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    दर्द के 9 साल, दुखभरे दिन और जुल्मों सितम की रातें… जिंदा जलने से पहले भी हर रोज मर रही थी निक्की

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    Greater Noida Nikkie Dowry Murder Case: जो एक दर्द है सीने में, वो ही सच्चा है. पर ये दर्द है कहां? किनके दिलों में है? पूछिए उन मां-बाप से जो अपनी बेटी या बेटियों को नाज़ों से पालते हैं. जरा सी चोट लग जाए तो उनकी जान निकल जाती है. पढ़ा लिखा कर उसे किसी काबिल बनाते हैं. फिर एक रोज अचानक वो चिड़िया बनकर किसी और के घर के आंगन में उतर जाती है. ठीक वैसे ही जैसे 9 साल पहले निक्की अपनी ससुराल के आंगन में उतरी थी.

    बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ… कायदे से ये नारा ही गलत है. क्योंकि ये नारा आज के इस दौर में भी इस बात का अहसास दिलाता है कि हमें बेटियों को बचाना है. इससे शर्मनाक और क्या होगा. लेकिन ये नारा हमें एक और सच बताता है. सच ये कि सचमुच हमारे देश में आज भी बेटियां मारी जा रही हैं. क्या अफसोसनाक इत्तेफाक है कि जिस यूपी में एक बेटी को जिंदा जला दिया गया, उसी यूपी में लगभग उसी वक्त जमीन और आसमान के बीच की खाली जगह यानि अंतरिक्ष से लौटकर इसी यूपी का एक बेटा शुभांशु शुक्ला यूपी लौटा है. शुभांशु आसमान की सैर कर आया और हम हैं कि जमीन पर अब भी अपनी बेटियों को बचाने की कोशिश ही कर रहे हैं.

    कैसा दर्द? कैसी तड़प? कैसे इंसान? अभी पिछले हफ्ते की ही तो बात थी, देश की सबसे बड़ी अदालत में दो किश्तों में 5 माननीय जज दस दिनों के लिए बैठे थे. ये तय करने के लिए कि कुत्तों को इंसानी बस्तियों में रहने का हक है या नहीं. तब उन कुत्तों तक के लिए इंसानों के दिलों में दर्द और तड़प थी. मगर उन इंसानों का क्या करें? जो पैदा तो इंसानी बस्तियों में इंसान का चोला पहन कर हुए, मगर क्या ये सचमुच इंसान हैं? 

    देखिए ना, विपिन की बेशर्मी. बीवी को कुछ घंटे पहले ही जिंदा जलाकर आया. पर चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं. ना कोई अफसोस. ना कोई मलाल. और ऊपर से कह क्या रहा है. मैंने नहीं मारी है, अपने आप मरी है. अच्छा हुआ कैमरे भी इंसान जैसे नहीं हैं. जो ऐसे ढिटाई से झूठ बोलें. विपिन की बेशर्म बातों का ऑडियो और बेगैरत हरकतों के वीडियो को सिर्फ एक साथ मिलाकर देख और सुन लेंगे तो फिर कुछ कहने या सुनने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.

    कहते हैं बच्चे मासूम होते हैं. विपिन जैसे बेशर्म और जानवर जैसे इंसान का मासूम बेटा सबकुछ अपनी आंखों से देखने के बावजूद अब भी अपनी मां के कातिल को पापा ही बुला रहा है. इसकी आंखों के सामने इसके पापा ने डीजल-पेट्रोल या केरोसिन ऑयल से भीगी इसकी मम्मी को अपने लाइटर से चिंगारी दी. और ये मासूम सब देखता रहा और बेशर्म बाप क्या कह रहा है कि वो अपने आप मर गई.

