मुंबई की एक स्पेशल कोर्ट आज मालेगांव 2008 बम धमाके के मामले में फैसला सुनाएगी. इस केस में कुल 7 आरोपी ट्रायल का सामना कर रहे हैं. इन आरोपियों में पूर्व भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय, सुधाकर चतुर्वेदी, अजय राहिरकर, सुधाकर धर द्विवेदी और समीर कुलकर्णी शामिल हैं.
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-जानकारी के मुताबिक, फैसले से पहले साध्वी प्रज्ञा समेत सभी आरोपी अदालत पहुंच गए हैं.
मालेगांव ब्लास्ट केस में कब-कब क्या हुआ?
धमाका और शुरुआती जांच
29 सितंबर 2008 को मालेगांव के भीकू चौक पर एक दोपहिया वाहन में बम विस्फोट हुआ, जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई और 101 लोग घायल हुए. मृतकों में फरहीन उर्फ शगुफ्ता शेख लियाकत, शेख मुश्ताक यूसुफ, शेख रफीक मुस्तफा, इरफान जियाउल्लाह खान, सैयद अजहर सैयद निसार और हारून शाह मोहम्मद शाह शामिल थे.
पहले एफआईआर स्थानीय पुलिस ने दर्ज की, लेकिन बाद में यह केस एंटी टेररिज्म स्क्वॉड (ATS) को सौंप दिया गया. ATS ने दावा किया कि ‘अभिनव भारत’ नामक संगठन 2003 से एक संगठित अपराध गिरोह की तरह काम कर रहा था. ATS ने अपनी चार्जशीट में प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल पुरोहित, उपाध्याय समेत कुल 16 लोगों को आरोपी बनाया.
सबसे पहला सुराग एक LML फ्रीडम मोटरसाइकिल से मिला, जिसका नंबर (MH-15-P-4572) नकली था और इसके इंजन-चेसिस नंबर से छेड़छाड़ की गई थी. फॉरेंसिक जांच के बाद इसका असली नंबर GJ-05-BR-1920 निकला, जो प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम पर रजिस्टर्ड था.
23 अक्टूबर 2008 को प्रज्ञा ठाकुर, शिवनारायण कालसांगरा और श्याम भावरलाल शाउ को गिरफ्तार किया गया. नवंबर 2008 तक 11 गिरफ्तारियां हो चुकी थीं और MCOCA (महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम) लगाया गया.
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साजिश और आरोप
प्रॉसिक्यूशन के मुताबिक, कर्नल पुरोहित ने RDX कश्मीर से लाकर अपने महाराष्ट्र स्थित घर में छिपाया था. बम सुधाकर चतुर्वेदी के देवलाली छावनी क्षेत्र स्थित घर में तैयार किया गया था. एटीएस ने दावा किया कि मोटरसाइकिल बम प्रवीण टक्कलकी, रामजी कालसांगरा और संदीप डांगे ने लगाया था और ये सभी एक बहुत बड़ी साजिश के तहत काम कर रहे थे.
मालेगांव, जो एक मुस्लिम बहुल इलाका है, को कथित तौर पर रमजान से ठीक पहले सांप्रदायिक अशांति पैदा करने के लिए चुना गया था. जनवरी 2009 में पहली चार्जशीट दाखिल की गई, जिसमें 11 आरोपी और 3 वॉन्टेड थे. इलेक्ट्रॉनिक सबूतों में सुधाकर धर द्विवेदी के लैपटॉप की रिकॉर्डिंग, वॉयस सैंपल आदि शामिल थे.
फरवरी 2011 में टक्कलकी की गिरफ्तारी के बाद सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल हुई. जांच के अनुसार, साजिश की शुरुआत जनवरी 2008 में फरीदाबाद, भोपाल और नासिक में हुई बैठकों से हुई थी, जहां एक ‘हिंदू राष्ट्र- आर्यवर्त’ बनाने की योजना बनाई गई थी, जिसमें उनका खुद का संविधान और झंडा होना था.
NIA को केस ट्रांसफर और कानूनी बदलाव
2011 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने यह मामला अपने हाथ में लिया और मुकदमे की प्रक्रिया को तेज किया. 13 मई 2016 को NIA ने एक सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की, जिसमें उन्होंने MCOCA की धाराएं हटा दीं, यह कहते हुए कि ATS की ओर से इस कानून का प्रयोग संदिग्ध था.
NIA ने यह भी आरोप लगाया कि ATS ने झूठे सबूत गढ़े और जबरदस्ती के तरीके अपनाए. एजेंसी ने कई गवाहों के बयान दोबारा दर्ज किए, जो पहले ATS को दिए गए बयानों से विरोधाभासी थे. NIA ने यह भी कहा कि ATS ने गवाहों को धमकाया और डराने की कोशिश की.
27 दिसंबर 2017 को ट्रायल कोर्ट ने माना कि MCOCA लागू नहीं हो सकता, लेकिन प्रज्ञा ठाकुर और अन्य 6 आरोपियों को आरोपमुक्त करने से इनकार किया. इन्हें UAPA, IPC, और Explosive Substances Act के तहत मुकदमा झेलने का आदेश दिया गया. तीन आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया.
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ट्रायल और गवाह
दिसंबर 2018 में ट्रायल शुरू हुआ. एक आरोपी ने धमाके की घटना पर ही सवाल उठाए, जिससे मालेगांव के कई घायल मुंबई जाकर गवाही देने को मजबूर हुए. प्रॉसिक्यूशन ने कुल 323 गवाहों की गवाही करवाई और कॉल डाटा रिकॉर्ड्स व वॉयस सैंपल्स जैसी तकनीकी सबूतों का हवाला दिया.
26 गवाहों की मौत अदालत में गवाही की बारी आने से पहले ही हो गई, जबकि 39 गवाह अपने बयान से पलट गए. वहीं, 282 गवाहों ने प्रॉसिक्यूशन का साथ दिया. प्रॉसिक्यूशन ने अपनी मूल गवाह सूची से 41 गवाहों को हटा भी दिया था.
कुछ आरोपियों, खासकर प्रज्ञा ठाकुर ने ATS पर हिरासत में प्रताड़ना का आरोप लगाया. लंबी सुनवाई के बाद 19 अप्रैल 2025 को स्पेशल जज ए.के. लाहोटी की अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे अब 31 जुलाई को सुनाया जा रहा है.
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