बिहार में अवैध मदरसों का जाल बिछा है. इन मदरसों में जो हो रहा है वह खतरनाक और डराने वाला है. प्रशासन को इसकी खबर तक नहीं है. कोई नहीं जानता कि ऐसे कितने मदरसे हैं, इनमें कितने बच्चे पढ़ते हैं, उन्हें क्या पढ़ाया जाता है और यहां क्या-क्या हो रहा है. इस देश में 145 करोड़ लोग रहते हैं और जब इतनी भीड़ होती है तो ऐसी खबरें कम परेशानी करती हैं. हम सोचते हैं कि अगर अवैध मदरसे चल रहे हैं तो हम क्या करें? लेकिन ये सोच इस देश को कहां ले जा सकती है, आज इस पर बात करना जरूरी है.
पिछले साल उत्तर प्रदेश में 300 से ज्यादा अवैध मदरसों, मस्जिदों, मजारों और ईदगाह पर बुलडोजर चलाया गया. ये भी आरोप लगे कि इन्हें बनाने के लिए सारा पैसा हवाला से आया था. ज्यादातर मदरसे नेपाल की सीमा पर थे इसलिए जांच एजेंसियों को ये भी शक हुआ कि हवाला का पैसा नेपाल के रास्ते उत्तर प्रदेश में आ रहा है. आजकल खबरों में एक नाम आप बार बार सुन रहे होंगे. छांगुर बाबा उर्फ जलालुद्दीन. ये एक पीर बाबा है और इस पर भी आरोप हैं कि इसने नेपाल की सीमा पर भारत में कई जमीनें खरीदीं. इन खबरों को देखकर बहुत सारे लोग ये सोच लेते हैं कि ये सिर्फ एक राज्य और कुछ जिलों की बात है. लेकिन हकीकत इससे भी ज्यादा चिंताजनक है.
हाल ही में इनकम टैक्स विभाग को ये खबर मिली कि भारत और नेपाल के बॉर्डर पर 2 हजार के नोट बदले जा रहे हैं और इन पैसों का इस्तेमाल अवैध गतिविधियों के लिए हो रहा है. जब जांच हुई तो इनमें से कई दावे सही निकले और इसकी पूरी रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजी गई. लेकिन इसके बाद हमने भी अपने स्तर पर सारी कड़ियों को जोड़ना शुरू किया और ऐसा करते हुए हमारी टीम उन अवैध मदरसों तक पहुंच गई, जो हवाला के पैसों से चल रहे हैं. हमें नेपाल की सीमा के पास मुजफ्फरपुर और सीतामढ़ी ज़िले में ऐसे कई अवैध मदरसे मिले, जो भारत के लिए खतरा हो सकते हैं.
इन मदरसों का कोई सरकारी रिकॉर्ड नहीं
इन मदरसों की ना तो कोई निगरानी होती है ना इनका कोई सरकारी रिकॉर्ड है. ना इनमें पढ़ने वाले बच्चों का कोई आधिकारिक आंकड़ा है. नियमों के खिलाफ यहां बच्चों को सिर्फ धार्मिक शिक्षा दी जा रही है. इन्हें चलाने वाले मौलवी हवाला का पैसा लेने के लिए भी तैयार हैं. और सबसे बड़ी बात अगर अरब देशों में बैठा कोई व्यक्ति इन्हें पैसा दे और ये कहे कि इन मदरसों में बच्चों को जिहाद सिखाया जाए तो ये इसके लिए भी तैयार हैं.
हमारे देश में इस तरह की खबरों को मुस्लिम विरोधी मान लिया जाता है. आज भी बहुत सारे लोग ऐसे होंगे, जो ये कहेंगे कि हम ये खबर क्यों छाप रहे हैं. तो इस खबर को दिखाने का मकसद ये है कि हम इन छोटे छोटे मुस्लिम बच्चों को कट्टरवाद से बचाना चाहते हैं. क्योंकि इनकी कोई गलती नहीं है. अगर इन्हें स्कूल भेजने की उम्र में ऐसे मदरसों में भेजा जा रहा है, जो जिहाद की फैक्ट्री बने हुए हैं तो इसे रोकना जरूरी है.