    इस बच्चे को भी छोड़िए. पता नहीं कैसे पर इसी घर में एक दूसरी बेटी लालच के शोलों से कैसे बच गई. अच्छा हुआ ये बच गई. अगर इसे भी लालची इंसानों ने लालच की लौ में झोंक दिया होता, तो शायद ये तस्वीरें कभी दुनिया के सामने आ ही नहीं पातीं. घर की लौ घर में ही झूठ के पुलिंदों से बुझा दी जाती. पर सलाम है इस बेटी को और दाद है इस बहु को, जिसने सारी हिम्मत बटोर कर अपनी छोटी बहन पर होने वाले इन आखिरी लम्हों की हर जुल्म को अपने मोबाइल में कैद कर लिया. जब मां और बेटे की ये करतूत निक्की की बड़ी बहन कंचन अपने मोबाइल में शूट कर रही थी, तब दरिंदे विपिन ने उसकी तरफ भी मुक्का ताना था.

    इस मासूम बच्चे के साथ-साथ कंचन भी इंसानियत को जला देने वाली उन लपटों की गवाह थी. खुद उसकी हालत ऐसी नहीं थी कि वो अपनी छोटी बहन को दहेज के इन दानवों से बचा पाती. पर बेबसी से देखा सब कुछ.

    कहते हैं मां से दयालु कोई और हो ही नहीं सकता. निक्की की सास यानी विपिन की मां का तो नाम ही दया है. दो बेटों के साथ इसकी अपनी भी एक बेटी है. उस बेटी की डोली भी इसी घर से उठी थी. लेकिन उस मां की करतूत देखने और जानने के बाद आपके दिल में जरा सी भी दया नहीं आएगी? हरगिज नहीं. पता नहीं ये कैसी मां है, जो अपने ही जैसी किसी और मां को मार डालती है.

    इस दया नाम वाली निर्दयी मां का बड़ा बेटा रोहित है. रोहित और उसके छोटे भाई विपिन में बस इतना फर्क है कि इसकी बीवी कंचन फिलहाल जिंदा है. जबकि विपिन की बीवी और कंचन की छोटी बहन निक्की मर चुकी है. निक्की की मौत से कुछ घंटे पहले इसी रोहित ने अपनी पत्नी कंचन को भी जानवरों की तरह पीटा था. असल में दोनों भाई उसी दहेज नाम की बीमारी के शिकार थे, जो बीमारी हमारे देश में अब तक सैकड़ों हजारों बेटियों को खा चुकी है.

    ग्रेटर नोएडा के लालची निवास का मुखिया है सतवीर. दया का पति. विपिन और रोहित का पिता. और निक्की और कंचन का ससुर. जैसे ही इसके घर में आग की लपटे उठीं ये भी घर से भाग गया था. बाद में पकड़ में आया तो मुंह छुपाता फिर रहा है ताकि इसका लालची चेहरा कोई देख ना पाए. अब इंसान की शक्ल में सबसे बड़े जानवर से मिलिए. विपिन भाटी. जिसे आपने कैमरे में अपनी बीवी निक्की को पीटते देखा. अपनी भाभी कंचन पर मुक्का तानते देखा. एनकाउंटर के बाद लंगड़ाते देखा और फिर अस्पताल के बिस्तर पर लेटे बेहयाई से झूठ बोलते सुना. 

    घर में जलती बीवी को छोड़कर घर के बाकी लोगों के साथ ये भी भाग चुका था. फिर एनकाउंटर हुआ. पैर में गोली लगी और ये दरिंदा पकड़ा गया. तो इस तरह आरोपियों के घर के हर जानवर के बारे में आप जान चुके हैं. अब इनकी वो कहानी भी सुनते चलिए, जो कहानी इनके जानवर बनने से पहले की थी. यानि जब ये इंसान हुआ करते थे.

    भिखारी सिंह का अपना बिजनेस है. कंचन और निक्की इन्हीं की बेटियां हैं. दोनों बेटियों को बड़े नाजों से पाला था. पढ़ाया-लिखाया, अच्छी परवरिश दी. जब दोनों सयानी हो गई तो अच्छे लड़कों की तलाश शुरु कर दी. आखिर में नसीब कंचन और निक्की को उस घर तक ले गया. दिसंबर 2016 में दोनों बहनों की शादी दो भाइयों से हो गई. रोहित की कंचन से और विपिन की निक्की से. भिखारी सिंह ने दोनों बेटियों की शादी पर दिल खोल कर खर्च किया. मंहगी स्कॉर्पियो गाड़ी, मंहगी बुलेट, और भी तमाम कीमती दहेज दिया.

