कश्मीर में आतंकवाद के साथ एक खतरनाक ट्रेंड सामने आ रहा है. यहां के युवाओं को आतंक के तरफ खींचने में नाकाम हो रही पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी अब उनको नशे की जाल में फंसाने की कोशिश कर रही है. लेकिन जम्मू और कश्मीर पुलिस इस साजिश को बेनकाब करने के लिए लगातार काम कर रही है. इसी अभियान के तहत पुलिस ने 3 महीने में 97 ड्रग्स तस्करों को सलाखों के पीछे पहुंचाया है.
एक पुलिस अधिकारी के मुताबिक, खुफिया रिपोर्टों में यह साफ हुआ है कि पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) अब सीधे आतंकवादियों की भर्ती में नाकाम रहने के बाद कश्मीर के युवाओं को अस्थिर करने के लिए नशे के इस्तेमाल को हथियार बना रही है. पुलिस की सख्त कार्रवाई ने हेरोइन की सप्लाई को लगभग ठप कर दिया है, लेकिन इसकी जगह मेडिकल ओपिओइड तेजी से जगह ले रहा है.
स्थानीय नशा मुक्ति केंद्र के प्रमुख डॉ. मोहम्मद मुजफ्फर खान बताते हैं कि पिछले कुछ समय में ओपिओइड गोलियों की मांग में खतरनाक इजाफा हुआ है. उनके मुताबिक, “जब हेरोइन नहीं मिलती और तलब बढ़ जाती है, तो लोग मेडिकल पेनकिलर का सहारा लेने लगते हैं.” ये गोलियां न केवल स्थानीय अवैध सप्लाई चैन से आती हैं, बल्कि दिल्ली और अमृतसर जैसे शहरों से कूरियर के जरिए भी मंगाई जाती हैं.
हेरोइन की लत और अब ओपिओइड पर निर्भरता
उन्होंने आगे बताया कि एक पट्टी की वैध कीमत 150 रुपये होती है, लेकिन काला बाजार में यह कीमत 800 रुपए तक पहुंच जाती है. पिछले सात-आठ वर्षों में चरस और भांग जैसे स्थानीय नशे से हेरोइन की लत और अब ओपिओइड पर निर्भरता की ओर बदलाव तेजी से बढ़ा है. श्रीनगर पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल से जुलाई के बीच 73 केस दर्ज किए गए हैं. इनमें 67 मामलों में चार्जशीट दाखिल हो चुकी है.
पीआईटी-एनडीपीएस एक्ट के तहत पुलिस कार्रवाई
इसके साथ ही 3.57 किलो ब्राउन शुगर, 1.73 किलो हेरोइन, 203.43 किलो चरस, 11.95 किलो फूकी, नशे की गोलियां, भांग और गांजा बरामद किया गया है. तस्करों की कमर तोड़ने के लिए पुलिस ने छह वाहनों, नौ मकानों और 29 बैंक खातों को जब्त किया है. पुलिस ने पीआईटी-एनडीपीएस अधिनियम के तहत 21 लोगों को हिरासत में लिया, तीन मादक पदार्थों के ठिकाने ध्वस्त किए हैं.
नशे से उबर चुके लोगों ने सुनाई अपनी कहानियां
डॉ. मोहम्मद मुजफ्फर खान बताते हैं कि यह संकट केवल युवाओं तक सीमित नहीं है. उनके पास ऐसे मरीज भी आते हैं जो 30 साल से ऊपर हैं. एक बार में 10-15 गोलियां खा जाते हैं, ताकि हेरोइन जैसा असर मिल सके. इस संकट के बीच, नशे से उबर चुके कई लोग भी अपनी कहानियां सुना रहे हैं. एक शख्स ने बताया कि चार साल की लत के बाद वो नशा मुक्ति केंद्र का दरवाजा खटखटाने पर मजबूर हुआ.
नशे की लत से बचाने के लिए पुलिस का अभियान
दूसरे शख्स ने बताया कि साल 2016 में सिगरेट से शुरू होकर हेरोइन तक पहुंचने की लत ने उसका व्यवसाय और रोजगार दोनों छीन लिया. श्रीनगर पुलिस का कहना है कि यह अभियान केवल अपराध से लड़ने का नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को बचाने का मिशन है. हेरोइन की सप्लाई पर नकेल कसने में मिली शुरुआती सफलता ने मेडिकल ओपिओइड के खतरे को जन्म दिया है, लेकिन लड़ाई अब और तेज होगी.
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