत्र का प्रतीक बन जाता है और यहीं से इसका प्रवेश आयुर्वेद में भी हो जाता है, क्योंकि शतभिषा नक्षत्र वैद्यों और आयुर्वेद से जुड़ा नक्षत्र है. शतभिषा का अर्थ है ‘सौ वैद्य’
इस तरह कदंब भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत है. पांच हजार साल और उससे भी पुरानी गाथा का जीता-जागता प्रमाण है. हमारी पहचान है.
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