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    नीले ड्रम वाली कांवड़… अनोखे अंदाज में 121 लीटर गंगाजल लेकर निकले भोले 

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    सावन का महीना 11 जुलाई शुक्रवार से शुरू हो रहा है. इसी के साथ दिल्ली-देहरादून हाईवे पर इन दिनों कांवड़िए दिखने लगे हैं. सावन के पवित्र महीने में गंगाजल लेकर हरिद्वार से अपने-अपने गंतव्यों की ओर बढ़ते श्रद्धालु न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक बन रहे हैं, बल्कि उनके पहनावे और कांवड़ों के डिजाइन भी लोगों का ध्यान खींच रहे हैं. इस बार एक ऐसी कांवड़ चर्चा में रही जो नीले ड्रम के कारण सुर्खियों में है.

    गुरुवार को हाईवे से गुजर रहे लोगों की नजर जब एक कांवड़ पर पड़ी, जिसमें दो बड़े नीले प्लास्टिक ड्रम लटक रहे थे, तो हर किसी की आंखें ठहर गईं. 121 लीटर गंगाजल से भरे इन ड्रमों को देख लोग चौंक भी गए और मुस्कराए भी. ये कांवड़ लेकर चल रहे गाजियाबाद निवासी एक भोले भक्त ने बताया कि उनका उद्देश्य अधिक जल लेकर शिव को अर्पित करना है, जिससे वे अपने माता-पिता को भी गंगाजल से स्नान करवा सकें.

    भोले ने कहा, मैं जब बाजार गया तो देखा कि बड़े कलश काफी महंगे हैं. फिर ड्रम देखे तो लगा कि इसमें ज्यादा जल भी आ जाएगा और आसानी से लटकाया भी जा सकता है. श्रद्धा और जुड़ाव की भावना से प्रेरित होकर उसने इस अनोखी कांवड़ की रचना की. जैसे ही वह हाईवे पर निकला, लोगों ने उसकी कांवड़ की तस्वीरें खींचनी शुरू कर दीं, वीडियो बनने लगे. 

    नीला ड्रम देखकर याद आया सौरभ हत्याकांड 

    नीले ड्रम मेरठ में हुए सौरभ हत्याकांड के बाद से चर्चा में है.  जहां पत्नी मुस्कान ने अपने प्रेमी साहिल के साथ मिलकर पति सौरभ की हत्या कर दी थी और शव को नीले ड्रम में सीमेंट से पैक कर छुपा दिया था. उस समय सोशल मीडिया पर नीले ड्रम को लेकर ढेरों मीम्स और रील्स वायरल हुए थे. अब जब वही रंग का ड्रम एक भोले के कंधे पर दिखा, तो लोगों के बीच फिर से यह चर्चा उठ गई.

    हाईवे पर कई लोगों ने इस नीले ड्रम वाली कांवड़ के साथ सेल्फी ली, कुछ लोगों ने मुस्कराते हुए यह भी कहा, भाई कहीं ये वही वाला ड्रम तो नहीं. हालांकि यह केवल मजाक तक सीमित रहा और भोले ने बड़ी सहजता से जवाब दिया मेरा ड्रम तो भोलेनाथ के नाम है, किसी गुनाह से इसका कोई लेना-देना नहीं.

    आस्था का रंग, अनोखे रूप

    हर साल सावन में भक्त तरह-तरह की कांवड़ बनाते हैं. कोई मोटरसाइकिल पर, कोई ट्रैक्टर पर तो कोई पैदल ही सजावट वाली कांवड़ लेकर निकलता है. लेकिन इस बार का नीले ड्रम वाली कांवड़ न सिर्फ श्रद्धा का प्रतीक बनी, बल्कि यह भी दर्शा गई कि भक्ति की कोई सीमा नहीं होती. 

     

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