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    हजरतबल में अशोक चिह्न से तोड़फोड़ का समर्थन करने वाले भारत नहीं, कश्मीर के दुश्मन हैं

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    डल झील के किनारे स्थित हजरतबल दरगाह पैगंबर मोहम्मद के पवित्र बाल (रौ-ए-मुबारक) के लिए जानी जाती है. जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड ने सौंदर्यीकरण के बाद 3 सितंबर 2025 को एक शिलापट्ट लगाया था. इस पट्टिका पर राष्ट्रीय प्रतीकअशोक चिह्न अंकित था, जिसका उद्घाटन वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष और बीजेपी नेता दाराख्शां अंद्राबी ने किया. 5 सितंबर को जुमे की नमाज के दौरान भीड़ ने इस शिलापट्ट पर पत्थरों से हमला कर अशोक चिह्न को क्षतिग्रस्त कर दिया. पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज के आधार पर 26 लोगों को हिरासत में लिया है.

    हजरत बल दरगाह की यह घटना इस बात का सबूत है कि कुछ लोग ऐसे हैं जो नहीं चाहते कश्मीर में शांति रहे. ऑपरेशन सिंदूर के बाद आतंकी घटनाओं पर लगाम लग चुकी है. कश्मीर एक बार फिर से शांति की ओर है. तो कुछ लोग गाहे बगाहे ऐसी हरकतें कर रहे हैं जो कश्मीर में अशांति का कारण बने. इनका बस एक ही मकसद है कि कश्मीर में दुबारा टूरिस्ट न लौट सकें. आइये हजरत बल में राष्ट्र चिह्न के साथ हुए इस गेमप्लान को समझते हैं.

    हजरत बल की सुरक्षा और सौंदर्यीकरण अगर सरकार के बैनर तले हो रहा है तो मामला राष्ट्र से अलग कैसे हो गया

    27 दिसंबर 1963 को हजरतबल दरगाह में रखा पैगंबर मोहम्‍मद का पवित्र बाल चोरी हो गया था. जिसकी खोज करने के लिए तत्‍कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सीबीआई की विशेष टीम जम्‍मू कश्‍मीर में भेजी थी. करीब एक हफ्ते बाद 4 जनवरी 1964 को यह बाल बरामद कर लिया गया. फिर 4 फरवरी 1964 को इसे मुस्लिम श्रद्धालुओं को दिखाया गया. लेकिन इस बीच इन दो महीनों में बंगाल और तत्‍कालीन पूर्वी पाकिस्‍तान (आज के बांग्‍लादेश) में बहुत दंगे हुए. जिससे करीब दो लाख हिंदू शरणार्थी भारत आए.

    तब से हजरतबल दरगाह की सुरक्षा की जिम्मेदारी जम्मू-कश्मीर पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के पास है, विशेष रूप से केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) और स्थानीय पुलिस की संयुक्त टीमें. सुरक्षा व्यवस्था में स्थानीय पुलिस की निगरानी के साथ-साथ खुफिया एजेंसियां भी सक्रिय रहती हैं, क्योंकि हजरतबल दरगाह 1993 में जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के आतंकी हमले का गवाह रह चुकी है. इस घटना के बाद, कश्मीर रेंज के आईजीपी विजय कुमार जैसे वरिष्ठ अधिकारियों ने दरगाह का दौरा कर सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया.

    इसी तरह हजरतबल दरगाह के विकास और सौंदर्यीकरण की जिम्मेदारी जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड की है, जिसकी अध्यक्ष डॉ. सैयद दरख्शां अंद्राबी हैं. वक्फ बोर्ड ने पिछले कुछ वर्षों में दरगाह के बुनियादी ढांचे को उन्नत करने और इसके सौंदर्यीकरण के लिए एक व्यापक परियोजना शुरू की थी. 3 सितंबर 2025 को डॉ. अंद्राबी ने इस परियोजना का उद्घाटन किया, जिसमें स्थानीय विरासत शिल्प और कला का उपयोग किया गया.  दरगाह के आंतरिक भाग में शुद्ध सोने की नक्काशी, खतमबंद, पेपर माची, पिंजराकारी, सुलेख, और कांच की कला का उपयोग किया गया. कुरान की आयतों से सजे भव्य झूमर लगाए गए, और नूरखाने को जादुई रूप दिया गया.

    पूर्ण एयर कंडीशनिंग, डिजिटल इलेक्ट्रिसिटी सेटअप, और नया डिजिटल साउंड सिस्टम स्थापित किया गया. कश्मीरी शिल्प को बढ़ावा देने के लिए परियोजना में स्थानीय कारीगरों की विशेषज्ञता का उपयोग किया गया.

    सवाल यह उठता है कि जब दरगाह की सुरक्षा पुलिस और अर्धसैनिक बल कर रही हैं, दरगाह में करीब 30 से 40 करोड़ रुपये खर्च सरकार के बैनर तले हुआ है तो फिर राष्ट्रचिह्न को कैसे नकार सकते हैं. जाहिर है कि यह केवल और केवल कश्मीर को अशांत करने के इरादे से किया गया मामला है.

