अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने पहले भारत पर 25 फीसदी का टैरिफ लगाया. उसके बाद भारत की अर्थव्यवस्था को डेड कहकर संबोधित किया. सोचिए जो भारत दुनिया की सबसे तेजी से विकसित होती इकॉनमी है, उसके लिए ट्रंप ने इस शब्द का इस्तेमाल किया. खुद को कभी भारत का सबसे भरोसेमंद दोस्त बताने वाले डोनाल्ड ट्रंप को क्या हो गया है? भारत से उनके इतने खफा होने की वजह क्या है? आखिर वो भारत से इतने चिढ़े हुए क्यों हैं?
भारत और अमेरिका के बीच 800 करोड़ रुपये का कृषि व्यापार होता है. भारत मुख्य रूप से अमेरिका को चावल, झींगा मछली, शहद, वनस्पतिअर्क, अरंडी का तेल और काली मिर्च का निर्यात करता है. ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत अमेरिकी कृषि उत्पादों पर औसत 37.7 फीसदी टैरिफ लगाता है, जबकि अमेरिका में भारतीय कृषि उत्पादों पर ये 5.3% है, अब 25 फीसदी टैरिफ लगाने के बाद ट्रंप ने कहा कि भारत की इकोनॉमी डेड हो चुकी है.
पेशे से कारोबारी डोनाल्ड़ ट्रंप सामने वाले से अपनी बात मनवाने के लिए दबाव का खेल खेलते हैं. भारत से ट्रेड डील को लेकर उनकी ये रणनीति अपने चरम पर है, इसीलिए उन्होंने एक तरफ भारत पर 25 फीसदी का टैरिफ के साथ अतिरिक्त जुर्माने का ऐलान किया, तो पाकिस्तान के साथ तेल भंडार विकसित करने को लेकर समझौता कर हिंदुस्तान को चिढ़ाने की कोशिश की.
‘ट्रंप ठीक कह रहे…’
मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए राहुल गांधी ने कहा, “हां, ट्रंप ठीक कह रहे हैं. सिवाय प्रधानमंत्री मोदी और वित्त मंत्री के ये बात हर कोई जानता है. सब जानते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था एक मृत अर्थव्यवस्था है. मुझे खुशी है कि ट्रंप ने सही बात कही है.
कोई चाहे जो कहे लेकिन भारत अनिश्चिचता के इस माहौल में सबसे मजबूत और भरोसेमंद इकॉनमी है, जिसकी रफ्तार की गवाही दुनियाभर के रेटिंग एजेंसियां देती रहती है. लेकिन भारत के लिए मसला विकास दर नहीं, ट्रेड डील के लिए ट्रंप की पैंतरेबाजी है.
सवाल ये है कि डोनाल्ड ट्रंप भारत को लेकर इतने ज्यादा क्यों उखड़े हुए हैं? डोनाल्ड ट्रंप की इस चिढ़न का जवाब भारत की वो नीति है, जिसमें देशहित सबसे पहले हैं.
14 फरवरी 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्हाइट हाउस में ट्रंप को बता दिया था कि भारत अपने हित से समझौता नहीं करेगा. 5 महीने बाद भारत अपनी नीति पर कायम है, इसलिए उसे ट्रंप के गुस्से का निशाना बनना पड़ा. यूरोपीयन यूनियन, जापान, फिलिपींस, इंडोनेशिया और वियतनाम डोनाल्ड ट्रंप की शर्तों के आगे घुटने टेक चुके हैं, लेकिन ट्रेड डील पर सबसे पहले बात शुरू करने वालों में भारत अपने हितों पर अड़ा हुआ है.
अमेरिका क्या चाहता है?
भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील नहीं होने की सबसे बड़ी वजह कृषि उत्पाद हैं. अमेरिका चाहता है कि भारत मक्का, सोयाबीन, गेहूं पर टैरिफ कम करे लेकिन भारत ने इससे इनकार कर दिया है क्योंकि अमेरिका अपने कृषि उत्पादों को भारी सब्सिडी देता है, जिससे भारतीय किसान उसके आगे नहीं टक पाएंगे. अमेरिका में किसानों को तकरीबन 55 लाख रुपये की सालना सब्सिडी मिलती है, जबकि भारतीय किसानों को सिर्फ 25 हजार रुपये, इसके अलावा भारत जेनेटिकली मॉडिफ़ाइड फ़सलें जैसे सोयाबीन और मक्का का आयात करने का विरोध कर रहा है.