‘मदरसा’ शब्द अरबी भाषा से आया है. अरबी में ‘दरस’ का मतलब होता है, पढ़ाई करना. एक जमाने में इस्लामिक शिक्षा सिर्फ मदरसों तक सीमित थी, जहां कुरान, हदीस और इस्लाम से जुड़ी दूसरी धार्मिक किताबें पढ़ाई जाती थीं. स्कूल का तो विरोध होता था और इन्हें इस्लाम विरोधी माना जाता था. मुसलमानों के इसी विश्वास को देखते हुए भारत में मदरसा शिक्षा को संवैधानिक मान्यता दी गई.
हर नियम-कानून से आजाद होते हैं ये मदरसे
संविधान के अनुच्छेद 30 के भाग एक में इसका विस्तार से जिक्र किया गया. लेकिन बाद में इसी संविधान का उल्लंघन होने लगा. आज भारत में तीन तरह के मदरसे हैं. पहले वो, जो सरकारी खर्च से चलते हैं. दूसरे वो, जो सरकार से मान्यता प्राप्त हैं, लेकिन उन्हें फंडिंग बाहर से मिलती है. और तीसरे मदरसे वो हैं, जिन्हें आजाद मदरसा कहा जाता है. ये ऐसे मदरते होते हैं, जो हर नियम-कानून से आजाद होते हैं और जहां धार्मिक शिक्षा पर ज्यादा जोर होता है और सरकार इन मदरसों पर किसी भी तरह से कोई निगरानी नहीं रख पाती और उसे कभी भी ये पता नहीं चलता कि इन मदरसों में जो बच्चे पढ़ रहे हैं, उन्हें कौन पढ़ा रहा है और उनका सिलेबस क्या है?
बिहार में हमें ऐसे ही मदरसे मिले हैं, जहां कुरान की आयतें पढ़ाई जाती हैं और जिहाद को जरूरी बताया जाता है. हम चाहते हैं कि ना सिर्फ बिहार की सरकार बल्कि भारत के हर राज्य की सरकार और प्रशासन हमारा ये स्टिंग ऑपरेशन देखे और ऐसे मदरसों को रोका जाए, जो छोटे छोटे बच्चों के दिमाग में ज़हर भर रहे हैं. नेपाल बॉर्डर के पास हवाला से जेहाद की पढ़ाई, फर्जी आईडी पर बांग्लादेशी बच्चों का दाखिला – आजतक की खोजी पड़ताल में इसका बड़ा खुलासा हुआ.
यहां जेहाद की तालीम, भगोड़े जाकिर नाईक के वीडियो, विवादित किताबें और फर्जी आईडी पर बांग्लादेशी बच्चों का दाखिला– सब कुछ खुलकर हो रहा है, बगैर किसी सरकारी डर के. ये सिर्फ चंद इमारतें नहीं, बल्कि आने वाली नस्ल को नफरत की जमीन पर तैयार करने की फैक्ट्रियां बन चुकी हैं. जो पिछले 30 साल से बच्चों को इस्लामी तालीम दे रहा है. करीब 50 बच्चे यहां पढ़ते हैं, जिनमें 10 यतीम (अनाथ) हैं. मदरसे के इंचार्ज अफजल इंआम कादरी से हमारी मुलाकात एक NGO प्रतिनिधि बनकर हुई. उन्हें बताया कि खाड़ी देश से हवाला के ज़रिए इमदाद यानी फंड आना है– क्या कोई दिक्कत है?
मदरसे के इंचार्ज अफजल इंआम कादरी से रिपोर्टर: आपको कोई तकलीफ तो नहीं है इस बात से कि पैसा खाड़ी देश से आएगा हवाला के जरिए, जोकि गैरकानूनी है… तो इमदाद मिलेगा तो कोई दिक्कत?
