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    दूसरे देश के नागरिकों को वोटिंग का अधिकार दिया, चुनाव लड़ने की भी आजादी, पुतिन की दरियादिली के पीछे का गेम प्लान क्या है?

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    रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने बेलारूस के नागरिकों के लिए कई अहम घोषणाएं की हैं. रूस में स्थायी रूप से रह रहे बेलारूस के नागरिक अब रूस में मतदान कर सकेंगे. इसके अलावा वे स्थानीय चुनावों में बतौर उम्मीदवार भी खड़े हो सकेंगे. रिपोर्ट के मुताबिक यही अधिकार बेलारूस में स्थायी रूप से रहने वाले रूस के नागरिकों को भी हासिल होगा.

    पुतिन का ये प्लान उनके उस सपने को साकार करने की कोशिश है जिसके तहत वे रूस और बेलारूस के बीच पूर्ण एकीकरण के माध्यम से “यूनियन स्टेट” के सपने को साकार करना चाहते है. पुतिन का लक्ष्य बेलारूस को रूस के राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य प्रभाव क्षेत्र में पूरी तरह शामिल करना है, जिससे बेलारूस की संप्रभुता सीमित हो और रूस का क्षेत्रीय प्रभुत्व बढ़े. 

    बेलारूस यूक्रेन का पड़ोसी है और रूस-यूक्रेन जंग के दौरान बेलारूस ने पुतिन की बढ़-चढ़कर मदद की है. बेलारूस ने रूस को अपने क्षेत्र का उपयोग करने की अनुमति दी, जिससे रूस ने यूक्रेन पर हमले किए. इससे बेलारूस की रूस के प्रति निष्ठा और निर्भरता और स्पष्ट हो गई.

    बेलारूस के नागरिकों को रूस में अहम अधिकार

    इस नए समझौते का उद्देश्य एक-दूसरे के देशों में रहने वाले रूसी और बेलारूसी नागरिकों के कानूनी अधिकारों को और अधिक समान बनाना है.

    पुतिन ने इस महीने की शुरुआत में रूसी संसद में इस फैसले को प्रस्तुत किया था. पिछले सप्ताह उच्च सदन फेडरेशन काउंसिल ने इस विधेयक को मंजूरी दे दी.

    इसे बाद पुतिन ने व्यक्तिगत रूप से अनुमोदन के लिए रूसी संसद के निचले सदन ड्यूमा को ये कानून भेजा था. 

    रूसी स्टेट ड्यूमा के अध्यक्ष व्याचेस्लाव वोलोडिन ने पहले कहा था कि इस पहल का उद्देश्य “यूनियन स्टेट के ढांचे के भीतर दोनों देशों के बीच एकीकरण और सहयोग को मज़बूत करना” है.

    यह कानून बेलारूस के मौजूदा कानूनों के अनुरूप है जो रूसी नागरिकों को वहां के स्थानीय चुनावों में खड़े होने की अनुमति देता है.

    इस कानून के तहत रूस में रहने वाले बेलारूस के नागरिकों को रूस के स्थानीय चुनावों में मतदान का अधिकार मिल गया है. अब ऐसे बेलारूशियन रूस के स्थानीय चुनाव में बतौर उम्मीदवार खड़े भी हो सकेंगे.

    देखने में तो रूस का ये कदम रूस में रहने वाला बेलारूस के नागरिकों को मिलने वाला एक तरह का अधिकार है. लेकिन इसके पीछे रूस का मकसद ऐतिहासिक और राजनीतिक है.

    बेलारूस को लेकर पुतिन का सपना क्या है?

    प्राचीन रूसी साम्राज्य के वैभव को फिर से स्थापित करना पुतिन का सपना रहा है. 2018 में पुतिन ने रूसी साम्राज्य की स्थापना पर खुलकर अपने मन की बात कही थी. तब पत्रकारों ने उनसे पूछा था कि, “आप अपने देश के इतिहास में किस घटनाक्रम को पलट देना पसंद करेंगे.” इसके जवाब में पुतिन ने बिना झिझके, बिना लाग लपेट के कहा था, “सोवियत यूनियन का विघटन”. पुतिन इसे अपने देश की सबसे बड़ी त्रासदी बताते हैं. 

    बीबीसी की एक रिपोर्ट में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के प्रोफ़ेसर मार्क गेलियोटी कहते हैं कि, “पुतिन चाहते हैं कि रूस फिर से दुनिया में एक बड़ी ताकत बने. लेकिन इसके स्वरूप को लेकर उनकी धारणा 19वीं सदी की उपनिवेशवादी सोच जैसी है.”

    पुतिन की यही थ्योरी बेलारूस को रूस में एकीकरण के लिए प्रेरित करती है. पुतिन का सपना “यूनियन स्टेट” के माध्यम से रूस और बेलारूस का पूर्ण एकीकरण है, जिससे बेलारूस रूस के प्रभाव क्षेत्र में पूरी तरह आ जाए. 

