संसद भवन के पास स्थित मस्जिद में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और अन्य सपा सांसदों की उपस्थिति को लेकर विवाद पैदा हो गया है. भारतीय राजनीति में धर्म हमेशा से एक संवेदनशील मुद्दा रहा है. विशेषकर मुस्लिम समुदाय की धार्मिक भावनाओं का ख्याल रखने में राजनीतिक दलों के बीच होड़ मची रहती है. यही कारण रहा कि भारतीय राजनीति में सभी राजनीतिक दलों का एक सूत्रीय कार्यक्रम मुस्लिम तुष्टीकरण रहा है. लेकिन, यूपी में मुसलमानों की राजनीति करते करते सपा दिल्ली की संसद भवन मस्जिद में लगता है, कुछ ज्यादा ही आगे निकल गई.
22 जुलाई को संसद भवन परिसर में स्थित मस्जिद में समाजवादी पार्टी के मुखिया और यूपी के सीएम अखिलेश यादव का पहुंचना विवादों में पड़ गया है. भारतीय जनता पार्टी तो इसे मुद्दा बना ही रही है. लेकिन, सोशल मीडिया पर कई मुस्लिम हैंडल से भी सपा नेताओं द्वारा मस्जिद के राजनीतिक इस्तेमाल पर ऐतराज जताया गया है. इसके साथ ही बीजेपी ने सपा पर धार्मिक संवेदनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया है. कुछ संगठन धरना प्रदर्शन की बात भी कर रहे हैं.
सपा ने बीजेपी के आरोपों को खारिज किया है और इसे बीजेपी की सांप्रदायिक रणनीति का हिस्सा बताया है. पर समाजवादी पार्टी मस्जिद प्रकरण में जिस तरह सफाई देने में लगी है, उससे ऐसा लगा कि कहीं न कहीं कुछ ऐसा हुआ है जो नहीं होना चाहिए था. समाजवादी पार्टी अगर डटकर अपने स्टैंड पर कायम रहती तो शायद बीजेपी इस मुद्दे पर माइलेज नहीं ले सकती थी. पर इस मुद्दे पर बीजेपी की सधी हुई आक्रामक रणनीति ने सपा को डैमेज कंट्रोल मोड में डिफेंसिव बना दिया है.
मस्जिद में बैठने का विरोध क्यों?
दरअसल 22 जुलाई 2025 को, सपा सांसद धर्मेंद्र यादव ने X पर कुछ तस्वीरें साझा कीं, जिनमें अखिलेश यादव, उनकी पत्नी और सांसद डिंपल यादव, रामपुर सांसद मोहिबुल्लाह नदवी, संभल सांसद शफीकुर रहमान बर्क, और अन्य सपा सांसद संसद मार्ग पर स्थित एक मस्जिद में बैठे दिखाई दिए. ये तस्वीरें उस समय की हैं, जब संसद की कार्यवाही स्थगित होने के बाद अखिलेश यादव और उनके सांसद मस्जिद गए थे. रामपुर सांसद मोहिबुल्लाह नदवी, जो इस मस्जिद के इमाम भी हैं, ने बताया कि मस्जिद संसद भवन के पास सड़क के उस पार है और अखिलेश ने इसे देखने की इच्छा जताई थी. सांसद धर्मेंद्र यादव की इसलिए भी आलोचना हो रही है कि उन्होंने मस्जिद की तस्वीरों को ट्विटर पर गलत जानकारी देते हुए सांसद नदवी के घर की तस्वीर बताया है.
संसद के अधिवेशन शुरू होने पर जहां देश की समस्याओं पर समाजवादी पार्टी को ध्यान फोकस करना चाहिए था, उसने गलती से बीजेपी को एक मुद्दा दे दिया. दरअसल अखिलेश यादव अपनी पार्टी के मुस्लिम सांसदों के साथ मस्जिद यात्रा को जनता के सामने लाकर अपने कोर वोटर्स को खुश करना चाहते थे. जो दुर्भाग्य से उल्टा पड़ गया. अखिलेश यादव ने 2024 में राम मंदिर उद्घाटन में जाने से इनकार करने वाले नेता रहे हैं. जाहिर है कि उनका संसद की मस्जिद में जाना हिंदुओं को तो खलेगा ही. बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा ने तो इन तस्वीरों को आधार बनाकर आरोप लगाया कि अखिलेश यादव ने मस्जिद में सपा की राजनीतिक बैठक आयोजित की और इसे सपा का कार्यालय बना दिया.
