नेपाल में तख्तापलट के बाद अब क्या होगा, इसे लेकर सस्पेंस है. क्या Gen-Z का आंदोलन नेपाल में क्रांतिकारी बद लाव की वजह बनेगा या फिर कई गुटों और विचारधारा में बंटा Gen-Z का आंदोलन बिना किसी स्थायी समाधान के दम तोड़ देगा. क्योंकि Gen-Z का कोई एक चेहरा नहीं है.
वैसे नेपाल में आंदोलन के इतिहास को देखें तो साल 1996 में ठीक ऐसा ही आंदोलन राजशाही को उखाड़ फेंकने के लिए सीपीएन ने किया था, कामयाबी 2006 में मिली और 2008 में माओवादियों ने 240 साल पुरानी राजशाही को खत्म कर दिया. कभी राजशाही को उखाड़ फेकने वाले आंदोलनकारियों के खिलाफ आज Gen-Z ने आंदोलन किया और हिंसा के बलबूते मौजूदा सरकार को कुर्सी छोड़ने पर मजबूर कर दिया. Gen-Z को जीत तो मिल गई लेकिन लोकतंत्रिक व्यवस्था के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया.
ऐसे में कई सवाल हैं जो अब सभी के जेहन में हैं…
क्या Gen-Z मोहरा है, असल चेहरा कोई और है?
क्या नेपाल गृहयुद्ध की तरफ आगे बढ़ रहा है?
क्या Gen-Z की मांग पर अंतरिम सरकार बनेगी?
क्या तख्तापलट के बाद नेपाल में सेना राज करेगी?
क्या Gen Z का आंदोलन, खतरे की नई घंटी है?
चर्चा में ये चार नाम
नेपाल में Gen-Z के आंदोलन के बीच सबसे ज्यादा चर्चा में चार नाम है, खबरें यही हैं कि नेपाल में तख्तापलट के पीछे चार चेहरे हैं- सबसे पहले उन चार चेहरों को डिकोड करते हैं, जिनकी वजह से नेपाल में नौबत तख्तापलट तक पहुंच गई. पहला नाम है- सुदन गुरुंग, दूसरा नाम है- बालेन शाह, तीसरा नाम है रबि लमिछाने और चौथा नाम है सुशीला कार्की. दावा यही है कि Gen-Z के आंदोलन के सूत्रधार यही चार किरदार हैं. अब सवाल यही है कि नेपाल की राजनीति में इन चारों चेहरों का क्या असर है? क्या ये चेहरे नेपाल के नए भविष्य की इबारत लिखने में आगे आ सकते हैं?
नेपाल में जो हुआ, क्यों हुआ, कैसे हुआ, अब इन्हीं चार किरदारों से पूरी कड़ियां जोड़ी जा रही हैं. ऐसे में ये समझना जरूरी है कि आंदोलन के सूत्रधार बताए जा रहे किरदारों की कहानी क्या है. सबसे पहले बात आंदोलन का चेहरा बताए जा रहे लोगों की.
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नाम-सुदन गुरुंग, पेशा-समाजिक कार्यकता, उम्र-36 साल. कभी डीजे और नाइटक्लब चलाते थे. 2015 में भूकंप के बाद एनजीओ बनाई भूकंप में लोगों की मदद से युवाओं में लोकप्रिय हुए 2020 में कोरोना महामारी के दौरान सबकी मदद की. सोशल मीडिया पर बैन के खिलाफ आवाज बुलंद की. सरकार के खिलाफ युवाओं को प्रदर्शन के तरीके बताए. पुलिस बर्बरता पर पीएम ओली का इस्तीफा मांगा. वहीं नेपाल में तख्तापलट करने वाले चेहरों में ये नाम भी चर्चा में है.
नाम-बालेंद्र उर्फ बालेन शाह, पेशा-काठमांडू के मेयर, उम्र-35 साल. सिविल इंजीनियर-रैप आर्टिस्ट से नेता बने. 2012 में नेपाली हिप-हॉप और रैप इंडस्ट्री का हिस्सा बने. भ्रष्टाचार के खिलाफ गाए गीतों से लोकप्रिय हुए. 2022 में काठमांडू के निर्दलीय मेयर बने. ओली सरकार के भ्रष्टाचार पर लगातार हमलावर रहे. नौजवानों से भ्रष्टाचारी सरकार के तख्तापलट का आह्वान किया.
