बिहार में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंशिव रिवीजन (SIR) पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले होने वाली इस प्रक्रिया के वक्त पर सवाल उठाया है. जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने चुनाव आयोग (ECI) से कहा कि वेरिफिकेशन ड्राइव के दौरान आधार, निर्वाचन कार्ड और राशन कार्ड को वैध दस्तावेज़ माना जाए.
चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, कोर्ट ने कहा, “हमारे पास उन पर (ECI) शक करने की कोई वजह नहीं है. मामले की सुनवाई ज़रूरी है, इसे 28 जुलाई को लिस्ट किया जाए. इस बीच, वे ड्राफ्ट पब्लिश नहीं करेंगे.”
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से आधार, वोटर कार्ड और राशन कार्ड को प्रमाण के तौर पर शामिल करने को कहा है. चुनाव आयोग ने आपत्ति जताई कि नामांकन में कई गलतियां और अवैधताएं हो रही हैं. इस पर कोर्ट ने कहा कि हम आपको रोक नहीं रहे हैं, हम आपसे कानून के तहत काम करने की गुजारिश कर रहे हैं.
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि चुनाव आयोग के 25 जून के आदेश द्वारा की गई प्रक्रिया साफ तौर से धारा 21 के तहत वोटर लिस्ट का विशेष संशोधन, न सिर्फ मतदाताओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम 1960 के प्रावधानों का भी उल्लंघन है.
दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने क्या कहा?
दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने तीन सवाल उठाए. कोर्ट ने कहा कि निर्वाचन आयोग की शक्तियां, प्रक्रिया और ड्राफ्ट लिस्ट तैयार करने के लिए दिया गया वक्त बहुत कम हैं, क्योंकि बिहार में चुनाव नवंबर में होने हैं.
कोर्ट ने कहा कि हमारा भी यही मानना है कि इस मामले की सुनवाई ज़रूरी है. इसकी तारीख 28 जुलाई तय की जाए. इस बीच, चुनाव आयोग जवाबी हलफनामा दाखिल करेगा.
चुनाव आयोग से कोर्ट के सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कुछ सवाल पूछे. चुनाव आयोग से यह भी पूछा गया कि कानून की कौन सी धारा उसे यह प्रक्रिया करने की अनुमति देती है. चुनाव आयोग से पूछा गया, “या तो ‘संक्षिप्त संशोधन’ होता है या ‘गहन संशोधन’, ‘विशेष गहन संशोधन’ कहां है?”
याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए वकील अभिषेक सिंघवी ने इसे “नागरिकता जांच” की प्रक्रिया बताया. सिंघवी ने कहा, “पूरा देश आधार के पीछे पागल हो रहा है और फिर चुनाव आयोग कहता है कि इसे नहीं लिया जाएगा.”
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने भी अपनी बात रखी. उन्होंने कहा, “वे (चुनाव आयोग) कौन होते हैं यह कहने वाले कि हम नागरिक हैं या नहीं. उनके पास यह कहने के लिए कुछ सबूत तो होने ही चाहिए कि मैं नागरिक नहीं हूं.”
इस पर, चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि आधार को नागरिकता के प्रमाण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि यह एक अलग मुद्दा है और गृह मंत्रालय का विशेषाधिकार है, चुनाव आयोग का नहीं. चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि कोर्ट संशोधित वोटर लिस्ट को अंतिम रूप देने से पहले उस पर एक नज़र डाल सकती है.
चुनाव आयोग के वकील ने कहा, “संशोधन प्रक्रिया पूरी होने दीजिए, उसके बाद माननीय सदस्य पूरी तस्वीर देख सकेंगे. हम इसे अंतिम रूप दिए जाने से पहले दिखाएंगे.”
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