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    स्कूल नहीं बना पाए, VIP के लिए सड़क फटाफट बना दी… 7 बच्चों की मौत के बाद दिखी प्रशासन की असंवेदनशीलता

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    राजस्थान के झालावाड़ में एक सरकारी स्कूल की छत गिरने से सात बच्चों की मौत हो गई और 28 घायल हो गए. यह घटना प्रार्थना सभा के दौरान हुई. बच्चों ने पहले ही छत से मलबा गिरने की शिकायत की थी, लेकिन उस पर ध्यान नहीं दिया गया. प्रशासन की देरी से मदद पहुंचने पर स्थानीय लोगों ने खुद बच्चों को अस्पताल पहुंचाया. यह स्कूल 1991 में बना था और जर्जर हालत में था, जिसकी मरम्मत सरकारी फाइलों में अटकी रही.

    शिक्षा विभाग और पंचायती विभाग एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालते रहे। शिक्षा मंत्री ने घटना के बाद जर्जर स्कूलों की मरम्मत के लिए 200 करोड़ रुपये खर्च करने की बात कही है.

    मृतक बच्चों के परिजनों को 10 लाख की आर्थिक सहायता का ऐलान

    राजस्थान के शिक्षा एवं पंचायती राज मंत्री मदन दिलावर ने झालावाड़ के एसआरजी अस्पताल में भर्ती 11 घायल बच्चों से मुलाकात कर उनका हालचाल पूछा. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इस हादसे में 7 बच्चों की जान चली गई है, ये बहुत दुखद घटना है. उन्होंने कहा कि मृतक बच्चों के परिजनों को 10 लाख रुपए की आर्थिक सहायता और एक परिजन को संविदा पर नौकरी दी जाएगी.

    आगे कहा गया कि सरकार एक नया स्कूल बनवाएगी और स्कूल के कमरों का नाम मृतक छात्रों के नाम पर रखा जाएगा. उन्होंने कहा कि हादसे की जांच की जाएगी और जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. हमने लापरवाही के लिए 5 शिक्षकों को निलंबित कर दिया है.

    बच्चों की मौत ने झकझोरा

    आम आदमी का बच्चा, गरीब का बेटा-बेटी, जो महंगे निजी स्कूल में फीस के कारण नहीं पढ़ सकते, दूर-दराज गांवों में रहते हैं. सरकारें जिनके वोट के नाम पर मुफ्त शिक्षा का वादा करती हैं. झालावाड़ में सरकारी स्कूल की छत गिरने से सात बच्चों की मौत और 21 के घायल होने की खबर झकझोरती है. मृतक और घायल सभी बच्चे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समाज से हैं. जिन समुदायों के नाम पर सबसे अधिक राजनीति होती है, उन्हीं बच्चों को सुरक्षित शिक्षा का माहौल तक नहीं मिलता.

    दिल दहला देने वाले दृश्य

    झालावाड़ से हादसे के बाद जो तस्वीरें और वीडियो सामने आई हैं, उसमें स्कूल ड्रेस पर खून लगा है. एक बेटी बेसुध है, जिसे गोद में उठाकर ले जाया गया. एक अन्य बच्चा सीने से लगाकर लाया गया. तीसरे को गोद में उठाकर बचाने लाया गया. लाल शर्ट पहने एक शख्स ने बच्चे को उठाया हुआ है.

    हादसे का मंजर

    “दीवार गिरी, बच्चे दब गए.” यह चीखें मलबे में तब्दील स्कूल इमारत के भीतर से आईं. झालावाड़ का यह सरकारी स्कूल, जहां बच्चे प्रार्थना करने वाले थे, अचानक पूरी छत गिर गई. सरकारी लापरवाही से बच्चे दब गए. आसपास चीख-पुकार मच गई. मातम पसर गया. सातवीं-आठवीं क्लास के बच्चे, जिनका भविष्य बनना था, उनके लिए स्कूल कब्रगाह बन गया.

    खड़ी रह गई बस वही दीवार, जिस पर लिखा था – ‘बांटने की कोई चीज है तो ज्ञान है, दिखाने की कोई चीज है तो दया है.’ लेकिन गिर गई उस तरफ की दीवार, शायद जिस पर लिखा होता कि अगर नेताओं के बच्चे इस स्कूल में पढ़ते तो ना छत गिरती, ना बच्चे मरते.

