उत्तर प्रदेश की सियासत में गठबंधन सहयोगियों को साधने की कवायद तेज हो गई है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की सहयोगी पार्टी अपना दल (सोनेलाल) की राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की मांग को मानते हुए बड़ा कदम उठाया है. जुलाई 2025 में अनुप्रिया पटेल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अपनी पार्टी के बागी नेता विजेंद्र प्रताप सिंह की पत्नी मोनिका आर्य को अपर शासकीय अधिवक्ता (अधिशासी अधिवक्ता) पद से और अरविंद बौद्ध को पूर्वांचल विकास बोर्ड के सदस्य पद से हटाने की मांग की थी.
अब योगी सरकार ने उनकी इस मांग को पूरा कर दिया है. यह विवाद तब शुरू हुआ था, जब अपना दल (एस) के बागी नेता विजेंद्र प्रताप सिंह ने जुलाई में लखनऊ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पार्टी में टूट का दावा किया था. विजेंद्र ने कहा था कि उनके साथ 9 विधायक हैं और जल्द ही अपना दल (एस) टूट जाएगा. इस बगावत को मजबूती देने के लिए उन्होंने ‘अपना मोर्चा’ नाम से एक नया संगठन भी बनाया था. अनुप्रिया पटेल ने अपनी पार्टी में इस बगावत को दबाने के लिए मुख्यमंत्री योगी को पत्र लिखकर विजेंद्र प्रताप सिंह की पत्नी मोनिका आर्य और अरविंद बौद्ध को उनके पदों से हटाने की मांग की थी.
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जब इस पत्र पर तुरंत कार्रवाई नहीं हुई, तो अनुप्रिया के पति और अपना दल (एस) के उपाध्यक्ष आशीष पटेल ने योगी सरकार पर निशाना साधा था. आशीष ने सरकार पर पार्टी के भीतर टूट को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए कहा था कि सरकार की निष्क्रियता बागियों को हौसला दे रही है. उनकी यह तल्ख टिप्पणियां गठबंधन में तनाव का कारण बनी थीं. हालांकि, अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अनुप्रिया की मांग को मानकर सहयोगी दल को साधने की कोशिश की है. मोनिका आर्य को अपर शासकीय अधिवक्ता के पद से हटा दिया गया है. साथ ही, पूर्वांचल विकास बोर्ड के सदस्यों की मेंबरशिप का रिन्यूअल नहीं होने के कारण अरविंद बौद्ध की सदस्यता भी स्वतः समाप्त हो गई है.
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राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह फैसला 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा है. अपना दल (एस) उत्तर प्रदेश में खासकर पूर्वांचल के कुछ क्षेत्रों में प्रभावशाली है और इसका समर्थन भाजपा के लिए महत्वपूर्ण है. विजेंद्र प्रताप सिंह के बागी तेवर और उनके नए मोर्चे के दावों के बावजूद, योगी का यह कदम अनुप्रिया के प्रति समर्थन का स्पष्ट संदेश देता है. इस घटनाक्रम से गठबंधन में एकता की उम्मीद बढ़ी है, लेकिन विजेंद्र के अगले कदम पर भी सियासी हलकों की नजर बनी रहेगी.
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