    जिस वक्त निक्की और कंचन की शादी हुई तब कायदे से विपिन और रोहित पढ़ाई कर रहे थे. यानि दोनों बेरोजगार थे. कायदे से शादी के बाद भी दोनों बेरोजगार ही रहे. बाप की परचून की एक दुकान है. इसी दुकान से पूरा घर चल रहा था. जबकि दूसरी तरफ भिखारी सिंह का अच्छा कारोबार और ठीक ठाक पैसे. और बस यही बात इस लालची कुनबे को परेशान कर रही थी. बेरोजगार बेटे और उनके लालची मां-बाप की निगाहें निक्की और कंचन के घरवालों की दौलत पर थी. वो जब तब दोनों से दहेज मांगते. मांग पूरी नहीं होती तो जानवरों की तरह दोनों बहनों को पीटते. 

    पिछले 9 सालों से दोनों बहनें खामोशी से ये जुल्म सहती रहीं. बेटियों की अपनी एक मजबूरी भी होती है. शादी के बाद जब वो ससुराल पहुंच जाती हैं तो अपने गम, अपनी तकलीफ सिर्फ अपना बना लेती हैं. मां-बाप को तकलीफ ना पहुंचे इसलिए उन्हें कभी सच नहीं बता पातीं. जब तक बर्दाश्त हो पाता, इन दोनों बहनों ने भी यही किया.

    समझ नहीं आता कि लोग किसी लड़की से शादी कर उस लड़की या उसके घरवालों पर अहसान जैसा क्यों जता देते हैं. खासकर दहेज के दानवों को ये क्यों लगता है कि शादी के बाद लड़की के साथ साथ उन्हें घर, पैसा और गाड़ी भी चाहिए. इनसे तो अच्छे सड़क के वो भिखारी होते हैं जो खुलेआम दोनों हाथ फैलाकर ऐलानिया भीख मांगते हैं. पर इन जानवरों की खासियत ये है कि ये भीख में दिए गये घरों में भी चौड़े होकर रहते हैं. और भीख में मिली गाड़ियों पर रौब दिखा कर चलते हैं. 

    निक्की और कंचन के पिता ने कुछ दिन पहले ही एक नई गाड़ी खरीदी थी. मर्सिडीज. उस नई चमचमाती मर्सिडीज को देखकर लालची कुनबा एक बार फिर बेचैन हो उठा. इस लालची परिवार को बर्दाश्त नहीं था कि जिसकी दो बेटियों को इन लोगों ने अपने घरों में रखा हुआ है, जिनकी खुद की औकात मर्सिडीज क्या मोटरसाइकिल खरीदने की नहीं है, वो मंहगी गाड़ी उनकी बीवीयों के पिता के पास कैसे है. अब उन्हें मर्सिडीज या मर्सिडीज के बदले इतने पैसे चाहिए थे, जिससे वो भी गाड़ी खरीद सकें.

    बात 21 अगस्त की शाम की है. इसी मर्सिडीज या मर्सिडीज के बदले 35 लाख रुपये की मांग को लेकर निक्की की सास दया और पति विपिन निक्की को बुरी तरह पीटने लगते हैं. इससे पिछली रात निक्की की बहन कंचन अपने पति के हाथों बुरी तरह मार खा चुकी थी. दोनों बहनों पर ये जुल्म उसी मर्सिडीज की वजह से ढाए जा रहे थे. निक्की की बुरी तरह पिटाई करने के बाद निक्की के ऊपर डीजल, पेट्रोल य़ा केरोसिन ऑय़ल डाला जाता है. इसके बाद निक्की जल उठती है. जिस तस्वीर ने पूरे देश का कलेजा चाक कर दिया. जब दहेज के शोलों में लिपटी निक्की घर की सीढ़ियों से नीचे की तरफ भाग रही थी. बाद में पता नहीं कौन लोग निक्की को अस्पताल ले गए लेकिन वो रास्ते में ही मर चुकी थी.

