उत्तर प्रदेश की सियासत एक नई करवट लेती नजर आ रही है. यूपी के मंत्री संजय निषाद ने गुरुवार को अपनी निषाद पार्टी का स्थापना दिवस दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में मनाया, जिसमें योगी सरकार के ओबीसी नेताओं की तिकड़ी की सियासी केमिस्ट्री देखने को मिली. संजय निषाद के मंच पर सुभासपा के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर और अपना दल (एस) के नेता आशीष पटेल ने एक-दूसरे का हाथ दिल्ली में पकड़ा, लेकिन सियासी ताप लखनऊ का बढ़ा दिया है.
निषाद पार्टी के स्थापना दिवस के मौके पर संजय निषाद के साथ जिस तरह से ओम प्रकाश राजभर और आशीष पटेल एक साथ खड़े नजर आए, उसके ज़रिए सियासी संदेश देने की कवायद भी मानी जा रही है. इस स्थापना दिवस में यूपी की योगी सरकार के तीनों सहयोगी क्षत्रपों ने शिरकत किया, लेकिन बीजेपी का कोई बड़ा नेता मौजूद नहीं था.
योगी सरकार में संजय निषाद, ओमप्रकाश राजभर और आशीष पटेल मंत्री हैं. ये तीनों बीजेपी के सहयोगी दल हैं और ओबीसी चेहरा माने जाते हैं. निषाद पार्टी के कार्यक्रम में बीजेपी के सहयोगी नेताओं की तिकड़ी ने एकजुट होकर अपनी सियासी ताकत दिखाने के साथ दिल्ली से लखनऊ को सियासी संदेश देने की कवायद की है.
यूपी बीजेपी के क्षत्रपों का दिल्ली में मेल-मिलाप
दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में यूपी बीजेपी के तीन बड़े सहयोगी नेता एकजुट हुए. कार्यक्रम मंत्री संजय निषाद का था, जिसमें अपना दल के आशीष पटेल और सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर सिर्फ पहुंचे ही नहीं थे, बल्कि ओबीसी के मुद्दे को भी उठाने का काम किया. तीनों ओबीसी नेताओं ने पिछड़ों के हक का मुद्दा उठाया, जाति आधारित जनगणना का मुद्दा उठाया और साथ-साथ आगामी पंचायत चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर भी अधिवेशन अहम रहा.
संजय निषाद ने कहा कि यह केवल उत्सव नहीं, बल्कि संकल्प और एकता का प्रतीक है. उन्होंने कहा कि पार्टी न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे भारत में मछुआरे, बिंद, केवट, मल्लाह, कुंवर, गोंड, कश्यप और अन्य मेहनतकश समाजों की मजबूत आवाज बन चुकी है. हमारे समाज का सबसे बड़ा मुद्दा आरक्षण और संवैधानिक अधिकार है और यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी.
ओमप्रकाश राजभर ने कहा, ‘डॉ. संजय निषाद ने ताल किनारे रहने वाले समाज को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में एकजुट कर अपनी ताकत दिखाई है. उत्तर प्रदेश की राजनीति का भविष्य तय कर रहा है. निषाद पार्टी ने केवल 10 साल में जिस तेज़ी से विकास किया है, वह अभूतपूर्व है. अगर समाज को हक-अधिकार नहीं मिला तो लखनऊ विधानसभा का घेराव तय है.’ यूपी सरकार में मंत्री आशीष पटेल ने कहा कि भीड़ बता रही है कि डॉ. संजय निषाद की असली ताकत है. अब समाज डरने वाला नहीं है और यह लड़ाई रुकने वाली नहीं है. निषाद पार्टी अब अकेली नहीं है, हम सभी सहयोगी दल उनके साथ खड़े हैं.
