बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन (INDIA ब्लॉक) और एनडीए गठबंधन दोनों ही ओर से चुनाव प्रचार चरम पर है. 2020 के विधानसभा चुनाव परिणामों को आधार माने तो महागठबंधन का पलड़ा भारी है. पर आरजेडी और कांग्रेस की आपसी कलह निश्चित ही एनडीए को माइलेज दिलाती दिख रही है. तेजस्वी के सीएम फेस को लेकर महागठबंधन में क्या चल रहा है यह राजनीतिक विश्लेषकों को भी समझ में नहीं आ रहा है. अभी कुछ दिन पहले ही करीब 2 हफ्ते की लंबी वोटर अधिकार यात्रा राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने एक साथ मिलकर निकाली थी. इस यात्रा को जनता का भरपूर प्यार भी मिला पर यहां भी तेजस्वी यादव का नेतृत्व उभरकर सामने नहीं आया. वो राहुल गांधी के पिछलग्गू ही बनकर रह गये.
राहुल गांधी ने पूरी यात्रा के दौरान तेजस्वी को महागठबंधन की ओर से सीएम कैंडिडेट बोलने से परहेज करते दिखे. तेजस्वी खुद अपने आपको बिहार का सीएम कैंडिडेट बताते रहे पर राहुल ने एक बार इशारे में भी उन्हें सीएम का फेस स्वीकर नहीं किया. हद तो तब हो गई जब बुधवार को कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावेरू ने यह कह दिया कि बिहार का सीएम जनता तय करेगी. इस तरह एक बार फिर कांग्रेस ने तेजस्वी यादव को सीएम कैंडिडेट मानने से इनकार कर दिया है. मतलब साफ है कि कांग्रेस को सीएम कैंडिडेट के रूप में तेजस्वी यादव स्वीकार नहीं हैं. कांग्रेस की यह बात महागठबंधन की एकता और रणनीति पर सवाल उठाता है. सवाल यह भी उठता है कि आखिर कांग्रेस तेजस्वी यादव को सीएम चेहरा बनाने से क्यों बच रही है?
बिहार में कांग्रेस की दीर्घकालीन रणनीति
कांग्रेस बिहार में अपनी खोई हुई जमीन को फिर से प्राप्त करना चाहती है. 1980 के दशक तक बिहार में कांग्रेस एक प्रमुख शक्ति थी, लेकिन 1990 के बाद लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार जैसे क्षेत्रीय नेताओं के उभरने से उसका प्रभाव कम होते बिल्कुल खत्म हो गया. हालत यह हो गई कि पिछले दो दशकों से कांग्रेस बिहार में लालू यादव के रहमो करम पर निर्भर है. 2020 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा, जब उसने 70 सीटों पर लड़कर केवल 19 सीटें जीतीं.
2020 में मिली बुरी पराजय के बावजूद राहुल गांधी के उत्साह में कोई कमी नहीं दिख रही है. राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ और 2024 के लोकसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन (9 में से 3 सीटें) ने कांग्रेस को आत्मविश्वास दिया है. जबकि पप्पू यादव को भी मिला दिया जाए तो कांग्रेस ने 4 सीटें जीतीं थी. दूसरी तरफ 2024 के ही लोकसभा चुनावों में आरजेडी ने 21 सीट पर चुनाव लड़कर 4 सीट ही जीत सकी. जाहिर है कि जीत का औसत कांग्रेस का आरजेडी के मुकाबले बहुत बेहतर रहा. पार्टी का मानना है कि वह बिहार में अपनी स्थिति को और मजबूत कर सकती है. कांग्रेस को लगता है कि अगर तेजस्वी को सीएम चेहरा बना दिया गया तो RJD का दबदबा और बढ़ेगा. जो कांग्रेस के दीर्घकालिक हितों के खिलाफ है.