    निक्की को 21 अगस्त यानि गुरुवार की शाम जलाया गया था. लेकिन अभी तक ये खबर सिर्फ इस घर, मोहल्ले और निक्की के घरवालों को थी. पर दो दिन बाद 23 अगस्त शनिवार को अचानक सोशल मीडिया पर ये दो वीडियो जैसे ही सामने आए, जिन्हें देखकर सारा देश सिहर उठा. इस वीडियो ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया. कोई यकीन ही नहीं कर पा रहा था कि आज के इस दौर में भी बहुएं या बीवियां इस तरह जलाई जाती हैं. दोनों तस्वीरें वायरल होने के साथ ही यूपी पुलिस भी हरकत में आ गई और फिर एक एक कर चारों जानवर पकड़ लिए गए.

    हालांकि गुस्सा अभी गरम है, निक्की के जिस्म से उठते शोलों की तपिश ज्यादा. इसलिए सभी गुनहगारों को लेकर सभी गुस्से में हैं. लेकिन दहेज मांगने वाले ऐसे भिखारियों को हमारा कानून कभी कहां सख्त सजा दे पाया है. दहेज या दहेज हत्या को लेकर हमारा कानून इतना उलझा, लचीला और उबाऊ है कि ऐसे लालची और राक्षस जितनी जल्दी जेल जाते हैं, उतनी ही जल्दी लौट भी आते हैं. दिमाग पर जोर देकर याद कीजिए क्या आपने कभी सुना है कि कभी किसी पति, सास-ससुर, जेठ, देवर या ननद को दहेज हत्या के लिए फांसी हुई है? कभी नहीं.

    आज दुनिया के किस फील्ड में बेटियां पीछे हैं. जमीन से लेकर आसमान तक हर जगह वो कदम से कदम मिलाकर मर्दों के साथ चलती हैं. ये तस्वीर का एक पहलू है. इसी तस्वीर का एक दूसरा बदनुमा पहलू ये है कि हमारे इसी देश में हर साल लगभग 7 हजार बेटियां दहेज के नाम पर कुर्बान कर दी जाती हैं. एनसीआरबी, यानि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के सिर्फ पिछले 20 सालों के आंकड़े निकाले जाएं तो हमारे देश में इन 20 सालों में ही तकरीबन सवा से डेढ़ लाख बहुएं या पत्नी दहेज के नाम पर मारी जा चुकी हैं.

    एक चार महीने पुरानी तस्वीर शायद आपको याद हो. शर्तिया आप उसे भूले नहीं होंगे. जिसमें एक पत्नी अपने पति की लाश अपनी गोद में रखकर पत्थर की मूरत की तरह बैठी थी. पहलगाम की उस तस्वीर ने पूरे देश का खून खौला दिया था. उस एक तस्वीर ने सरकार को मजबूर कर दिया था कि वो उसके उजड़े हुए सिंदूर का बदला ले और ये बदला ऑपरेशन सिंदूर से लिया गया.

    वो दुश्मन तो सरहद पार के थे. बदला भी सरहद पार लिया गया. लेकिन अपने ही घर में पल रहे इन सिंदूरी दुश्मनों का क्या? ये सिर्फ सिंदूर नहीं बल्कि पूरी की पूरी सुहागन को मौत से पहले ही जिंदा चिता पर लिटा डालते हैं. क्या देश भर में मौजूद ऐसे लोगों को चुन चुन कर उनके खिलाफ कोई ऑपरेशन नहीं चलाना चाहिए. एक ऐसा ऑपरेशन जिसके बाद कोई भी पति या उसके घरवाले दहेज मांगना तो दूर दहेज शब्द सुनते ही लरज़ उठे. काश ऐसा हो पाता. काश ऐसा हो. ताकि फिर किसी मां-बाप को अपनी बेटी को सौ फीसदी जली हालत में चिता पर ना लिटाना पड़े.

    (ग्रेटर नोएडा से अरूण त्यागी का इनपुट)

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