इस लिस्ट में एक चेहरा और हैं, जिसे पर्दे के पीछे आंदोलन का सूत्रधार बताया जा रहा है.
नाम-रबि लमिछाने, पेशा-राजनीति, उम्र-51 साल. राजनीति में आने से पहले पत्रकार और एंकर रहे. अपने शो में भ्रष्ट्राचार के खिलाफ मुहिम चलाई. टीवी शो की वजह से युवाओं के दिल में जगह बनाई. साल 2022 में पार्टी बनाई और चुनाव लड़ा. पार्टी के 20 सांसद जीते और डिप्टी पीएम बने. 2023 में नेपाल की नागरिकता न होने से सांसदी छिनी. 2024 में भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गए.
वहीं ओली सरकार की सबसे बड़ी आलोचक रहीं सुप्रीम कोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश का नाम भी आंदोलन से जुड़ा है.
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नाम-सुशीला कार्की, पेशा-पूर्व जज, लेखिका. उम्र-73 साल. वकील से सुप्रीम कोर्ट की जज बनीं. 2016 में नेपाल की मुख्य न्यायाधीश बनीं. महाभियोग के बाद कुर्सी गंवाई. नेपाल में सरकार के खिलाफ मुखर आवाज बनीं. आंदोलन में युवाओं के साथ सड़क पर उतरीं.
आज अंतरिम सरकार की कमान सुशीला कार्की संभाल सकती है, इसकी चर्चा सबसे ज्यादा है, वजह है कि आर्मी हेडक्वार्टर में सुशीला कार्की की सेना प्रमुख से हुई मुलाकात और Gen-Z की तरफ से कार्की के नाम को समर्थन मिला. लेकिन सुशीला कार्की को लेकर पेंच फंसा हुआ है, क्योंकि Gen-Z के आंदोलन से जुड़े सभी गुट इस नाम पर सहमत नहीं हैं. दरअसल Gen-Z का कोई चेहरा नहीं है, कोई संगठन नहीं है. Gen-Z के आंदोलन से अलग-अलग विचारधारा और अलग-अलग गुट शामिल हैं. अब तख्तापलट के बाद आंदोलन से जुड़े सभी गुटों की अपनी-अपनी मांगे हैं. यानी कुछ राजशाही की वापसी चाहते हैं. कुछ लोकतंत्र की बहाली, कुछ नई राजनैतिक व्यवस्था, कुछ नया संविधान मांग रहे हैं, तो कुछ अंतरिम सरकार.
इसी कंफ्यूजन की वजह से तख्तापलट के बाद अभी कोई स्थायी समाधान नजर नहीं आ रही है. आंदोलन ठंडा पड़ने लगा है, लेकिन नेपाल के बड़े-बड़े नेताओं की जान को खतरा है. रिपोर्ट्स के मुताबिक सेना ने कमान संभाल ली है, सुरक्षा को देखते हुए इस वक्त राष्ट्रपति को आर्मी हेडक्वाटर में रखा गया है, आर्मी मुख्यालय में ही पूर्व पीएम ओली समेत नेपाल के तमाम मंत्री और सांसद मौजूद हैं, यानी सभी सेना की प्रोटेक्शन में हैं और आर्मी मुख्यालय से ही देश चल रहा है.
नेपाल में उठी राजशाही की मांग
नेपाल के राजनीतिक संकट के बीच राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (RPP) ने एक बार फिर से संवैधानिक राजशाही की मांग उठाई है. आज तक से खास बातचीत में RPP के वरिष्ठ नेता धवल शम्शेर राणा ने कहा कि उनकी पार्टी देश के दीर्घकालिक भले के लिए राजशाही को जरूरी मानती है.
