डोनाल्ड ट्रंप और रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव के बीच तीखी बयानबाजी ने वैश्विक मंच पर हलचल मचा दी है. ट्रंप ने अल्टीमेटम देते हुए रूस को कहा था कि पुतिन 10-12 दिनों के अंदर युद्धविराम करे. ट्रंप के इस अल्टीमेटम को दिमित्री मेदवेदेव ने “अमेरिकी घमंड” करार दिया. मेदवेदेव ने ट्रंप को “स्लीपी जो” की राह छोड़ने की चेतावनी दी.
ट्रंप कहा रुकने वाले थे.उन्होंने मेदवेदेव को “असफल राष्ट्रपति” और “खतरनाक” बताया, और कहा कि वे खतरनाक दायरे में जा रहे हैं. ट्रंप ने तुरंत दो परमाणु पनडुब्बियां तैनात करने की घोषणा की और रूस और भारत की इकोनॉमी को ‘डेड’ करार दिया.
ऑनलाइन टकराव से शुरू होकर व्यक्तिगत हमलों तक पहुंच चुके अमेरिका-रूस के इन टकरावों ने कोल्ड वॉर के जमाने की याद दिला दी है. जब दोनों देशों के न्यूक्लियर वॉरहेड हमेशा लॉन्च मोड में रहते थे.
2008 में राष्ट्रपति चुने गए, पुतिन बने डिप्टी
मेदवेदेव 2008 में रूस के राष्ट्रपति चुने गए थे. गजब संयोग है कि तब पुतिन उनके डिप्टी थे. ऐसा तब हुआ था जब 2000 में राष्ट्रपति बने पुतिन दो टर्म राष्ट्रपति रहने के बाद तीसरे टर्म के लिए संवैधानिक रूप से अयोग्य हो गए थे. इस दौरान पुतिन ने मेदवेदेव को राष्ट्रपति बनाया और वे खुद प्रधानमंत्री बन गए. 2012 में जब चुनाव की बारी आई तो दोनों फिर से पद बदल लिए. यानी कि पुतिन राष्ट्रपति बन गए और मेदवेदेव प्रधामंत्री.
मेदवेदेव ने कानून की पढ़ाई की थी और कुछ समय तक निजी क्षेत्र में काम किया था. छोटे कद और शांत स्वभाव के होने के कारण उनके समकालीन उन्हें सुसंस्कृत और बुद्धिमान बताते थे.
मेदवेदेव को अपने कार्यकाल के दौरान एक जंग भी लड़ना पड़ा था. ये लड़ाई रूस और जॉर्जिया के बीच हुई थी.
मेदवेदेव ने पुतिन के प्रधानमंत्री के रूप में आठ सालों तक काम किया. इस दौरान पश्चिम के साथ तनाव फिर से बढ़ गया. 2014 में रूस जब क्रीमिया पर कब्जा करने गया तो पश्चिमी देशों के साथ टकराव और भी बढ़ गया.
2020 मेदवेदेव के राजनीतिक पतन का साल रहा. जनवरी 2020 में पुतिन ने उन्हें पीएम पद से हटाकर उनकी जगह मिखाइल मिशुस्तीन को जिम्मेदारी दे दी. ये उनकी राजनीतिक किस्मत का भूचाल था.
अभी मेदवेदेव रूस के सुरक्षा परिषद के डिप्टी चेयरमैन हैं. ये रूस की एक ताकतवर संस्था है. इसमें रूसी खुफिया सेवाओं के प्रमुख शामिल होते हैं.
2022 में रूस ने जब यूक्रेन पर आक्रमण किया है तबसे मेदवेदेव जंग के पैरोकार बन गए हैं. वे एक्स पर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से खुलकर टकराते हैं.
ट्रंप से सोशल मीडिया पर टक्कर
ट्रंप ने जब रूस को जब यूक्रेन के साथ सीजफायर करने की धमकी दी तो मेदवदेव भड़क उठे. ट्रंप ने कहा था, “यदि रूस अगले शुक्रवार, 8 अगस्त तक युद्ध विराम पर सहमत नहीं होता है, तो अमेरिका आर्थिक प्रतिबंधों का एक पैकेज लागू करेगा.”