आशीष पटेल ने कहा कि डॉ. निषाद इलेक्ट्रो होम्योपैथी से मीठी गोली देकर इलाज करते आए हैं, लेकिन अब उन्हें आरक्षण विरोधियों का पक्का इलाज करना होगा. मंच पर मौजूद आरएलडी, सुभासपा, निषाद पार्टी और अपना दल (एस) ही असली पीडीए हैं. सत्ता की चाबी अब इन्हीं दलों के पास होगी.
ओबीसी नेताओं की तिकड़ी से बढ़ा सियासी ताप
योगी सरकार के तीन मंत्री दिल्ली में एक मंच पर आए, उससे लखनऊ का सियासी ताप बढ़ गया है. निषाद पार्टी के इस अधिवेशन में बिहार चुनाव में गठबंधन में शामिल होने की बात कही गई. ओमप्रकाश राजभर तो लगातार बिहार में चुनाव लड़ भी रहे हैं और उनकी पहली मांग एनडीए से है कि उन्हें भी गठबंधन में जगह मिले, हालांकि निषाद पार्टी ने भी साफ कर दिया है कि वह बिहार में चुनाव लड़ेगी और अकेले भी चुनाव में उतर सकती है. यही बात ओमप्रकाश राजभर दोहराते नजर आए.
बीजेपी के सहयोगी दलों के जुटान ने 2027 के चुनाव से पहले पंचायत चुनाव में अपनी ताकत साझा करने का एहसास दिखा दिया है. माना जा रहा है कि जिस तरीके से उत्तर प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा गर्म है और उसके पहले बीजेपी के सहयोगी दलों के बड़े नेताओं का एक मंच पर आना बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को संदेश है.
हालांकि, सभी नेताओं ने एनडीए को मजबूत करने और बीजेपी के नेतृत्व में काम करने की अपनी मंशा को बार-बार प्रदर्शित किया और मंच से भी कहा, लेकिन यह माना जा रहा है कि अपना दल (एस), निषाद पार्टी और ओमप्रकाश राजभर की पार्टी मिलकर एक प्रेशर ग्रुप बन सकती है. इस तरह से राजभर, निषाद और आशीष पटेल की सियासी जोड़ी ने यूपी की सियासत में अपनी एकता का सियासी संदेश दे दिया है.
क्षत्रपों की एकता से क्या बिगड़ेंगा गेम
दरअसल, अभी तक इन सहयोगियों की मांग और अपेक्षाओं पर बीजेपी सबसे अलग-अलग समन्वय बना रही थी, लेकिन अब तीनों एकसाथ आकर अपने हितों को लेकर मांग उठा दी है. ऐसे में भाजपा साथ बनाए रखने की कोशिश में है, क्योंकि गठबंधन को कई चुनावों से बढ़त बनाने में आसानी हो रही है. तीनों ही दलों का अपनी-अपनी जातियों में खासी पकड़ मानी जाती है.
निषाद पार्टी, निषाद समाज को अपना वोटबैंक बताती है और इन मतदाताओ का 30 से 35 सीटों प्रभाव है. अपना दल (एस) का बड़ा आधार कुर्मी समाज माना जाता है, जो 20 से 25 सीटों पर असर रखता है. वहीं सुभासपा का वोटबैंक कहे जाने वाले राजभर समुदाय का 15 से 20 सीटों पर प्रभाव है. ऐसे में ये तीनों अलग होते हैं तो बीजेपी को 80 से 90 विधानसभा सीटों पर मुश्किल हो सकती है. इनके एकजुट होकर अलग लड़ने या भाजपा के साथ लड़ने, दोनों स्थितियों में सपा के पीडीए फार्मूले पर असर पड़ने की संभावना हैय
माना जा रहा है कि निषाद, कुर्मी और राजभर वोट जुड़ने पर सपा का गैर-यादव ओबीसी समीकरण कमजोर होगा. साथ ही एससी दर्जे की मांग से बसपा के पारंपरिक वोट बैंक में सेंधमारी का भी खतरा होगा. ऐसे में साफ है कि आने वाले दिनों में यूपी की सियासत में राजनीतिक समीकरण, बन और बिगड़ सकते हैं.
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