राणा ने कहा, ‘हमने हमेशा नेपाल में संवैधानिक राजशाही का समर्थन किया है. मौजूदा समय में भ्रष्टाचार सबसे बड़ा संकट है और जनता इसी वजह से राजनीतिक दलों से मोहभंग कर रही है. अगर यह सिलसिला यूं ही चलता रहा, तो नेपाल का भविष्य अस्थिरता में फंस सकता है.’ इंटरव्यू में उन्होंने यह भी साफ किया कि सुशीला कार्की जैसे नामों का समर्थन उनकी पार्टी कर सकती है, लेकिन दीर्घकालिक समाधान केवल संवैधानिक राजशाही की बहाली में है. इस बीच, Gen-Z आंदोलन के साथ बात आगे न बढ़ पाने और अंतरिम सरकार को लेकर जारी खींचतान के बीच फिर से राजशाही की वापसी की मांग जोर पकड़ रही है. राणा का कहना है कि RPP जैसी पार्टियां युवाओं की बेचैनी और जनता की नाराज़गी को समझ रही हैं और यही वजह है कि वे इस समय राजशाही को देश के लिए सबसे स्थायी रास्ता मानती हैं.
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Gen-Z प्रदर्शनकारियों की मांगें क्या हैं?
इसे लेकर Gen-Z की तरफ से दस सूत्रीय एजेंडा रखा गया है. सूत्रों के मुताबिक आंदोलनकारियों का दस सूत्रीय एजेंडे में पहला मुद्दा है- राष्ट्रपति फौरन संसद को भंग करें. दूसरा मुद्दा है- सुशीला कार्की के साथ मिलकर आगे का रोडमैप का ड्राफ्ट तय हो. तीसरा मुद्दा है- ड्राफ्ट राष्ट्रपति को सौंपें और उसे लागू करें. चौथा मुद्दा है- ड्राफ्ट के हिसाब से संविधान बदला जाए. पांचवां मुद्दा है- सुशीला कार्की के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बने. छठा मुद्दा है- अंतिरम सरकार में 9 मंत्री बनें. तीन Gen-Z से, तीन Gen-Y से तीन Gen-X से. सातंवां मुद्दा है- अगले 6 से 7 महीने में चुनाव करवाए जाए. आठवां मुद्दा- संविधान में भ्रष्टाचारी नेताओं के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगे. नौवां मुद्दा है- सेना के साथ तालमेल रखा जाए, शांति बहाली हो. दसवां मुद्दा है- विदेश में रह रहे नागरिकों को वोट का अधिकार मिले.
अब आगे क्या होगा?
जिस तरह से Gen Z ने विद्रोह की आग भड़काई और केपी शर्मा ओली सरकार का तख्तापलट किया, उसे नेपाल दशकों तक नहीं भूल पाएगा. विनाशकारी विरोध प्रदर्शनों ने पूरे नेपाल को हिलाकर रख दिया है. अब हर कोई यही सोच रहा है कि नेपाल किस रास्ते पर चलेगा? किसके हाथ में नेपाल की कमान होगी? क्योंकि नेपाल की आबादी करीब 3 करोड़ के आस-पास है और अब Gen-Z ने कहा है कि उनका मकसद नेपाल के संविधान को मिटाना नहीं, बल्कि संसद को भंग करना है. लेकिन सवाल यही है कि सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए, Gen-Z ने जो रास्ता अपनाया और नेपाल को जो नुकसान हुआ है, क्या वो इससे उबर पाएगा?
नेपाली सेना की भी हो रही आलोचना
नेपाल स्वास्थ्य मंत्रालय मुताबिक अब तक देशभर में 34 लोगों की मौत हुई है, और 1033 लोग घायल हुए हैं. नेपाल के पीएम ओली कहां छुपे हैं, हेलिकॉप्टर से कहां गए. अभी तक इसका पता नहीं चल पाया है. भले ही इस वक्त, नेपाल में आर्मी रूल है, लेकिन नेपाल की सेना की आलोचना भी हो रही है, कई लोग कह रहे हैं कि सेना खुद उन इमारतों की रक्षा नहीं कर पाई, जहां वह तैनात थी और इसीलिए, अभी तक नेपाल में अंतरिम सरकार कौन चलाएगा, इसपर सहमति भी नहीं बन पा रही है.
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