बिहार विधानसभा चुनाव की सियासी जंग फतह करने के लिए जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर हर संभव कोशिश में जुटे हैं. प्रशांत किशोर की नजर सूबे के 18 फीसदी मुस्लिम वोटबैंक पर है, जिसके लिए मोतिहारी के बापू सभागार में ‘मुस्लिम एकता सम्मेलन’ आयोजित किया गया. इस दौरान उन्होंने कहा कि अगर मुसलमान हमें समर्थन करते हैं तो हम बिहार में नीतीश और बीजेपी को ही नहीं, बल्कि दो साल बाद उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को भी हरा देंगे.
प्रशांत किशोर ने मुसलमानों से बीजेपी को हराने का फॉर्मूला बकायदा रखा. पीके ने कहा कि हमें आपका (मुसलमानों का) वोट नहीं चाहिए, हमें आपका साथ चाहिए. साथ ही कहा कि अगर 40 फीसदी हिंदू और 20 फीसदी मुसलमान एक साथ आ जाएं तो जन सुराज की जीत तय है. इसके साथ ही उन्होंने मुस्लिम समाज के पारंपरिक नेताओं पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्होंने हमेशा समुदाय को ठगा है.
प्रशांत किशोर इससे पहले मुस्लिमों को उनकी आबादी के लिहाज से विधानसभा चुनाव में टिकट देने का ऐलान कर चुके हैं. अब चुनावी तपिश के बीच मुस्लिम समुदाय के साथ सियासी केमिस्ट्री बनाने का दांव चल दिया है, लेकिन इसी वोटबैंक पर आरजेडी से लेकर कांग्रेस तक की नजर है. इसके अलावा असदुद्दीन ओवैसी का पूरा दारोमदार मुस्लिम सियासत पर टिका हुआ है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या प्रशांत किशोर मुस्लिमों का भरोसा जीत पाएंगे?
बिहार में मुस्लिम सियासत
बिहार में करीब 18 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. प्रदेश की कुल 243 विधानसभा सीटों में से करीब 50 सीटों पर हार-जीत मुस्लिम मतदाता तय करते हैं. इन सीटों पर 20 से 70 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं.
2020 के चुनाव में 19 सीटों पर मुस्लिम विधायक जीतकर आए थे जबकि 2015 में 24 मुस्लिम विधायक चुनाव जीते थे. पिछले चुनाव में आरजेडी से 8, कांग्रेस से 4, AIMIM से 5, लेफ्ट और बसपा से एक-एक मुस्लिम जीते थे. जेडीयू से कोई मुस्लिम नहीं जीत सका था जबकि बीजेपी ने किसी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया था. हालांकि, AIMIM के 5 में से 4 मुस्लिम विधायकों ने पाला बदलकर आरजेडी में चले गए तो बसपा से जीते विधायक ने जेडीयू का दामन थाम लिया.
वहीं, 2015 के विधानसभा चुनाव में कुल 24 मुस्लिम विधायक जीते थे, जिसमें आरजेडी से 11, कांग्रेस से 6, जेडीयू से 5, बीजेपी और सीपीआई से एक-एक जीतकर आए थे. बीजेपी ने दो मुस्लिम कैंडिडेट को उतारा था, जिनमें से एक ने जीत दर्ज की थी.
किसके साथ जाएंगे मुसलमान?
बिहार में मुस्लिम मतदाता आरजेडी का परंपरागत वोटर माना जाता है. कांग्रेस-आरजेडी-लेफ्ट के गठबंधन होने के चलते इस बार के चुनाव में मुस्लिम वोट के बिखराव का खतरा बहुत ही कम दिख रहा है, लेकिन असदुद्दीन ओवैसी से लेकर प्रशांत किशोर, नीतीश कुमार तक अपने साथ जोड़ने के मिशन में लगे हुए हैं.
एनडीए के पार्टनर नीतीश कुमार और चिराग पासवान की नजर भी मुस्लिम वोटबैंक पर है. बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने की वजह से मुस्लिम जेडीयू से लेकर चिराग पासवान और जीतन राम मांझी तक से नाराज दिख रहे हैं. इसके पीछे वक्फ कानून और एसआईआर जैसे मुद्दे अहम वजह बने हैं.
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बिहार में इस बार मुस्लिम समुदाय के लोग पूरी तरह से खामोशी अख्तियार कर चुके हैं. वो किसी भी एक पार्टी के साथ खड़े नहीं दिखाई दे रहे हैं, जिसके चलते सभी उन्हें अपने पाले में लाना चाहते हैं. मुस्लिम समुदाय की चुप्पी से कई दल बेचैन भी हैं.
हालांकि, कांग्रेस-जेडीयू-लेफ्ट की केमिस्ट्री का जरूर पलड़ा भारी है, लेकिन ओवैसी और प्रशांत किशोर जिस तरह से दांव चल रहे हैं. उससे महागठबंधन की चिंता बढ़ सकती है, लेकिन क्या मुस्लिम प्रशांत किशोर का भरोसा जीत पाएंगे, जो तमाम तरह के सियासी दांव चल रहे हैं. लेकिन, राहुल गांधी का बिहार की सियासत में सक्रिय होने के बाद पीके की सियासी उम्मीदों को तगड़ा झटका लगा है.
मुस्लिमों का दिल जीत पाएंगे पीके?
पटना के वरिष्ठ पत्रकार विजय कुमार सिंह कहते हैं कि प्रशांत किशोर लगातार अपनी सोशल इंजीनियरिंग को मजबूत करने के लिए पूरा फोकस दलित, मुस्लिम और अति पिछड़े वर्ग के वोटबैंक पर कर चुके हैं. पीके की यह पहल बिहार की राजनीति को नए मोड़ पर ला सकती है. बिहार में मुस्लिम-यादव समीकरण लालू यादव की सबसे बड़ी ताकत है, जिसमें सेंधमारी के लिए पीके लगातार कोशिश कर रहे हैं, लेकिन मुस्लिम समुदाय अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं. मुस्लिम का भरोसा जीतने के लिए पीके तमाम दांव चल रहे हैं.
बिहार के मुस्लिम वोटों पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार खालिद वसीम कहते हैं कि बिहार का मुस्लिम मतदाता बहुत रणनीति के साथ वोटिंग करता है. 2020 में ओवैसी की पार्टी को उन्हीं सीटों पर वोट किया है, जहां पर 60 से 70 फीसदी मुस्लिम वोटर थे. इसके अलावा बाकी की सीटों पर मुस्लिमों का एकमुश्त वोट महागठबंधन को मिला था. 2024 में मुस्लिमों का वोटिंग पैटर्न बदला है और ओवैसी के बजाय एकजुट होकर महागठबंधन को वोट दिए थे.
खालिद वसीम कहते हैं कि इस बार के चुनाव में मुस्लिमों को जोड़ने की कोशिश प्रशांत किशोर कर रहे हैं, लेकिन मुस्लिमों के बीच अपना भरोसा नहीं बना पा रहे हैं. इसकी वजह पीके का बीजेपी और जेडीयू के साथ रहा सियासी जुड़ाव.
2014 में नरेंद्र मोदी के लिए सियासी माहौल बनाने का काम पीके ने किया था, जिसे लेकर अब मुस्लिमों का भरोसा नहीं बन पा रहा है. यही नहीं, इस बार का चुनाव एनडीए और महागठबंधन के बीच जैसे-जैसे सिमटता जा रहा है. ऐसे में मुस्लिमों का पीके के साथ जाने की संभावना बहुत कम है, क्योंकि उनके सामने एक मजबूत विकल्प महागठबंधन के रूप में दिख रहा है.
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