    इंटरनेशनल थिंक टैंक अटलांटिक काउंसिल की एक रिपोर्ट कहती है कि 2023 के लीक दस्तावेजों के अनुसार पुतिन 2030 तक बेलारूस को रूस में विलय करने की योजना बना रहे हैं. इसके लिए वह आर्थिक, सैन्य और राजनीतिक उपाय कर हे हैं. 

    रूस और बेलारूस का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रिश्ता

    रूस और बेलारूस दोनों पूर्व सोवियत संघ का हिस्सा थे और उससे पहले रूसी साम्राज्य के तहत एक साथ थे. इस लिहाज से दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक साम्यता है. 

    यही नहीं दोनों देशों की भाषा, संस्कृति और रूढ़िवादी ईसाई धर्म में समानताएं हैं जो उन्हें सांस्कृतिक रूप से करीब लाती हैं.

    दोनों देश स्लाविक समुदाय का हिस्सा हैं, और बेलारूस की जनसंख्या में रूसी भाषा और संस्कृति का प्रभाव व्यापक है. बेलारूसी और रूसी भाषाएं भी आपस में निकटता रखती हैं. 

    राजनीतिक रिश्ता

    1990 में सोवियत रूस के विघटन के साथ बेलारूस USSR से अलग तो हो गया. लेकिन इसका राजनीतिक और सांस्कृतिक कनेक्शन रूस से बना रहा. वेश-भूषा, खान-पान, धर्म, रीति-रिवाज की समानता दोनों देशों के नागरिकों जोड़े रही. 

    गौरतलब है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजी जर्मनी ने बेलारूस पर कब्जा कर लिया था. लेकिन कुछ ही महीनों के बाद 1944 में रूसी तानाशाह स्टालिन के नेतृत्व में USSR ने बेलारूस को फिर से अपने कब्जे में ले लिया. इसके बाद से 25 अगस्त 1991 तक बेलारूस सोवियत रूस के नियंत्रण में रहा. 

    1994 से बेलारूस में राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको का शासन चल रहा है. लगभग 30 साल के इस शासन में रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने लुकाशेंको की सैन्य, आर्थिक और राजनीतिक मदद की है.

    बेलारूस में 2020 के चुनावों के बाद बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, और चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल उठे, जिससे लुकाशेंको की वैधता पर सवाल उठे. लेकिन इस दौरान  रूस ने लुकाशेंको को समर्थन दिया. इससे बेलारूस और लुकाशेंकों की पुतिन पर निर्भरता और भी बढ़ गई. 

    यूनियन स्टेट ऑफ रूस एंड बेलारूस का उद्देश्य

    रूस और बेलारूस के बीच प्रगाढ़ होते संबंधों की परिणति 1999 में यूनियन स्टेट ऑफ रूस एंड बेलारूस की स्थापना के साथ हुई. यह एक सुपरनैशनल ढांचा है, जिसकी स्थापना 8 दिसंबर 1999 को रूस और बेलारूस के बीच संधि के साथ हुई. इस संधि का मकसद बेलारूस को रूस के प्रभाव में लाना है. 

    इसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक, सैन्य और सांस्कृतिक एकीकरण को बढ़ावा देना है, ताकि एक साझा क्षेत्रीय इकाई बनाई जा सके. इस कॉन्सेप्ट का लक्ष्य दोनों देशों की संप्रभुता को बनाए रखते हुए साझा नीतियों और संसाधनों के माध्यम से सहयोग को गहरा करना है. 
    लेकिन बेलारूस के मुकाबले रूस का बड़ा आकार, बड़ी इकोनॉमी इस मामले में रूस को इस देश पर नियंत्रण रखने का आधार देती है. 

    इस समझौते के तहत साझा आर्थिक नीतियों की पैरवी की गई है. जैसे फ्री ट्रेड और साझा मुद्रा (रूसी रूबल), संयुक्त विदेश और रक्षा नीति. इन कदमों को जरिये रूस को बेलारूस की आर्थिक, रक्षा और विदेश नीति तय करे का अधिकार शामिल है. 

    यही वजह है कि रूस 2023 में बेलारूस में अपने परमाणु हथियारों की तैनाती करने में सफल रहा है. इन परमाणु हथियारों के जरिये रूस नाटो और यूरोपियन यूनियन को धमकाता रहा है. रूस के लिए यह बेलारूस को अपने प्रभाव क्षेत्र में रखने और नाटो/EU के खिलाफ बफर जोन बनाने की रणनीति है.

    यूरोपीय संघ और नाटो, रूस और बेलारूस के बीच बढ़ते एकीकरण को अपने लिए खतरे के रूप में देखते हैं. बेलारूस को रूस का ‘प्रॉक्सी’ माना जाता है, जो रूस की भू-रणनीतिक महत्वाकांक्षाओं को समर्थन देता है.

    बेलारूस के नागरिकों को वोट का अधिकार देना उन्हें रूस के पॉलिटिकल कल्चर में शामिल करने की कोशिश है. पुतिन का लक्ष्य बेलारूस की संप्रभुता को सीमित कर इसे रूस का “वेसल स्टेट” बनाना है. यह उनकी व्यापक साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा का हिस्सा है. 
     

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