उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे ने भारतीय राजनीति में हलचल मचा दी है. 21 जुलाई को संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा सौंप दिया. इस्तीफे के पीछे स्वास्थ्य कारणों से कहीं अधिक गहरे राजनीतिक टकराव और मतभेद थे जो सरकार और उपराष्ट्रपति के बीच लंबे वक्त से चल रहे थे.
सूत्रों के अनुसार, संसद सत्र शुरू होने से 4-5 दिन पहले संसदीय कार्य मंत्री ने उपराष्ट्रपति को सूचित कर दिया था कि सरकार लोकसभा में न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ प्रस्ताव लाने जा रही है और इसके बाद यही प्रस्ताव राज्यसभा में भी लाया जाएगा. रविवार को सर्वदलीय बैठक के दौरान केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने इस बारे में उपराष्ट्रपति को फिर से जानकारी दी. सरकार ने लोकसभा में विपक्षी दलों को भी शामिल कर प्रस्ताव के लिए हस्ताक्षर एकत्र कर लिए थे.
इस बीच रविवार और सोमवार को विपक्ष के कुछ नेताओं ने उपराष्ट्रपति से मुलाकात की, जिसमें राज्यसभा में भी जस्टिस वर्मा के खिलाफ प्रस्ताव लाने पर चर्चा हुई, लेकिन उपराष्ट्रपति ने ये नहीं बताया कि विपक्ष ने उन्हें क्या कुछ कहा था या उनके पास क्या प्रस्ताव लेकर आए थे. हालांकि, सोमवार सुबह ये पता चला कि उपराष्ट्रपति ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता से मुलाकात की और विपक्ष द्वारा जमा किए हस्ताक्षरों को औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया और इन्हें सोमवार को ही सदन में इसकी घोषणा करने वाले थे.
इस बीच सरकार की ओर से तीन बार धनखड़ से संपर्क कर अपील की कि जो हस्ताक्षर एकत्र किए जा रहे हैं, उनमें सत्ता पक्ष के सांसदों के हस्ताक्षर भी शामिल किए जाएं, क्योंकि ये एजेंडा सर्वसम्मति से तय हुआ था.
पहली बार जेपी नड्डा और रिजिजू ने उपराष्ट्रपति से मुलाकात की. दूसरी बार रिजिजू और मेघवाल ने उनसे मुलाकात की और तीसरी बार केवल मेघवाल ने धनखड़ से मुलाकात की. मेघवाल ने स्पष्ट कहा कि सरकार को विश्वास में लिया जाना चाहिए और सत्ता पक्ष के हस्ताक्षर भी ज़रूरी हैं, लेकिन धनखड़ अपने फैसले पर अडिग रहे और उन्होंने सरकार को कोई आश्वासन नहीं दिया. उन्होंने संकेत दे दिया कि वे विपक्ष के हस्ताक्षरों की सूची सदन में पढ़ने वाले हैं.
‘अपने फैसले पर अड़े रहे धनखड़’
सूत्रों ने बताया कि ये संकेत और भी स्पष्ट हो गए, जब उन्होंने सोमवार दोपहर को उसी वरिष्ठ कांग्रेस नेता से मुलाकात की. वहीं, कई बार अपील किए जाने के बावजूद जब उपराष्ट्रपति अपने फैसले पर अड़े रहे तो ये साफ हो गया कि ये दरार टकराव की किसी भी हद तक जा सकती है.
सूत्रों के अनुसार, धनखड़ ने विपक्ष को ये भी आश्वासन दिया था कि वे न्यायमूर्ति शेखर यादव के मामले को अलग से उठाएंगे. जबकि एक हफ्ते पहले ही सरकार ने उनसे कहा था कि वह न्यायमूर्ति यादव के उस मामले को ना उठाएं जो उनके पास लंबित था, क्योंकि उस पर हस्ताक्षर की पुष्टि नहीं हो पाई थी. धनखड़ के इस रुख ने सरकार को परेशानी में डाल दिया. जानकारी ये भी सामने आई है कि सरकार को न्यायपालिका से जुड़े इस मामले में हितों के टकराव (conflict of interest) की भी आशंका थी.
‘कार्रवाई से पहले दिया इस्तीफा’
सूत्रों का कहना है कि इसके बाद सरकार की ओर से कोई भी सीधी कार्रवाई होने से पहले ही धनखड़ बिना किसी सूचना के राष्ट्रपति भवन पहुंच गए. इससे राष्ट्रपति भवन का स्टाफ हड़बड़ा गया. मुलाकात के लिए राष्ट्रपति को द्रौपदी मुर्मू को तैयार होने वक्त लगा और इस दौरान धनखड़ ने करीब 25 मिनट तक इंतजार किया. और राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद उन्होंने राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंप दिया.
‘धनखड़ को जाना ही होगा’
सूत्रों ये भी बताया कि इस्तीफे के बाद धनखड़ को उम्मीद थी कि अगले दिन सरकार उनसे संपर्क कर उन्हें मनाने की कोशिश करेगी या उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया जाएगा, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया. इसके बजाय सरकार ने ये फैसला ले लिया कि धनखड़ को जाना ही होगा.
‘लंबे वक्त से चल रहा है टकराव’
सूत्रों ने दावा किया कि धनखड़ और सरकार के बीच ये टकराव अचानक नहीं हुआ. पहले भी कई मौकों पर दोनों के बीच मतभेद सामने आए थे. उदाहरण के लिए अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वांस के दौरे से पहले धनखड़ ने कहा था कि वो उनके समकक्ष हैं और इसलिए उनसे महत्वपूर्ण बैठक करेंगे. हालांकि, एक वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री ने उन्हें सूचित किया कि वांस राष्ट्रपति का संदेश लेकर आ रहे हैं, जो कि प्रधानमंत्री के लिए है.
इसके अलावा धनखड़ ने मंत्रियों के कार्यालयों में अपनी तस्वीर लगाने और अपनी फ्लीट की गाड़ियों को मर्सिडीज करने के लिए दबाव डाला था. ये घटनाएं सरकार के साथ उनके तनाव को दिखाती हैं.
नोटिस में हैं तकनीकी खामियां: सूत्र
सूत्रों के अनुसार, सोमवार को राज्यसभा में जगदीप धनखड़ द्वारा पढ़ा गया महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस में कई कमियां हैं. इस नोटिस को लेकर चर्चा हुई है कि प्रस्ताव को वापस लिया जाए या उसमें जरूरी संशोधन किए जाए, ताकि वह प्रक्रिया के अनुरूप हो.
प्राप्त जानकारी के अनुसार, सोमवार को अचानक धनखड़ के विपक्षी प्रस्ताव सदन में लेने के फैसले के बाद प्रधानमंत्री के साथ बैठक हुई, जिसमें गृह मंत्री समेत कई मंत्री शामिल थे. बैठक में पीएम ने उपराष्ट्रपति के व्यवहार पर गहरा दुख व्यक्त किया. ये बेहद संवेदनशील स्थिति थी, क्योंकि उपराष्ट्रपति सरकार के ही उम्मीदवार थे.
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