RJD से अधिकतम सीट की सौदेबाजी की रणनीति
कांग्रेस का तेजस्वी को सीएम चेहरा न मानना एक रणनीतिक दबाव की राजनीति भी हो सकती है. RJD महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी है और तेजस्वी का नेतृत्व कांग्रेस आराम से स्वीकार कर लेती है तो जाहिर है कि अधिकतम सीटों के लिए सौदेबाजी नहीं कर सकेगी. 2020 में कांग्रेस को RJD ने 70 सीटें दी थीं, लेकिन इस बार पार्टी जिताऊ सीटों पर जोर दे रही है. जैसे कि वह क्षेत्र जहां उसका जनाधार मजबूत है. या जिन क्षेत्रों में मुस्लिम और दलित प्रभावी हैं. पिछली बार आरजेडी ने कांग्रेस को 70 सीट देने की उदारता तो दिखाई थी पर अधिकतर ऐसे विधानसभा क्षेत्र थे जहां आरजेडी या कांग्रेस की दाल नहीं गलने वाली थी.
कांग्रेस का यह रुख RJD को यह संदेश देता है कि वह बिना शर्त गठबंधन की शर्तें नहीं मानेगी. तेजस्वी को सीएम चेहरा न स्वीकार करके कांग्रेस यह सुनिश्चित करना चाहती है कि गठबंधन में उसकी आवाज सुनी जाएगी. हालांकि यह रणनीति बिहार में गठबंधन की एकता को जोखिम में डाल सकती है पर कांग्रेस के लिए सौदेबाजी का इससे बेहतर कोई और रास्ता भी नहीं है.
तेजस्वी की छवि और स्वीकार्यता पर सवाल
तेजस्वी यादव, हालांकि युवा और लोकप्रिय नेता हैं, उनकी छवि पर कई सवाल हैं. RJD पर भ्रष्टाचार और जंगलराज के आरोप लगते रहे हैं, जो लालू प्रसाद यादव के शासनकाल से जुड़े हैं. कांग्रेस का मानना हो सकता है कि तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने से NDA को जंगलराज का नैरेटिव मजबूत करने का मौका मिलेगा.
कांग्रेस पार्टी स्वयं भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रही है. उधर लालू परिवार पर भी कई भ्रष्टाचार केस पेंडिंग हैं. कुछ मामलों में सजा भी मिल चुकी है. तेजस्वी पर भी आय से अधिक संपत्ति का मामला चल रहा है. इस तरह कांग्रेस विवादास्पद चेहरे से दूरी बनाकर अपनी विश्वसनीयता को बचाने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस चाहती है कि तेजस्वी के बजाय एक तटस्थ या कम विवादास्पद चेहरे सामने लाया जाए जो सवर्ण और अन्य समुदायों को आकर्षित कर सके. कांग्रेस की रणनीति यह भी है कि जनता के सामने किसी को भी सीएम फेस न बनाया जाए. चुनाव परिणाम आने के बाद सीएम फेस चुना जाए. इससे जनता को कम से कम भ्रम में रखने का फायदा कांग्रेस को मिलेगा.
क्षेत्रीय और सामाजिक गणित
बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण महत्वपूर्ण हैं. RJD का आधार यादव और मुस्लिम समुदायों में मजबूत है. जबकि कांग्रेस का आधार सवर्ण, दलित, मुस्लिम और कुछ OBC समुदायों में है. पिछले कुछ चुनावों में देखने को मिला है कि मुस्लिम मतदाताओं का कांग्रेस की ओर झुकाव बढ़ा है. वैसे भी मुसलमान कांग्रेस के कोर वोटर रहे हैं.2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को बिहार सहित पूरे देश में मिली सफलता का कारण मुस्लिम और दलित वोट रहा है.
जिस तरह से पिछले चुनावों में आरजेडी ने मुसलिम प्रत्याशियों की संख्या में कमी की है उससे मुसलमानों में पार्टी के प्रति कुछ नाराजगी भी है. कांग्रेस उसे कैश करना चाहती है. दूसरी बात यह भी है कि कांग्रेस के वोटर्स अति पिछड़ी जातियां और कुछ सवर्ण हैं. कांग्रेस अगर तेजस्वी को सीएम कैंडिडेट मानती है तो उनके अति पिछड़ी जातियों और सवर्ण वोटों पर सेंध लग सकता है. बिहार में यह ट्रेंड रहा है कि यादव वोट जहां जाते हैं वहां अति पिछड़े और सवर्णों का वोट नहीं जाता है. कांग्रेस का तर्क है कि तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने से गठबंधन का वोट आधार संकीर्ण हो सकता है. कांग्रेस का मानना है कि एक तटस्थ चेहरा गठबंधन को व्यापक समर्थन दिला सकता है.
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