    उमर अब्दुल्ला और पीडीपी नेता महबूबा माहौल को धार्मिक रंग देकर कश्मीर के साथ अन्याय कर रहे

    इस घटना में नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता महबूबा मुफ्ती के बयानों ने विवाद को धार्मिक रंग देने का आरोप लगाकर कश्मीर को फिर अशांत कर रहे हैं. उमर अब्दुल्ला ने इस घटना पर टिप्पणी करते हुए कहा, राष्ट्रीय चिह्न सरकारी समारोहों और कार्यालयों के लिए उपयुक्त हैं, धार्मिक स्थलों के लिए नहीं. हजरतबल दरगाह में अशोक चिह्न लगाने की क्या जरूरत थी? यह कश्मीरियों की धार्मिक भावनाओं के साथ छेड़छाड़ है.

    महबूबा मुफ्ती ने इस घटना को ईशनिंदा करार दिया और कहा, कि इस्लाम में मूर्ति पूजा या प्रतीकों की पूजा निषिद्ध है. धार्मिक स्थल पर अशोक चिह्न लगाना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का प्रयास है. वक्फ बोर्ड को भंग करना चाहिए.बीजेपी और वक्फ बोर्ड ने इसे राष्ट्रविरोधी बयान बताया, जिसने भीड़ को उकसाने में भूमिका निभाई.

    दोनों नेताओं ने अपने बयानों में हजरतबल दरगाह की धार्मिक पवित्रता और इस्लामी सिद्धांतों का हवाला दिया. उमर अब्दुल्ला ने धार्मिक स्थल पर राष्ट्रीय चिह्न लगाने की आवश्यकता पर सवाल उठाया, जबकि महबूबा मुफ्ती ने इसे ईशनिंदा करार दिया. ये बयान स्थानीय समुदाय की धार्मिक भावनाओं को उजागर करते हैं, क्योंकि इस्लाम में प्रतीकों की पूजा को लेकर संवेदनशीलता है. जाहिर है कि इन बयानों को धार्मिक उन्माद भड़काने के रूप में देखा जा सकता है, क्योंकि इन्होंने भीड़ की कार्रवाई को अप्रत्यक्ष रूप से औचित्य प्रदान किया.

    अशोक चिह्न भारत की संप्रभुता का प्रतीक है, और इसे क्षतिग्रस्त करना राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971 के तहत अपराध है. बीजेपी और वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष दाराख्शां अंद्राबी ने दोनों नेताओं पर इस घटना को राष्ट्रविरोधी बताकर कश्मीरियों को बदनाम करने का आरोप लगाया. उनके बयानों ने इस घटना को धार्मिक संदर्भ में प्रस्तुत कर राष्ट्रीय एकता के बजाय क्षेत्रीय और धार्मिक पहचान को प्राथमिकता दी, जो कश्मीर में पहले से मौजूद तनाव को बढ़ा सकता है.

    कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद से नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी क्षेत्रीय पहचान और स्वायत्तता के मुद्दों पर सियासत करती रही हैं. इस घटना को धार्मिक रंग देकर दोनों नेता स्थानीय समुदाय की भावनाओं को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं. अशोक चिह्न को क्षतिग्रस्त करना संविधान के अनुच्छेद 51A (मौलिक कर्तव्यों) का उल्लंघन है, जो राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करने की अपेक्षा करता है. इन नेताओं ने इस कार्रवाई की निंदा करने के बजाय इसे धार्मिक संदर्भ में प्रस्तुत किया, जिससे कश्मीर को राष्ट्रीय मुख्यधारा से अलग-थलग करने का खतरा बढ़ गया.

    अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर में बीजेपी की राष्ट्रवादी नीतियों और क्षेत्रीय दलों की स्वायत्तता की मांग के बीच टकराव बढ़ा है. उमर और महबूबा ने इस घटना को बीजेपी की राष्ट्रवाद थोपने की नीति के खिलाफ पेश कर स्थानीय समुदाय को उकसाने की कोशिश की. यह कश्मीर के विकास और शांति के लिए हानिकारक हो सकता है.1963 में हजरतबल दरगाह से पवित्र बाल की चोरी ने भारत और पाकिस्तान में दंगे भड़काए थे. वर्तमान घटना में भी, उमर और महबूबा के बयान समान प्रभाव डाल सकते हैं. 

    अशोक चिह्न से इतनी नफरत है तो फिर देश से मुहब्बत कैसे करेंगे 

    सवाल यह उठता है कि यदि लोग राष्ट्रीय चिह्न से नफरत करते हैं, तो क्या वे देश से मुहब्बत कर सकते हैं? यह घटना धार्मिक संवेदनशीलता, राष्ट्रीय एकता, और संवैधानिक मूल्यों के बीच तनाव को उजागर करती है. अशोक चिह्न भारत की संप्रभुता और एकता का प्रतीक है, जिसे संविधान के तहत सम्मानित करना हर नागरिक का कर्तव्य है (अनुच्छेद 51A).

    हजरतबल में तोड़फोड़ को कुछ लोगों ने धार्मिक भावनाओं का परिणाम बताया, क्योंकि इस्लाम में प्रतीकों की पूजा निषिद्ध है. पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती और नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला ने धार्मिक स्थल पर अशोक चिह्न लगाने को अनुचित करार दिया. हालांकि, बीजेपी और वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष दाराख्शां अंद्राबी ने इसे राष्ट्रविरोधी कृत्य और आतंकी हमला बताया.यह घटना कश्मीर में क्षेत्रीय असंतोष और राष्ट्रीय एकता के बीच जटिल संबंध को दर्शाती है.

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