अमेरिका की एक और बड़ी मांग डेयरी उत्पादों के बाजार खोले जाने को लेकर है, लेकिन भारत का तर्क है कि ऐसा करने से करोड़ों लोगों के रोजगार पर संकट आ जाएगा. स्टेट बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी डेयरी प्रोडक्ट्स के भारत आने से अपने देश के दुग्ध उत्पादों के दामों में 15 फीसदी तक की कमी आएगी. इससे किसानों को 1 लाख करोड़ रुपये तक का सालाना नुकसान होगा. ये भी एक वजह है कि भारत अपने डेयरी सेक्टर को न खोलने को लेकर अड़ा हुआ है.
क्या है भारत का रुख?
भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का 16 फीसदी हिस्सा है. आजादी के इतने साल बाद भी कृषि से ही सबसे बड़ी आबादी को रोजगार मिलता है. इसलिए किसानों के हितों में लिए गए किसी भी फैसले का असर बहुत व्यापक होगा. इसलिए भी सरकार बहुत सोच समझकर इस पर बात कर रही है.
डोनाल्ड ट्रंप यूटर्न लेने के लिए जाने जाते हैं, इसलिए भारत पर टैरिफ लगाने वाले डोनाल्ड ट्रंप कब पलटने वाला पोस्ट कर दें. लेकिन टैरिफ के मामले में भारत के रुख से साफ है कि वो किसी भी कीमत पर अमेरिकी दबाव में नहीं आएगा. सरकार की तरफ से अमेरिकी टैरिफ को लेकर जो कहा गया है, उससे पता चलता है कि भारत ट्रंप की धमकियों से डरने वाला नहीं है.
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सरकारी सूत्रों ने बताया है कि मोदी सरकार अमेरिकी टैरिफ की स्थिति को लेकर ज़्यादा चिंतित नहीं है. भारत इस पर कोई जवाबी कार्रवाई नहीं करेगा. चुप रहना ही इसका जवाब है. सरकार जो भी करेगी वो बातचीत की मेज पर करेगी. सरकार के सूत्रों का कहना है कि जब हमने परमाणु परीक्षण किया था, तब हम पर कई प्रतिबंध लगाए गए थे, उस समय हमारी अर्थव्यवस्था छोटी थी. आज भारत आत्मनिर्भर आर्थिक शक्ति है. ऐसे में अब चिंता की क्या बात.
अब सवाल ये है कि क्या सरकार रूस से तेल खरीदने को लेकर भी यही रुख अपनाएगी, क्योंकि ट्रंप इस बात को लेकर भी चिढ़े हुए हैं कि भारत रूस से सस्ता तेल क्यों खरीद रहा है.
रूस-यूक्रेन जंग रुकवाने के वादे के साथ सत्ता में आए ट्रंप…
खुद को बादशाह समझने वाले डोनाल्ड ट्रंप कुछ महीनों पहले तक रूस के राष्ट्रपति के सबसे बड़े प्रशंसकों में से एक थे. इसलिए रूस किसे तेल बेच रहा है, इससे तब ट्रंप को फर्क नहीं पड़ता था. उस वक्त ट्रंप को यूक्रेन युद्ध रुकवाकर नोबेल शांति पुरस्कार जीतने का ख्वाब दिखाई दे रहा था, इसलिए ट्रंप को लगा कि वो कोई डील करके पुतिन को मना लेंगे और उनका डंका बज जाएगा लेकिन पुतिन ने खुद को स्मार्ट समझने वाले डोनाल्ड ट्रंप को खूब घुमाया. कई बार फोन पर लंबी बात की. ट्रंप के सलाहकारों को मॉस्को बुलाया लेकिन जंग नहीं रोकी. जब ट्रंप को लगा कि बात नहीं बन रही है, तो ट्रंप के सुर बदलते गए और वो टैरिफ की धमकी पर उतर आए.
