अलास्का में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात ने यूक्रेन युद्ध के भविष्य को लेकर हलचल मचा दी है. विशेषज्ञों का मानना है कि ये बातचीत युद्ध के खात्मे की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकती है, लेकिन असली दबाव अब यूक्रेन पर आ गया है क्योंकि गेंद अब यूक्रेन के पाले में है.
सामरिक मामलों के जानकार सुशांत सरीन का कहना है कि यूक्रेन के पास विकल्प बहुत सीमित हैं. उनके मुताबिक, पुतिन और ट्रंप के बीच किसी समझौते की संभावना दिख रही है. अगर अमेरिका पीछे हटता है तो यूक्रेन को यूरोप और अन्य देशों से भी ज्यादा सहारा नहीं मिलेगा. ऐसी स्थिति में यूक्रेन के पास वही विकल्प बचेगा जो उसे बताकर दिया जाएगा.
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‘शायद खात्मे की ओर बढ़ रहा है युद्ध’
सरीन के अनुसार, पुतिन की सुरक्षा की गारंटी का मतलब है कि नाटो का विस्तार नहीं होगा और रूस जिन इलाकों पर कब्जा किए बैठा है, उन्हें औपचारिक रूप से रूस का हिस्सा मान लिया जाएगा. हालांकि इससे अमेरिका की विश्वसनीयता पर सवाल उठेंगे क्योंकि उसके यूरोपीय सहयोगियों को लगेगा कि उन्हें किनारे कर दिया गया है. लेकिन शायद ये युद्ध अब खात्मे की तरफ बढ़ रहा है.
‘अब दबाव यूक्रेन पर है’
पूर्व सचिव (MEA) सुरेश गोयल का मानना है कि इस मीटिंग का असर यूक्रेन पर तो पड़ेगा ही, लेकिन कितना और कैसा ये आने वाला वक्त बताएगा. उन्होंने कहा कि ट्रंप और पुतिन की आमने-सामने मीटिंग अपने आप में पुतिन के लिए बड़ी जीत है, क्योंकि ट्रंप पहले कह चुके थे कि वे पुतिन से तभी मिलेंगे जब कोई प्रोग्रेस होगी.
गोयल के मुताबिक, पुतिन ने साफ कर दिया है कि जब तक मूल मुद्दे हल नहीं होंगे तब तक समाधान संभव नहीं है. ऐसे में अब दबाव यूक्रेन पर है कि वह आगे कैसे प्रतिक्रिया देता है.
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‘जंग अभी रुकी नहीं है’
रक्षा विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी (रि.) ने कहा कि अलास्का में बातचीत के दौरान भी यूक्रेन में बमबारी जारी रही, यानी युद्ध रुका नहीं है. उन्होंने यह भी बताया कि ट्रंप ने इशारा कर दिया है कि नाटो की सदस्यता यूक्रेन को नहीं दी जाएगी. कुलकर्णी के अनुसार, दोनों नेताओं की मुलाकात और गर्मजोशी भरे स्वागत से माहौल सकारात्मक तो दिखा, लेकिन कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया.
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