प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नॉर्थ-ईस्ट राज्यों का दौरा संघर्ष प्रभावित मणिपुर के लिए बेहद अहम रहा. मणिपुर में 20 मई 2023 से शुरू हुआ हिंसा का दौर अब थम गया है. गोलीबारी बंद हो गई है. बंकरों में रहने वाले लोग अपनी दिनचर्या में लौट आए हैं. युवा कॉलेज और यूनिवर्सिटी का रुख करने लगे हैं. दो साल और 4 महीने बाद मणिपुर बिल्कुल सामान्य और शांत दिख रहा है.
हालांकि इस राज्य में अब भी 2023 में हुए जातीय संघर्ष का असर दिख रहा है. प्रधानमंत्री मोदी ने हिंसाग्रस्त चुराचंदपुर जिले में 7000 करोड़ रुपये की परियोजना की नींव रखी, ये वही जगह है जहां सबसे ज्यादा हिंसा हुई थी. पहाड़ी जिलों से कई लोग मारे गए थे, और युवा भारी भरकम हथियार लिए अपने गांवों की सुरक्षा के लिए बंकरों में बैठे थे.
प्रधानमंत्री मोदी ने मणिपुर में आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों से मुलाकात की और उन्हें सांत्वना दी, जो इस हिंसा पीड़ित राज्य के लिए बेहद जरूरी थी. हालांकि कुकी और मैतेई समुदायों के बीच अभी भी खाई नहीं पाटी जा सकी है. चुराचंदपुर के लोग सुरक्षा कारणों और आशंकाओं के चलते इम्फाल घाटी नहीं जा पा रहे हैं. इसी तरह इम्फाल घाटी में रहने वाले मैतैई समुदाय के लोग भी चुराचंदपुर या कांगपोकपी के पहाड़ी जिलों की यात्रा नहीं कर पा रहे हैं.
दोनों समुदायों का एक-दूसरे के क्षेत्र में जाना मुश्किल
बिशनुपुर जिला और पास के पहाड़ी क्षेत्र हिंसा के बाद बफर ज़ोन बन गए हैं और अब सुरक्षा एजेंसियों द्वारा वहां सुरक्षा दी जा रही है. न तो कुकी-जोमी या पहाड़ी जनजाति के लोग घाटी में प्रवेश कर पा रहे हैं, न ही घाटी में रहने वाले मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में जा पा रहे हैं.
‘इंफाल से फ्लाइट नहीं पकड़ सकते’
हिंसा के चलते बच्चों और महिलाओं समेत हजारों लोग विस्थापित हुए और प्रशासन द्वारा बनाए गए राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं. चुराचंदपुर के लोगों के लिए सबसे कठिन बात यह है कि मेडिकल इमरजेंसी के दौरान भी वे 65 किलोमीटर दूर इम्फाल नहीं जा पा रहे हैं. चुराचांदपुर में कुकी समुदाय की यमथांग नाम की एक महिला ने आजतक को बताया कि अगर हमें उच्च शिक्षा या मेडिकल इमरजेंसी के लिए दिल्ली जाना पड़ता है तो हम डर के कारण इम्फाल नहीं जा पाते, बल्कि 13 से 14 घंटे का लंबा सफर तय करके मिजोरम के आइजोल जाते हैं और वहां से दिल्ली के लिए फ्लाइट पकड़ते हैं. ये बहुत महंगा है और समय भी लगता है, लेकिन हमें जीवित रहने के लिए यही करना पड़ता है.
बफर ज़ोन को पार करना मुश्किल
इम्फाल को चुराचांदपुर से जोड़ने वाला नेशनल हाईवे अब आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति के लिए खुला है. फिर भी बफर ज़ोन को पार करना किसी बाहरी व्यक्ति के लिए बेहद मुश्किल काम है, क्योंकि कई सुरक्षा एजेंसियां यात्रियों के उद्देश्य और पहचान पत्र की जांच करती हैं, तभी आगे बढ़ने देती हैं.
शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की समस्या
लिंडा किम और माचिएल चुराचांदपुर के निवासी हैं और हैमगतमलका गांव के कुकी-ज़ोमी समुदाय से हैं. उन्होंने कहा कि अब यहां गोलीबारी नहीं है, शांति है. इसीलिए हम प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत करने आए हैं. शांति के बाद ही भविष्य के लिए द्वार खुलेंगे. लिंडा ने कहा कि बंकर अभी भी हैं, लेकिन हमारे लड़के और घर के पुरुष अपनी सामान्य ज़िंदगी में लौट चुके हैं. हम शांति चाहते हैं, कोई हमेशा लड़ाई नहीं चाहता. संघर्ष खत्म हो गया है. लिंडा ने यह भी कहा कि शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं में समस्याएं अभी भी गंभीर हैं. इम्फाल नहीं जा पाने के कारण लोग महंगी और लंबी यात्रा करके मजबूरी में आईजोल जाते हैं, इससे खर्च दोगुना हो गया है.
क्या चाहते हैं चुराचांदपुर के लोग?
चुराचांदपुर के एक अन्य निवासी माइकल ने कहा कि ज़िले के लिए एक अलग प्रशासन ही एकमात्र दीर्घकालिक समाधान है. लेकिन ये अभी दूर का सपना है. दरअसल, पहाड़ी इलाकों में रहने वाले अधिकांश लोगों के लिए चिंता की बात ये है कि जब तक वित्त और प्रशासन का नियंत्रण घाटी के लोगों के पास रहेगा, पहाड़ी ज़िलों के विकास की अनदेखी की जाएगी और इससे उनकी आजीविका, जीवनयापन, रोज़गार, शिक्षा और जीवन के अन्य ज़रूरी पहलू प्रभावित होंगे.
‘पीएम मोदी की यात्रा शांति की दिशा में बड़ा कदम’
माइकल कहते हैं कि हमें खुशी है कि प्रधानमंत्री मोदी यहां आए. यह शांति की दिशा में एक बड़ा कदम है. और दो समुदायों के बीच की खाई को पाटेगा. हालांकि जब तक घाटी के लोग प्रशासन को नियंत्रित करते रहेंगे, तब तक समस्या बनी रहेगी. क्योंकि पहाड़ों से धन और ध्यान हमेशा अनदेखा किया जाता रहेगा. प्रधानमंत्री मोदी ने मणिपुर दौरे के दौरान शांति बहाल करने और सामान्य जीवन सुनिश्चित करने पर जोर दिया, लेकिन दो समुदायों के बीच भरोसा और सामान्य संबंध बहाल करना फिलहाल चुनौती बना हुआ है.
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