बिहार में एक बार फिर अपराध का चेहरा डराने लगा है. हाल ही में पटना के एक अस्पताल में दिनदहाड़े आईसीयू में घुसकर एक युवक की हत्या कर दी गई. पांच लोग आए, गोली चलाई और फरार हो गए. हत्या की पूरी वारदात सीसीटीवी में कैद हुई.
इसके अलावा सीतामढ़ी में व्यापारी, छपरा में शिक्षक और पटना में एक कारोबारी की गोली मारकर हत्या कर दी गई. इन घटनाओं ने एक बार फिर राज्य की कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं. लेकिन सवाल ये है कि क्या बिहार में अब ज्यादा हिंसा हो रही है, या ये कहानी सालों से चली आ रही है?
21 साल में 71 हजार हत्याएं
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि 2001 से 2022 तक बिहार में कुल 71,000 से अधिक हत्या के मामले दर्ज हुए. सबसे ज्यादा हत्या 2004 में हुई थी जब 3,948 ऐसे मामले सामने आए थे. उस समय राज्य में राजद, कांग्रेस और वाम दलों की सरकार थी और मुख्यमंत्री राबड़ी देवी थीं.
2005 में नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद शुरुआती सालों में हत्या के मामलों में कमी आई, लेकिन फिर यह सिलसिला दोबारा बढ़ा और 2012 में हत्याओं की संख्या 3,566 तक पहुंच गई. हालांकि 2016 में सबसे कम 2,581 मामले दर्ज किए गए. 2022 में यह आंकड़ा फिर बढ़कर 2,930 पर पहुंच गया.
व्यक्तिगत दुश्मनी में ज्यादा हत्याएं
हत्या की वजहें भी ध्यान देने वाली हैं. 2022 में हुई कुल हत्याओं में से 804 मामलों में वजह व्यक्तिगत दुश्मनी थी. 535 हत्याएं जमीन विवाद, 412 वित्तीय कारणों, और 261 पारिवारिक झगड़ों के चलते हुईं. सिर्फ 8 हत्याएं राजनीतिक कारणों से दर्ज की गईं थीं.
2022 में कुल 2,958 लोग हत्या के शिकार बने, जिनमें 2,340 पुरुष, 618 महिलाएं, और 68 नाबालिग (38 लड़के और 30 लड़कियां) शामिल थे. बिहार में विधानसभा चुनाव से कुछ ही महीने पहले आई इन घटनाओं को लेकर विपक्ष ने सरकार पर हमला बोलना शुरू कर दिया है. लेकिन सवाल अभी भी वहीं है. क्या बिहार वाकई बदल गया है या सिर्फ चेहरों ने रूप बदला है.
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