डोनाल्ड ट्रंप यूक्रेन युद्ध रुकवाने के वादे के साथ सत्ता में आए लेकिन इतने महीने बीत जाने के बावजूद उनके हाथ खाली हैं, इसलिए डोनाल्ड ट्रंप चाहते हैं कि भारत समेत बाकी देश रूस से तेल न खरीदें.
भारत रूस से बड़ी तादाद में अपने सैन्य साज-ओ-सामान खरीदता है. ऐसे वक्त में जब सब चाहते हैं कि रूस-यूक्रेन में कत्ल-ए-आम बंद करे, भारत रूस से तेल खरीद के मामले में चीन के साथ सबसे बड़ा खरीददार है. पुतिन ने जब ट्रंप की बात नहीं मानी तो वो चाहते हैं कि भारत भी उनके कहने पर रूस से सस्ता तेल लेना बंद कर दे.
भले ही इससे भारत और दुनियाभर में तेल के दाम बढ़ जाएं, भारत में महंगाई बढ़ जाए. नैट रूस से तेल खरीद को लेकर ट्रंप की ये झल्लाहट यूक्रेन पर रूस के बढ़ते हमले हैं. पुतिन ने अपनी मिसाइलों और ड्रोन से यूक्रेन की राजधानी कीव को एक बार फिर दहला दिया. रात भर हुए सिलसिलेवार धमाकों ने शहर जला डाला नैट आधी रात को कीव के लोग अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे थे. मेट्रो स्टेशन, अंडरपास और तहखानों में हज़ारों लोग छिपे हुए थे, जब रूस ने एक बार फिर मिसाइलों और ड्रोन से हमला बोला. नैट पुतिन ने कीव पर हर तरफ से इतने ड्रोन दागे कि यूक्रेन का एयर डिफेंस सिस्टम भी चकरा गया.
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कीव पर रूस के अब तक के सबसे बड़े हमले में अकेले कीव शहर में 27 से ज्यादा इलाकों को निशाना बनाया गया. 6 हमले तो सिर्फ कीव के जुलियानी हवाई अड्डे पर किए गए, जहां अमेरिका से मिला पैट्रियट एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम तैनात है. इस हमले में इस्कंदर के क्रूज़ मिसाइल का इस्तेमाल हुआ. नैट इसके साथ-साथ शाहेद आत्मघाती ड्रोन से भी बमबारी की गई. नैट इस हमले को राष्ट्रपति ट्रंप की ओर से पुतिन को दी गई डेडलाइन का जवाब माना जा रहा है.
पिछले हफ्ते ट्रंप ने कहा था कि वो रूस को यूक्रेन के साथ समझौता करने के लिए 50 दिन की डेडलाइन को छोटा कर 10 से 12 दिन का कर देंगे. अगर समझौता नहीं हुआ तो वो रूस पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगा देंगे. कीव का ये हमला पुतिन की तरफ से आया जवाब माना जा रहा है. ट्रंप को पुतिन की ये कार्रवाई नागवार गुजर रही है. इस वजह से रूस से तेल खरीदने वाला भारत अब उनके निशाने पर है. भारत पर 25% टैरिफ लगाने में इसे खुद ट्रंप बड़ा फैक्टर बता चुके हैं, जिसे भारत में विपक्ष ने बड़ा मुद्दा थमा दिया है.
रूस-भारत के रिश्ते…
रूस भारत को सस्ते दाम पर कच्चा तेल बेचता है, जो वैश्विक बाजार मूल्य से प्रति बैरल 4-5 डॉलर कम होता है. साल 2022 से 2025 तक रूसी तेल की औसत कीमत 65-75 डॉलर प्रति बैरल रही, जबकि ब्रेंट क्रूड की कीमत 80-85 डॉलर प्रति बैरल के आसपास थी. रूस से कच्चा तेल खरीदने की वजह से 3 साल में भारत को 11 से 25 अरब अमेरिकी डॉलर की अनुमानित बचत हुई है. रूस से सस्ता कच्चा तेल मिलने की वजह से भारत का तेल बिल कम रहा और चालू खाते को नियंत्रित करने में सहायता मिली. इस साल भारत अपनी कुल आयातित कच्चे तेल का लगभग 40% हिस्सा रूस से मंगवा चुका है.