    हादसे के बाद की हकीकत

    बच्चों के जीवित रहते जिन लोगों ने स्कूल की जर्जर हालत पर ध्यान नहीं दिया, वही अब जांच का नाटक कर रहे हैं. शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कहा कि इलाज का खर्च सरकार उठाएगी और उच्चस्तरीय जांच कराएंगे.

    हादसे के बाद की संवेदनहीनता

    झालावाड़ में बच्चों की मौत के बाद लोगों में गुस्सा है. लेकिन प्रशासन वीवीआईपी के दौरे की तैयारियों में जुटा है. अस्पताल के पास सड़क मरम्मत हो रही है ताकि नेताओं की कारों को झटका न लगे. बच्चों की सुरक्षा की परवाह किसी को नहीं.

    सड़क बनने के बाद जब पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का काफिला वहां से गुजरा तो नई बनी सड़क उखड़ गई.

    बच्चों की नाजुक हड्डियां और गिरती छत

    बच्चों का शरीर कोमल होता है. उनकी हड्डियां अभी मजबूत नहीं होतीं. माताएं अपने बच्चों को खरोंच तक नहीं लगने देना चाहतीं, लेकिन राजस्थान में स्कूल ही मौत की छत बनकर गिरने लगे हैं. मुख्यमंत्री को अब एक्शन लेना होगा.

    विभागों की खींचतान बनी जानलेवा

    जिस स्कूल की छत गिरी, वह 20 साल पहले बनी थी. पंचायत ने स्कूल बनवाया था. मरम्मत के लिए पंचायती राज विभाग और शिक्षा विभाग उलझते रहे. एक करोड़ 94 लाख की राशि मनोहर थाना के स्कूलों के लिए स्वीकृत थी, लेकिन यह स्कूल उससे वंचित रहा. अधिकारियों की आपसी उलझन बच्चों की जान ले गई.

    क्या बदल पाएगी राजनीति?

    पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कहा कि यदि ऐसी इमारतों को पहले चिन्हित किया गया होता तो हादसा नहीं होता. हादसे के बाद कुछ अफसर सस्पेंड कर दिए गए. लेकिन क्या अगला हादसा रुक जाएगा?

    ग्राउंड रिपोर्ट: भय के साये में पढ़ाई

    आजतक की टीम भरतपुर के चिकसाना गांव के सरकारी स्कूल पहुंची. वहां की कक्षाएं पूरी तरह जर्जर थीं. बच्चे डर के साये में पढ़ाई करने को मजबूर हैं. शिक्षकों ने कई बार शिकायत की लेकिन कोई असर नहीं हुआ. जहरीले कीड़े भी स्कूल में घुस आते हैं.

    देशभर के स्कूल खतरे में

    • ओडिशा: 12,343 जर्जर स्कूल
    • महाराष्ट्र: 8,071 स्कूल खराब हालत में
    • पश्चिम बंगाल: 4,269 स्कूल खस्ताहाल
    • गुजरात: 3,857 स्कूल जोखिम में
    • आंध्र प्रदेश: 2,789 स्कूल जर्जर
    • मध्य प्रदेश: 2,659 स्कूल खतरे में
    • उत्तर प्रदेश: 2,238 स्कूल बदतर हालत में
    • राजस्थान: 2,061 स्कूल जर्जर

    देश के 50,000 से अधिक स्कूल जर्जर हैं लेकिन यह चुनावी मुद्दा नहीं बनता.

    झारखंड और बिहार के हालात भी खराब

    रांची का अब्दुल कयूम अंसारी स्कूल, जिसमें दीवारें गिरने की कगार पर हैं. बच्चों को छत की तरफ देखते हुए पढ़ना पड़ता है. छाता लेकर बैठना पड़ता है. बिहार के अररिया में बच्चों को बांस की झोंपड़ियों में पढ़ना पड़ता है. न पानी की व्यवस्था, न शौचालय. 210 बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा तीन शिक्षकों के कंधों पर है.

    मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में भी हाल बेहाल

    सतना में प्लास्टर गिरने से बच्चा घायल हुआ. प्रशासन ने कोई सबक नहीं लिया. लखनऊ में मोहनलालगंज के एक स्कूल की दीवारें दरारों से भरी हैं. बच्चे खतरे में हैं.

    —- समाप्त —-



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