बीजेपी ने इसे धार्मिक स्थल का दुरुपयोग और मजहबी संवेदनाओं का अपमान बताया. बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने मोहिबुल्लाह नदवी को इमाम पद से हटाने की मांग की और 25 जुलाई 2025 को जुमे की नमाज के बाद मस्जिद में विरोध प्रदर्शन की घोषणा की. उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शादाब शम्स भी भड़के हुए हैं.उन्होंने कहा कि मस्जिद इबादत की जगह है, न कि राजनीतिक रणनीतियों की. उन्होंने अखिलेश यादव से मुस्लिम जनता से माफी की मांग की है.
सपा ने इस विवाद को बीजेपी की सांप्रदायिक रणनीति का हिस्सा करार देते हुए सभी आरोपों को खारिज किया. अखिलेश यादव ने कहा, आस्था जोड़ती है और जो आस्था जोड़ने का काम करती है, हम उसके साथ हैं. बीजेपी चाहती है कि लोग एकजुट न हों, बल्कि दूरियां बनी रहें.
क्या मस्जिद में सपा की औपचारिक बैठक हुई
पहला सवाल उठता है कि क्या मस्जिद में सपा की औपचारिक बैठक हुई. दूसरा सवाल यह उठता है कि क्या मस्जिद में इस तरह की बैठक करना इस्लाम के खिलाफ है. सपा सांसद जिया उर्र रहमान ने दावा किया कि मस्जिद में कोई औपचारिक बैठक नहीं हुई, बल्कि यह केवल एक सामान्य दौरे का हिस्सा था. उन्होंने कहा, सपा के पास संसद के अंदर और बाहर मीटिंग के लिए पर्याप्त स्थान हैं. बीजेपी इस घटना को गलत संदर्भ में प्रस्तुत कर रही है.
सपा ने यह भी तर्क दिया कि तस्वीरों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया. धर्मेंद्र यादव ने X पर पोस्ट में स्पष्ट किया कि यह मस्जिद में कोई औपचारिक बैठक नहीं थी, बल्कि मोहिबुल्लाह नदवी के निमंत्रण पर एक दौरे का हिस्सा था. दरअसल सपा की यही सफाई उसे शक के दायरे में डाल देती है. सवाल यह है कि क्या इस्लामी कानून में मस्जिद में औपचारिक बैठक और अनौपचारिक बैठक में कोई अंतर किया गया है? इसका उत्तर शायद नहीं में ही होगा.
मजहबी संवेदनाओं का सवाल
इस्लाम में मस्जिद को इबादत की पवित्र जगह माना जाता है. धार्मिक विद्वानों और समुदाय के बीच यह आम सहमति है कि मस्जिद का उपयोग गैर-धार्मिक या राजनीतिक गतिविधियों के लिए नहीं किया जाना चाहिए. बीजेपी और उत्तराखंड वक्फ बोर्ड ने तर्क दिया कि मस्जिद में सपा नेताओं की उपस्थिति, खासकर डिंपल यादव के बैठने के तरीके को, इस्लामी परंपराओं के लिए ठीक नहीं है. बीजेपी ने यह भी कहा कि यदि कोई बीजेपी नेता मंदिर में ऐसी बैठक करता, तो विपक्ष इसे धार्मिक अपमान के रूप में उछालता.
अखिलेश यादव और सपा को सफाई देने की नौबत क्यों आई
अखिलेश यादव ने हमेशा खुद को धर्मनिरपेक्ष और सभी धर्मों का सम्मान करने वाले नेता के रूप में प्रस्तुत किया है. उनकी पार्टी का आधार उत्तर प्रदेश में यादव और मुस्लिम समुदायों पर टिका है. इसलिए कई बार वो खुद को हिंदू धर्म से खुद को दूर दिखाने की कोशिश करते हैं. जैसे राम मंदिर उद्घाटन से दूर रहना.पर कई बार सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर दिखते हैं. जैसे कुंभ स्नान करते हुए फोटो रिलीज करना . इस तरह वह अक्सर सॉफ्ट हिंदुत्व और मुस्लिम समर्थन के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करते हैं.
मस्जिद में जाना और कुछ सांसदों के साथ बैठकर अखिलेश ने कोई भूल तो नहीं ही की थी.पर मजहबी संवेदनाओं का ख्याल न रखने के आरोपों पर सफाई देकर वह जरूर फंस गए. यह संभव है कि अखिलेश और उनके सांसदों ने मस्जिद में अपनी उपस्थिति को एक सामान्य दौरे के रूप में देखा हो, लेकिन तस्वीरों के सार्वजनिक होने और बीजेपी के आक्रामक रुख ने इसे संवेदनशील बना दिया. मस्जिद के इमाम मोहिबुल्लाह नदवी का सपा सांसद होना इस विवाद को और तूल दे दिया. बरेलवी उलेमाओं द्वारा नदवी को इमाम पद से हटाने की मांग भी सामने आने के चलते सपा पर सफाई देने का दबाव बढ़ गया.
—- समाप्त —-