पश्चिमी एशिया के देशों से तेल मंगवाने में लॉजिस्टिक भी एक समस्या है. वहां जंग से पहले ही हालत अस्थिर हैं और अमेरिकी हमले में कब ईरान स्ट्रेट ऑफ हार्मूज को कर दे कुछ कहा नहीं जा सकता, इसलिए रूस से तेल मंगाना भारत के लिए हर लिहाज से अच्छा है. लेकिन ट्रंप अब इस कारोबार पर पाबंदी लगवाना चाहते हैं.
ट्रंप की योजना सीधी है. रूस का तेल मार्कट में आने से रोक कर वो पुतिन को चोट देने के साथ साथ अपनी भी जेब भर लेंगे क्यों ऐसी स्थिति में तेल के दाम बढ़ जाएंगे और अमेरिका महंगे और मुंहमांगे दाम पर तेल बेच पाएगा. तो ट्रंप अपनी जेब भरने के लिए दुनिया को महंगाई में झोंकने को भी तैयार हैं, क्योंकि तेल के दाम में उबाल आने से दुनिया में महंगाई बढ़ेगी और इसका सबसे ज्यादा खामियाजा भारत जैसे विकासशील देशों को झेलना होगा.
भारत की विदेश नीति स्वतंत्र रही है. आजादी के इतने सालों बाद भी हम किसी कैम्प के सदस्य नहीं हैं, लेकिन दुनिया जितनी तेजी से बदल रही है, खतरनाक हो रही है, उसमें लगता है कि भारत को अपनी स्वतंत्र विदेश नीति की वजह से कई बड़ी परीक्षाएं देनी पड़े. ट्रंप के भारत से चिढ़ने की एक बड़ी वजह यही है.
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डोनाल्ड ट्रंप भारत से क्या चाहते हैं?
डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के फर्क को भी बखूबी दुनिया को समझा दिया है. एक तरफ पाकिस्तान है, जिसकी सेना अमेरिकी आशीर्वाद पाने के लिए अपनी जनता, उसके हक अपने देश के हितों को भी ताक पर रख सकती है. लेकिन भारत से इस सबकी उम्मीद कोई नहीं कर सकता. भारत अपना हर फैसला देशहित को ध्यान में रखकर लेता है. हमारी यही नीति अमेरिकी जैसी महाशक्तियों को चुभती हैं क्योंकि हम किसी की चापलूसी नहीं करते.
डोनाल्ड ट्रंप अपने सबसे शक्तिशाली लड़ाकू विमान भारत को बेचना चाहते हैं. एक F-35 की कीमत 1000 करोड़ रुपये के आसपास है. ऐसे में इतना महंगा लड़ाकू विमान भारत खरीदेगा ये बहुत बड़ा सवाल है क्योंकि ऑपरेशन सिंदूर में जिस तरह से अमेरिका ने पाकिस्तान परस्त की भूमिका निभाई है, उसके बाद जंग में उसके हथियार कितने भरोसेमंद होंगे ये बहुत बड़ा सवाल है. इसीलिए अमेरिका और डोनाल्ड ट्रंप के खुलेआम ऑफर देने के बावजूद भारत ने इसे लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं.
दुनिया का सबसे खतरनाक स्टेल्थ फाइटर जेट F-35 कई बार क्रैश हो चुका है. इसे अमेरिका भले ही सबसे शक्तिशाली लड़ाकू विमान बताए लेकिन उसे लेकर ये चिंता वाईक में गंभीर है.
ट्रंप जानते हैं कि भारत को लड़ाकू विमानों की जरूरत है, इसीलिए उनकी कोशिश महंगे F-35 को भारत को बेचने की है. 5 महीने पहले वो इसका ऑफर बिना मांगे दे चुके हैं, लेकिन भारत की तरफ से इसे लेकर खामोशी को तोड़ने के लिए वो दबाव बनाने में जुट गए हैं.
ट्रंप की टैरिफ भारत के लिए मौका!