ट्रंप का बयान सुनकर मेदवदेव बिफर गए. मेदवेदेव ने X पर लिखा, “ट्रंप रूस के साथ अल्टीमेटम का गेम खेल रहे हैं: 50 दिन या 10 दिन. उनको 2 चीजें याद रखनी चाहिए.
1.रूस इजरायल नहीं है, यहां तक कि ईरान भी नहीं है.
2.हर नया अल्टीमेटम एक धमकी है और युद्ध की ओर एक कदम है. ये रूस और यूक्रेन के बीच का युद्ध नहीं है. बल्कि उनके देश के साथ. उन्हें स्लीपी जो के रास्ते पर नहीं चलना चाहिए.
“स्लीपी जो” पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन का उपनाम है.
30 जुलाई को मेदवेदेव ने ट्रंप के अल्टीमेटम को “नाटकीय” और “बेकार” बताया और कहा कि रूस को इसकी परवाह नहीं है.
31 जुलाई मेदवेदेव ने टेलीग्राम पर ट्रंप तंज कसते हुए कहा कि अगर उनकी बातों से “अमेरिका के ताकतवर राष्ट्रपति” इतने परेशान हैं, तो “रूस सही रास्ते पर है.” उन्होंने रूस की “डेड हैंड” (सोवियत-युग की स्वचालित परमाणु जवाबी हमले की प्रणाली) का जिक्र कर ट्रम्प को “वॉकिंग डेड” जैसे ज़ॉम्बी शो देखने की सलाह दी.
मेदवेदेव ने ट्रंप द्वारा के भारत और रूस की अर्थव्यवस्थाओं को “मृत” कहने पर भी पलटवार किया, इसे “अमेरिकी घमंड” करार दिया.
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने मेदवेदेव के साथ बयानबाजी का पूरा हिसाब बराबर किया.
ट्रंप ने 31 जुलाई को ट्रूथ सोशल पर लिखा,”मेदवेदेव को कह दो, जो रूस का असफल पूर्व राष्ट्रपति है, लेकिन खुद को अभी भी राष्ट्रपति समझता है, वो अपने शब्दों पर ध्यान दें. वो बहुत खतरनाक जोन में जा रहा है.”
एक अगस्त को ट्रंप और भी हाइपर हो गए. उन्होंने कहा कि दिमित्री मेदवेदेव के भड़काऊ बयानों को देखते हुए उन्होंने दो परमाणु पनडुब्बियों को सही जगत पर तैनात करने का आदेश दिया है. क्योंकि हो सकता है कि मेदवेदेव के मूर्खतापूर्ण बयान से स्थिति बिगड़ जाए. शब्दों का बड़ा महत्व होता है और इसके कुछ भी नतीजे हो सकते हैं. मुझे उम्मीद है कि इस बार ऐसा नहीं होगा.
फिलहाल ट्रंप और मेदवेदेव की यह ऑनलाइन भिड़ंत व्यक्तिगत हमलों से शुरू होकर परमाणु धमकियों तक पहुंच गई है.
किसके पास ज्यादा परमाणु शक्ति है: रूस या अमेरिका?
संयुक्त रूप से अमेरिका और रूस के पास दुनिया के कुल परमाणु शस्त्रागार का लगभग 87 प्रतिशत हिस्सा है. दुनिया में इस समय जितने भी परमाणु हथियार इस्तेमाल करने लायक हैं उसका 83 प्रतिशत रूस और अमेरिका कंट्रोल कर सकते हैं.
फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स की एक रिपोर्ट के अनुसार शीत युद्ध के बाद परमाणु हथियारों में उल्लेखनीय कमी के बावजूद दुनिया में परमाणु हथियारों का भंडार “बहुत उच्च स्तर” पर बना हुआ है. जनवरी 2025 तक अनुमान है कि केवल नौ देशों के पास कुल लगभग 12,241 परमाणु हथियार थे.
गैर-लाभकारी संस्था आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन के अनुसार आज अमेरिका ने 1,419 और रूस ने 1,549 परमाणु हथियार तैनात कर रखे हैं.
—- समाप्त —-