वैश्विक बाजारों में जब ‘मेड इन इंडिया’ सामान अपनी चमक बिखेरता है, तो हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. लेकिन भारत को केवल निर्यात के दम पर आर्थिक महाशक्ति बनाना संभव नहीं है. इसके लिए हमें अपने देश में स्वदेशी सामानों को प्राथमिकता देनी होगी, उन्हें खरीदना होगा और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना होगा.
जीएसटी काउंसिल के ऐतिहासिक सुधारों ने 22 सितंबर, 2025 से लागू होने वाली नई टैक्स व्यवस्था के साथ भारत के लोगों को एक सुनहरा मौका दिया है. यह मौका है दीवाली और नवरात्रि जैसे त्योहारों पर स्वदेशी सामानों को अपनाने का, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था नई ऊंचाइयों पर पहुंच सकती है. जीएसटी काउंसिल ने 12% और 28% के स्लैब को हटाकर अब 5% और 18% के स्लैब लागू करने का ऐलान किया है, जो 22 सितंबर से नवरात्रि के पहले दिन प्रभावी होंगे.
यह समय भारत के सबसे बड़े त्योहारी सीजन का है, जब घरेलू खपत अपने चरम पर होती है. कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) के आंकड़ों के अनुसार, 2023 में धनतेरस और दीवाली पर भारतीयों ने 3.75 लाख करोड़ रुपये और 2024 में 4.25 लाख करोड़ रुपये की खरीदारी की, जो पाकिस्तान के वार्षिक बजट के बराबर है. इस बार जीएसटी की दरों में कटौती से त्योहारी सीजन में खरीदारी में 7-8% की वृद्धि होने की उम्मीद है. अनुमान है कि 2025 में नवरात्रि, दशहरा, धनतेरस और दीवाली पर कुल खर्च 5.2 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है.
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स्वदेशी सामानों को प्राथमिकता क्यों?
अगर इस त्योहारी सीजन में हम स्वदेशी सामानों को प्राथमिकता दें, तो ‘मेड इन इंडिया’ को अभूतपूर्व ताकत मिलेगी. पिछले साल, जब छोटी गाड़ियों, मोटरसाइकिल, AC, वॉशिंग मशीन और खाद्य पदार्थों पर 28% जीएसटी और SUVs पर 17-22% कंपनसेशन सेस लागू था, तब भी 28 लाख वाहन बिके. गाड़ियों की बिक्री में 32%, टू-व्हीलर में 36%, थ्री-व्हीलर में 11.4% और ट्रैक्टर में 3% की वृद्धि दर्ज की गई. अब जब 350cc तक की बाइक और छोटी चार पहिया गाड़ियों पर जीएसटी घटकर 18% और इलेक्ट्रिक वाहनों पर 5% हो गया है, तो इस दीवाली वाहनों की बिक्री में और उछाल की उम्मीद है. यह स्वदेशी ऑटोमोबाइल कंपनियों जैसे टाटा, महिंद्रा और मारुति के लिए बड़ा अवसर है.
मेड इन इंडिया को कैसे बनाएं पहली पसंद
इंडिया फेस्टिव सीजन रिपोर्ट 2025 के अनुसार, इस त्योहारी सीजन में विज्ञापनों पर 5,080 करोड़ रुपये खर्च होंगे. आपको ये भी समझना होगा कि स्वदेशी सामानों के ज्यादा विज्ञापन नहीं होते. ये स्वदेशी सामान विदेशी ब्रांड्स के विज्ञापनों की चमक-दमक में अक्सर दब जाते हैं. इसलिए, खरीदारी से पहले आपको खुद भी थोड़ी रिसर्च करनी होगी. सामान की कंट्री ऑफ ओरिजिन जांचें. अगर आप 10-15 सामान खरीद रहे हैं, तो एक लिस्ट बनाएं और देखें कि कितने ‘मेड इन इंडिया’ हैं. दुकानदार भी ‘स्वदेशी’ लेबल लगाकर जागरूकता फैला सकते हैं. अगर इस दीवाली आधा सामान भी स्वदेशी खरीदा गया, तो भारत की अर्थव्यवस्था को नई गति मिलेगी.
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ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य और भविष्य का लक्ष्य
एक जमाने में हमारी अर्थव्यवस्था पूरी तरह आत्मनिर्भर थी. हम दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थे. साल 1000 में भारत की वैश्विक अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी 29% थी, जबकि चीन की 23% और पश्चिमी यूरोप की 9% थी. लेकिन 800 साल की गुलामी के बाद 1952 में यह हिस्सेदारी घटकर 3.8% रह गई. आज यह 4% है, जबकि बाकी देश हमसे आगे निकल गए. और ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भारत को खूब लूटा गया. इस कारण विदेशी सामानों पर हमारी निर्भरता बढ़ी है. जीएसटी सुधारों के साथ, अगर हम स्वदेशी खपत को बढ़ावा दें, तो 2031 तक भारत की 426 लाख करोड़ रुपये की खपत को देश में ही रखा जा सकता है. यह धन विदेशी कंपनियों के बजाय भारतीय उद्योगों को मजबूत करेगा, जिससे रोजगार बढ़ेगा और अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी.
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