अमेरिकी टैरिफ भारत के लिए एक मौका हैं. एक्सपर्ट ऐसा क्यों कह रहे हैं, उसे समझने के लिए कल लॉन्च हुए सैटेलाइट से समझते हैं. ISRO ने कल अब तक के सबसे महंगे और सबसे शक्तिशाली अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट निसार को लॉन्च किया गया. इस मिशन पर 1.5 बिलियन डॉलर यानी करीब 12,500 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं. इसे NASA और ISRO ने मिलकर बनाया है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जो अमेरिका आज हमारे साथ मिलकर सैटेलाइट लॉन्च कर रहा है. उसी ने 30 साल पहले भरपूर कोशिश की कि हमें रॉकेट के क्रायोजेनिक इंजन तकनीक न हासिल हो. इसके लिए अमेरिका ने हमारे सारे रास्ते बंद कर दिए. उसने प्रतिबंध लगाए कूटनीतिक दबाव डाला और अंतर्राष्ट्रीय समझौतों में बाधा डाली, जिससे भारत को अंतरिक्ष-यात्रा करने वाले देशों के विशिष्ट क्लब से बाहर रखा जा सके, लेकिन हिंदुस्तान ने इन सारी मुश्किलों का सामना करते हुए भारत ने अपने दम पर ही क्रायोजेनिक इंजन को बनाकर अपनी ताकत दिखा दी. एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर भारत कृषि और उद्योग को लेकर रिफॉर्म करे तो अमेरिकी टैरिफ की धमकी बेअसर हो सकती है.
निसार की तस्वीर ALFA TEXT इसरो-नासा का सैटेलाइट सबसे महंगा और ताकतवर सैटेलाइट कभी अमेरिका ने भारत को तकनीक नहीं लेने दी. भारत को रूस से क्रायोजेनिक इंजन की तकनीक नहीं लेने दी भारत ने अपने दम पर क्रायोजेनिक इंजन बनाकर दिखाया. रिफॉर्म ही टैरिफ के संकट से निकालेगा?
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वक्त की मांग है कि हमारी सरकार रिफॉर्म करे. इससे ये होगा कि कारोबार में अमेरिकी निर्भरता कम होगी. अमेरिका ही नहीं भविष्य में कोई भी देश हमें आंखें नहीं दिखा पाएगा. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, उसे समझिए. अमेरिका को भारत से 81 बिलियन डॉलर का निर्यात होता है. अमेरिकी आयात में हमारी हिस्सेदारी सिर्फ 2.4 फीसदी है यानी हम अमेरिका के बहुत छोटे कारोबारी साझेदार हैं. अगर हम कमर कस लें तो हम दुनिया के बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर अपनी ताकत बढ़ा सकते हैं क्योंकि हम दुनिया को 441 बिलियन डॉलर का निर्यात करते हैं, जबकि दुनिया का बाजार 24 ट्रिलियन डॉलर का है. इसमें हमारी हिस्सेदारी 2 फीसदी से भी कम है. सोचिए अगर हम इस बाजार में अपनी एक फीसदी भी हिस्सेदारी बढ़ा लें तो डोनाल्ड ट्रंप जैसा कोई भी देश हमें आंखें नहीं दिखा पाएगा.
भारत, अमेरिका को 12 बिलियन डॉलर के इलेक्ट्रिक उत्पाद बेचता है, जो उसके आयात किए जाने वाले इलेक्ट्रिक उत्पाद का सिर्फ 3 फीसदी से भी कम है. वहीं, हम दुनिया में 40 बिलियन डॉलर के इलेक्ट्रिक उत्पाद निर्यात करते हैं, जबकि दुनिया में इसका बाजार 3.8 ट्रिलियन डॉलर का है और हमारी इसमें हिस्सेदारी सिर्फ 1 फीसदी है. अगर हम इसे 1 से दो कर दें, तो भी हमारा काम हो जाएगा. इसी तरह से कीमती पत्थर और जेनरिक दवा के उद्योग में सरकार बढ़ावा दे, कारोबारियों की मदद करे, अपने माल की गुणवत्ता में इजाफा करे तो बहुत कुछ हो सकता है. इसलिए हम कह रहे हैं कि ये मौका है, अपनी कमियों को सुधारने का, जिससे हम कारोबार में आत्मनिर्भर हो सकें. कोई भी देश हमें कारोबार के नाम पर ब्लैकमेल न कर सके.
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