बिहार में चुनाव का माहौल है और हर बार की तरह नेता बड़े-बड़े वादे कर रहे हैं. इस बीच सवाल ये उठ रहा है कि अगर ये वादे पूरे भी हो गए तो क्या योजनाओं के लिए आवंटित पैसा वाकई इस्तेमाल हो रहा है? कॉम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया (CAG) की एक ताजा रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 2023-24 में 20 योजनाओं के लिए 7,567.93 करोड़ रुपये का बजट पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं हुआ.
सबसे ज्यादा बिना इस्तेमाल हुआ पैसा स्वच्छ भारत मिशन (दूसरा चरण) के लिए था, जो 1,628 करोड़ रुपये था. इसके बाद इंदिरा आवास योजना के लिए 1,500 करोड़ रुपये जो गरीबों को घर बनाने के लिए अनुदान देती है. स्वास्थ्य योजनाओं के लिए भी 1,387.52 करोड़ रुपये का फंड बिना इस्तेमाल रहा.
खास बात यह है कि एक दूसरी CAG रिपोर्ट ने हाल ही में बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाल स्थिति को उजागर किया है. इसके बावजूद, फाइनेंस कमीशन की सिफारिशों पर आधारित स्वास्थ्य कार्यों राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत ढांचागत रखरखाव, सात निश्चय-2 के तहत स्वास्थ्य केंद्रों के नवीकरण और नाबार्ड द्वारा प्रायोजित स्वास्थ्य उप-केंद्रों के भवन निर्माण के लिए आवंटित फंड पूरी तरह बिना इस्तेमाल रहे.
अन्य प्रमुख योजनाओं में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के लिए 1,100 करोड़ रुपये, वित्त पोषित कॉलेजों और गैर-सरकारी स्कूलों के लिए 849.84 करोड़ रुपये, और राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के लिए 336 करोड़ रुपये बिना इस्तेमाल रहे.
लगातार बिना इस्तेमाल हो रहा बजट
कई योजनाओं का बजट पूरी तरह बिना इस्तेमाल रहा, वहीं कई अन्य योजनाओं में आधा ही खर्च हुआ. 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की बड़ी योजनाओं में शिक्षा, कृषि, गृह, आपदा प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण विभागों में 2019-20 से लगातार फंड बिना इस्तेमाल रहा. शिक्षा के लिए हर साल 2019-20 से 2023-24 तक 10,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का फंड बिना इस्तेमाल रहा. 2024 में ग्रामीण विकास के लिए आवंटित बजट का करीब 53% और कृषि व आपदा प्रबंधन का 47% हिस्सा खर्च नहीं हुआ.
क्यों हो रहा ऐसा?
CAG रिपोर्ट के मुताबिक, फंड के इस्तेमाल में कमी की मुख्य वजहें हैं.
अतिबजट (ओवरबजटिंग): जरूरत से ज्यादा बजट आवंटन.
खराब व्यय योजना: फंड खर्च करने की ठोस योजना का अभाव.
नौकरशाही में देरी: प्रशासनिक स्तर पर देरी.
कमजोर जवाबदेही: जिम्मेदारी का अभाव.
कमजोर वित्तीय नियंत्रण: फंड के उपयोग पर निगरानी की कमी.
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