नेपाल में सोशल मीडिया बैन के बाद युवाओं की प्रतिक्रिया तुरंत देखने को मिली. फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म्स अचानक बंद हो गए, तो हजारों युवा सड़कों पर उतर आए और विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. वहीं, कई युवाओं ने VPN का सहारा लिया और डिजिटल दुनिया से जुड़ने की जुगत शुरू कर दी.
एक्सपर्ट बताते हैं किइस प्रतिक्रिया के पीछे मनोविज्ञान की Reactance Theory काम करती है . ये सिद्धांत बताता है कि जब किसी चीज से हमारा अधिकार या आजादी छीन ली जाती है, तो हमारा मन उसे और ज्यादा पाने की कोशिश करता है. यानी, बैन लगाने से अक्सर लोग उस चीज के और करीब चले आते हैं. इस पर एक शेर भी कहा जा चुका है, ‘जिस रिश्ते पर पहरा है, उससे रिश्ता गहरा है.’
युवाओं की पहचान बन चुका है सोशल मीडिया
विशेष रूप से Gen Z के लिए आज सोशल मीडिया सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं है. ये उनकी पहचान (identity), खुद की अभिव्यक्ति और स्वतंत्रता (freedom) का हिस्सा बन चुका है. उनके विचार, दोस्त, करियर और खुद की डिजिटल मौजूदगी इसी प्लेटफॉर्म पर निर्भर करती है. यही नहीं बड़ी संख्या में युवा अब सोशल मीडिया में एनफ्लुएंसर बनकर पैसा कमाने के आइडिया को भी खूब पसंद करते हैं. नेपाल के युवाओं ने यही महसूस किया और विरोध को एक बड़े आंदोलन में बदल दिया.
हमने भी देखा है कि टिकटॉक और PUBG बैन के समय लोग कैसे डिजिटल रास्ते खोजते हैं. भारत में PUBG बंद हुआ, तो लोग VPN और BGMI जैसे विकल्पों से वापसी कर गए. यही नहीं, चीन का ग्रेट फायरवॉल भी युवाओं को नहीं रोक पाया. नए-नए रास्ते, ऐप्स और ट्रिक्स के जरिए लोग हमेशा डिजिटल दुनिया से जुड़े रहते हैं.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
दिल्ली विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के शिक्षक डॉ. चंद्रप्रकाश कहते हैं कि जब लोग किसी चीज को अचानक खो देते हैं, उनके लिए उस वस्तु का महत्व और बढ़ जाता है. अब सोशल मीडिया जो Gen Z के लिए सिर्फ प्लेटफॉर्म नहीं, ये उनके सामाजिक जीवन, नेटवर्क और पहचान का हिस्सा बन चुका है. ऐसे में उनसे अचानक ये छीना जाना एक ब्लैक आउट जैसी स्थिति पैदा कर देता है. इससे विरोध का जन्म लेना स्वाभाविक बात है.
साइकोलॉजिस्ट डॉ. विधि एम पिलनिया कहती हैं कि बैन से असहजता और गुस्सा पैदा होता है और ये प्रतिक्रियाएं अक्सर रचनात्मक या विरोधपूर्ण रूप ले लेती हैं. VPN का उपयोग, प्रोटेस्ट या नए ऐप्स की खोज इसी मानसिक प्रक्रिया का हिस्सा है.
नेपाल में हुए बैन ने यही दिखा दिया कि डिजिटल आजादी अब सिर्फ इंटरनेट तक सीमित नहीं है, यह एक पीढ़ी की पहचान और आवाज बन गई है. बैन के बावजूद लोग जुड़ने की कोशिश करते हैं, नए रास्ते खोजते हैं और अपनी आवाज को दबने नहीं देते.
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