इंआम: कोई दिक्कत नहीं है बता दिया. मदरसे का अकाउंट खाली अपना कमिटी चेक करती है बाहर जाती नहीं. कोई रजिस्ट्रेशन हमारे मदरसे का होना ही नहीं दिया. गवर्नमेंट के अंदर हम लोग नहीं जाने देंगे, प्राइवेट सेक्टर से जाएगा वो सही है. किसी को खबर भी नहीं होगी, पैसा आम भी नहीं होगी.
रिपोर्टर: लेकिन हमारा पैसा तो खातों में नहीं आएगा, कैश में आएगा… कैसे दिखाएँगे?
इंआम: कैश में आया तो बता दिया… प्राइवेट रजिस्टर में… अगर कहेंगे तो खाता में भी चढ़ा देंगे, नहीं तो कहेंगे सुआ का काम करके दिखा दीजिए, तो खाता में रखने की ज़रूरत नहीं है… आपका आदेश के मुताबिक फंड उसी में खर्च कर देंगे.
इंआम: आपकी इमदाद अच्छी रही मोटी रकम रही तो एक शोभा फैकल्टी बढ़ाएँगे… गरीब बच्चों को पकड़कर घर-घर से बुलाएंगे… उनके कपड़े, किताब, पढ़ाई का इंतज़ाम… और बड़ा होने पर दिमाग वॉश करेंगे… पहले इसकी जड़ को मज़बूत किया तालीम से, फिर जेहाद के बारे में डालेंगे.
रिपोर्टर: ये पैसा आएगा हवाला के थ्रू… तो आप ले लेंगे? कैसे हिसाब में दिखाएँगे?
अजरुद्दीन: हां ले लेंगे… इससे पहले भी गुजरात के मूसी फाउंडेशन से हवाला से पैसा लाते थे. दान पेटी का हवाला दिखाते हैं… रसीद बनाते हैं… कभी पैसा ज्यादा होता है तो किसी एक दान पेटी का लिख देते हैं कि यहाँ से आ गया… साल में रजब के महीने में हिसाब देते हैं.
रिपोर्टर: कुछ बांग्लादेशी बच्चे हैं, उनको पढ़ा सकते हैं?
अजरुद्दीन: देहात है, चल जाएगा… बस एक आईडी इंडिया की होनी चाहिए चाहे फर्जी हो.
रिपोर्टर: फर्जी हो जाए?
अजरुद्दीन: फर्जी हो जाए.
अख्लाख (मदरसे के सेक्रेटरी): हवाला वाला… हम कर लेंगे… गाँव वाला कर देंगे, यहाँ के मुखिया भी कर लेंगे… कर लेंगे ना ये ठीक है. मदरसे में भगोड़ा जाकिर नाईक के वीडियो और विवादित किताब ‘तालीमुल इस्लाम’ की पढ़ाई.
फैशल (मौलवी): डॉक्टर जाकिर नाईक की वीडियो दिखाकर बच्चों को तालीम देते हैं… अल्लाह एक है, बाकी सब काफिर… हम लोग का पूरा एक से लेके पाँच सात तक चलता है.
नेपाल से सटा बिहार का इलाका… जिस पर प्रशासन की नजर बमुश्किल ही पड़ती है. यहां बने तमाम मदरसे अब हवाला के जरिये जिहाद की तालीम का गढ़ बन चुके हैं. इन मदरसों में तालीम ले रहे हैं अवैध रूप से भारत में घुसे बांग्लादेश के बच्चे. जिनके दिमाग में खाड़ी देशों से पैसा लेकर कट्टरता का जहर भरा जा रहा है… जिसका खुलासा आजतक के स्टिंग ऑपरेशन में हुआ है.
