सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मुंबई के वकील घनश्याम उपाध्याय की वह याचिका खारिज कर दी जिसमें महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे और उनके कार्यकर्ताओं के खिलाफ हिंदी भाषा के इस्तेमाल को लेकर कथित हमलों के मामले में FIR दर्ज करने की मांग की गई थी.
जनहित याचिका (पीआईएल) दायर करने वाले अधिवक्ता घनश्याम उपाध्याय ने दलील दी कि उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया क्योंकि उनकी याचिका में किए गए अनुरोधों को बॉम्बे हाई कोर्ट स्वीकार नहीं कर सकता.
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बी.आर. गवई की पीठ ने उपाध्याय को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि इस मामले में पहले बॉम्बे हाईकोर्ट से संपर्क किया जाए. अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि यह “पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन” है, न कि पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन.
मामले को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा, ‘हमने बार-बार कहा है कि नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए जनहित याचिका आवश्यक है, लेकिन हम याचिकाकर्ता के दुस्साहस पर नाराज़ हैं.’
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दिलाई पुराने दिनों की याद
सुनवाई के दौरान जब उपाध्याय ने अपनी दलीलें जारी रखीं, तो CJI गवई ने उन्हें चेतावनी देते हुए पुराने दिनों का जिक्र किया. उन्होंने कहा, “मैंने आपको दोषी पाकर एक बार बचाया है. मैं अवमानना का नोटिस जारी नहीं करना चाहता. ये इशारे मत कीजिए. मुझे बॉम्बे के दिनों की याद मत दिलाइए. याद कीजिए कि उस समय आपको किसने बचाया था. मुझे वहां जो हुआ था, उसकी याद मत दिलाइए.“
जानकारों के अनुसार, यह घटना उस समय की है जब जस्टिस गवई बॉम्बे हाईकोर्ट में थे और उपाध्याय ने बार-बार आग्रह किया था कि उनकी बात सुनी जाए, जिस पर कोर्ट ने कंटेम्प्ट नोटिस जारी करने की चेतावनी दी थी. बाद में एक अन्य वकील के अनुरोध पर मामला शांत कर दिया गया था.
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वापस ली याचिका
इस चेतावनी के बाद, उपाध्याय ने अपनी याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया और उन्हें तुरंत हाई कोर्ट जाने का निर्देश दिया. पीठ ने उन्हें निर्देश दिया – “कल ही फ्लाइट भरकर वहां जाकर मामला दर्ज कराइए.”
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