अहमदाबाद में एअर इंडिया का प्लेन क्रैश क्यों हुआ? इसका सही जवाब अभी तक नहीं मिला. लेकिन जैसे-जैसे एक्सपर्ट्स कारणों का अंदाजा लगा रहे हैं, नागरिक उड्डयन राज्यमंत्री मुरलीधर मोहोल ने कहा कि साजिश के एंगल की भी जांच हो रही है. क्या ये जांच वाकई जरूरी है? आइए जानते हैं ऐसा सोचने के पीछे की वजहें क्या हैं.
कुछ चौंकाने वाले आंकड़े
– नवंबर 2023 से फरवरी 2025 तक भारत के बॉर्डर इलाकों खासकर अमृतसर और जम्मू में करीब 465 बार जीपीएस स्पूफिंग की घटनाएं हुईं.
– जून में दिल्ली-जम्मू की एक एअर इंडिया फ्लाइट को GPS में गड़बड़ी की आशंका के चलते दिल्ली वापस लौटना पड़ा.
– अप्रैल में म्यांमार के ऊपर ऑपरेशन ब्रह्मा रिलीफ मिशन के दौरान भारतीय वायुसेना के C-130J विमान को जीपीएस स्पूफिंग का सामना करना पड़ा.
जानिए- क्या है जीपीएस स्पूफिंग और क्यों खतरनाक है?
जीपीएस स्पूफिंग एक तरह का साइबर हमला है जिसमें विमान के नेविगेशन सिस्टम को गलत सिग्नल भेजे जाते हैं. इससे प्लेन का रास्ता भटक सकता है, मिड-एयर टक्कर तक हो सकती है या रनवे पर दुर्घटना भी हो सकती है.
इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (IATA) के मुताबिक साल 2023 से 2024 तक जीपीएस स्पूफिंग की घटनाएं 500% बढ़ीं और सिग्नल जैमिंग 175% बढ़ी. साल 2024 में दुनियाभर में 4.3 लाख बार सैटेलाइट सिग्नल में गड़बड़ी या स्पूफिंग की शिकायतें आईं जो 2023 के 2.6 लाख मामलों से 62% ज्यादा हैं.
युद्ध और जीपीएस स्पूफिंग का कनेक्शन
IATA का कहना है कि वैश्विक युद्धों ने जीपीएस स्पूफिंग को बढ़ावा दिया है. मिस्र, लेबनान, काला सागर और रूस-एस्टोनिया-लातविया सीमाओं पर ये घटनाएं आम हैं. भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर लाहौर के आसपास भी जीपीएस जामिंग देखी गई है. जीपीएस स्पूफिंग के अलावा एविएशन इंडस्ट्री को रैनसमवेयर, अनधिकृत एक्सेस और क्रेडेंशियल चोरी जैसे साइबर हमलों का भी सामना करना पड़ रहा है.
अमेरिका में भी चिंता
अमेरिका की फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (FAA) ने कहा कि जीपीएस जामिंग या स्पूफिंग की वजह से कई बार फ्लाइट्स को रास्ता बदलना पड़ा या डायवर्ट करना पड़ा. FAA ने एक वेबसाइट भी बनाई है जहां पायलट ऐसी घटनाओं की शिकायत कर सकते हैं.
क्या आसमान वाकई सुरक्षित?
एअर इंडिया क्रैश की जांच में साजिश का एंगल शामिल करना समझदारी है या नहीं ये तो जांच के नतीजे बताएंगे. लेकिन GPS स्पूफिंग और साइबर हमलों की बढ़ती घटनाएं इस सवाल को और गंभीर बनाती हैं. क्या हमारे आसमान वाकई सुरक्षित हैं?