मुजफ्फरपुर के प्राइवेट जामिया नूरिया मेराजुल उलूम में करीब 50 बच्चे हैं. यहां हमारी इन्वेस्टिगेशन टीम ने एक NGO का प्रतिनिधि बनकर मुलाकात की.. जिसमें मदरसे के इंचार्ज ने कहा कि उन्हें हवाला के पैसे से कोई दिक्कत नहीं है. जब उनसे पूछा कि वो बच्चों का ब्रेनवॉश कैसे करते हैं.. जो उन्होंने पूरी प्रक्रिया बता दी. इसके बाद हमारी टीम सीतामढ़ी में सुनसान जगह पर बने मदरसा इस्लामिया मेहमूदिया में पहुंची जहां कोई बस्ती नहीं है… जहां भी मदरसा संचालक हवाला के जरिये पैसे लेने को तैयार हो गए.
हवाला के पैसे से दी जा रही जिहाद की तालीम
देमा गांव में एक सरकारी बिल्डिंग पर अवैध कब्जा करके इस्लामिया दारुल कुरान मदरसा चलाया जा रहा है… जिसमें भगोड़े जाकिर नायक के वीडियो दिखाकर बच्चों के दिमाग में जहर भरा जा रहा है. सोचिए बिहार के कुछ मदरसों में किस तरह हवाला के पैसे से जिहाद की तालीम दी जा रही है. बांग्लादेशियों को अवैध रूप से लाया जा रहा है. उनके फर्जी कागजात बनाए जा रहे हैं. बच्चों को भड़काऊ वीडियो दिखाए जा रहे हैं. उनके दिमाग में जहर भरा जा रहा है और ये सब नेपाल से सटी बिहार की सीमा पर हो रहा है.
आजाद मदरसों के नाम पर आज जो कुछ भी भारत में हो रहा है, वो एक जमाने में पाकिस्तान और अफगानिस्तान में भी हुआ था. आज से तीन दशक पहले पाकिस्तान के आज़ाद मदरसों में जिहाद के नाम पर तालिबान की नींव रखी गई थी और आज इस तालिबान ने अफगानिस्तान का क्या हाल किया हुआ है, वो आप सब जानते हैं. हमारे देश में आज़ाद मदरसों का बिजनेस मॉडल इसलिए भी खतरनाक है, क्योंकि यहां ऐसे मुद्दों को सिर्फ राजनीति के चश्मे से देखा जाता है.
भारत के सिर्फ 3 प्रतिशत बच्चे मदरसों में पढ़ रहे
भारत में 20 से ज्यादा राज्यों में मदरसा बोर्ड बने हुए हैं, जिनका संचालन राज्य सरकारें खुद करती हैं. इसके अलावा इन मदरसा बोर्ड को अच्छा खासा पैसा भी मिलता है. 2021-22 में केंद्र सरकार ने देशभर के मदरसों के लिए 174 करोड़ रुपये, बिहार सरकार ने 175 करोड़ रुपये और उत्तर प्रदेश ने 479 करोड़ रुपये दिए थे. इसके अलावा पश्चिम बंगाल में तो इस साल अल्पसंख्यक विभाग को 5 हजार 602 करोड़ रुपये दिए गए हैं, जिनमें कुछ पैसा मदरसों पर भी खर्च होगा. यहां एक सवाल ये भी उठता है कि जब मदरसों पर सरकारें इतना पैसा खर्च करती हैं तो फिर कुछ मदरसे हवाला के पैसे से क्यों चलते हैं?
इसकी बड़ी वजह ये है कि ये आजाद मदरसे होते हैं, जिन्हें चोरी छिपे इसलिए चलाया जाता है ताकि मुस्लिम बच्चों को कट्टरवाद सिखाया जा सके. और ऐसा नहीं है कि हमारे देश के आम मुसलमान इस बात को नहीं जानते. The State of Muslim Education in India नाम से एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें ये बताया गया था कि 2022-23 में भारत के 97 प्रतिशत मुस्लिम बच्चे सामान्य स्कूलों में पढ़ रहे थे, जबकि सिर्फ 3 प्रतिशत बच्चे मदरसों में पढ़ रहे थे. आखिर में हम यही कहेंगे कि देश में मदरसे होना गलत नहीं है. गलत ये है कि हवाला के गलत पैसे से अवैध मदरसे खुल जाएं और सरकारों को इनकी भनक तक ना हो.
—- समाप्त —-