चीन के तिआनजिन शहर में आज रविवार से दो दिवसीय शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (SCO) समिट का आगाज हो गया है. यह समिट 31 अगस्त से 1 सितंबर तक आयोजित होगी और इसे इस संगठन का अब तक का सबसे बड़ा सम्मेलन माना जा रहा है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इसकी मेजबानी कर रहे हैं.
यह समिट ऐसे समय हो रही है जब दुनिया में कई स्तरों पर जियोपॉलिटिकल टेंशन और ट्रेड वार्स चल रहे हैं. खासकर अमेरिका के टैरिफ विवाद, यूक्रेन युद्ध और मिडिल ईस्ट में जारी टकराव इस मंच को और अहम बना रहे हैं.
इस बार का आयोजन 2018 के बाद पहली बार चीन में हो रहा है और इसमें 20 से ज्यादा देशों के हेड्स ऑफ स्टेट और 10 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के लीडर्स शामिल हो रहे हैं,
- भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
- रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन
- ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियन
- पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ
- संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस
- आसियान (ASEAN) महासचिव काओ किम हाउर्न
- मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम
- इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो
- वियतनाम के प्रधानमंत्री फाम मिन्ह चिन्ह
- इसके अलावा कंबोडिया, लाओस और म्यांमार जैसे देशों के नेता भी मौजूद हैं.
SCO: 2001 से अब तक का सफर
SCO की शुरुआत 2001 में हुई थी. इससे पहले यह “शंघाई फाइव” के नाम से जाना जाता था, जिसे 1990 के दशक में चीन, रूस, कजाखस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान ने मिलकर बनाया था. इसका मकसद सीमा विवादों का हल निकालना और आपसी विश्वास कायम करना था.
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आज SCO में 10 फुल मेंबर्स हैं जिनमें उज्बेकिस्तान, भारत, पाकिस्तान, ईरान और हाल ही में शामिल हुआ बेलारूस भी शामिल है. अफगानिस्तान और मंगोलिया इसके ऑब्जर्वर हैं, जबकि तुर्किये, श्रीलंका, कंबोडिया और म्यांमार समेत 14 देश डायलॉग पार्टनर हैं. सदस्य देशों की आबादी मिलाकर यह दुनिया की लगभग 42% जनसंख्या और ग्लोबल GDP का 25% हिस्सा कवर करता है.
भारत-चीन रिश्ते और मोदी की यात्रा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2018 के बाद पहली बार चीन पहुंचे हैं. पिछले कुछ सालों से दोनों देशों के रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं, लेकिन अब रिश्ते में थोड़ी नरमी देखने को मिल रही है. हाल ही में अमेरिकी सरकार ने भारत के साथ टैरिफ कम करने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद भारत ने अपने कूटनीतिक संतुलन को नए सिरे से तय करना शुरू किया है. यही वजह है कि पीएम मोदी की यह यात्रा खास मायनों में महत्वपूर्ण है. चीनी विदेश मंत्री वांग यी हाल ही में भारत आए थे और उन्होंने कहा था कि भारत और चीन को एक-दूसरे को प्रतिद्वंद्वी नहीं बल्कि पार्टनर मानना चाहिए.
भारत-पाकिस्तान टकराव और SCO में तनाव
जून 2024 में SCO की डिफेंस मीटिंग के दौरान भारत ने एक जॉइंट स्टेटमेंट पर साइन करने से इनकार कर दिया था. वजह थी कि उस बयान में पाकिस्तान को प्राथमिकता दी गई और कश्मीर में 22 अप्रैल को पहलगाम में टूरिस्ट्स पर हुए हमले का जिक्र नहीं था. इस घटना के चलते भारत-पाकिस्तान के बीच हालात और बिगड़ गए थे.
इसके जवाब में जब भारत ने पाकिस्तान में ऑपरेशन ‘सिंदूर’ किया तब दावा है कि चीन ने पाकिस्तान को इंटेलिजेंस मुहैया कराई. इनके अलावा पाकिस्तान ने चीनी हथियारों का इस्तेमाल करके भारत पर हमले किए. फिर भी भारत और चीन एक टेबल पर बैठने को तैयार हैं. इसके बावजूद SCO का बढ़ता मेंबरशिप और पार्टनरशिप इस बात का संकेत है कि दुनिया मल्टीपोलर वर्ल्ड ऑर्डर की ओर बढ़ रही है.
SCO समिट का एजेंडा क्या है?
SCO आमतौर पर सिक्योरिटी, काउंटर-टेररिज्म, ट्रेड और एनर्जी कोऑपरेशन पर फोकस करता है, लेकिन मौजूदा हालात में यूक्रेन युद्ध, ईरान-इजरयल तनाव और अमेरिका के साथ बढ़ते टैरिफ विवाद भी एजेंडे में रहेंगे. यह समिट ऐसे वक्त हो रही है जब रूस और अमेरिका के बीच टकराव गहराया हुआ है.
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हाल ही में पुतिन और ट्रंप की अलास्का में हुई मीटिंग किसी बड़े नतीजे तक नहीं पहुंची. चीन लगातार यह संदेश दे रहा है कि संघर्षों का शांतिपूर्ण हल होना चाहिए. हालांकि, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने चीन को किसी भी तरह का सिक्योरिटी गारंटर मानने से इनकार कर दिया है. इस बीच जबकि पीएम मोदी चीन में हैं, जेलेंस्की ने पहले ही उनसे बात की है और इसके बाद बताया कि प्रधानमंत्री रूस के साथ यूक्रेन के मुद्दे पर बात करेंगे.
पश्चिमी देशों के मुकाबले का मंच
कई एक्सपर्ट्स मानते हैं कि SCO अब NATO और G7 जैसे पश्चिमी ढांचे का जवाब बनता जा रहा है. रूस, चीन, ईरान और भारत जैसे देश इसका इस्तेमाल वेस्टर्न इन्फ्लुएंस के खिलाफ बैलेंस बनाने के लिए कर रहे हैं. इसी संगठन से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चिढ़ते भी हैं, जहां कई बार डी-डॉलराइजेशन की बात भी उठी है. हालांकि, भारत ने इस एजेंडे से अपना किनारा कर लिया है, लेकिन संगठन में मुद्दे पर चर्चा की जाती रही है.
SCO समिट के बाद चीन का मिलिट्री परेड
तिआनजिन में एससीओ समिट के बाद चीन बुधवार (3 सितंबर) को द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार की 80वीं वर्षगांठ पर एक भव्य सैन्य परेड आयोजित करेगा. इसमें SCO समिट में आए कुछ लीडर्स भी शामिल होंगे. साथ ही, अन्य देशों के नेता जैसे उत्तर कोरिया के किम जोंग उन, बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको और ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियन भी इसमें मौजूद रहेंगे.
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