बिहार में इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. हाल ही में महागठबंधन के सबसे बड़े दल आरजेडी ने लालू प्रसाद यादव को 13वीं बार अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना और पार्टी पूरे दमखम के साथ चुनाव में उतरने के लिए कमर कस चुकी है. इस बीच AIMIM के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने रविवार को कहा कि उनकी पार्टी ने बिहार में विपक्षी महागठबंधन के नेताओं से संपर्क किया है क्योंकि पार्टी का मकसद आगामी चुनावों में एनडीए को सत्ता में लौटने से रोकना है.
महागठबंधन के नेता लेंगे फैसला
ओवैसी ने कहा कि AIMIM के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने महागठबंधन के नेताओं से संपर्क किया है, जिसमें कांग्रेस, आरजेडी और अन्य शामिल हैं, और उन्होंने बीजेपी और उसके सहयोगियों के खिलाफ चुनाव लड़ने में अपनी दिलचस्पी दिखाई है. ओवैसी ने कहा, ‘हमारे प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने महागठबंधन के कुछ नेताओं से बात की है और उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि हम नहीं चाहते कि बीजेपी या एनडीए बिहार की सत्ता में वापस आए. अब यह फैसला उन राजनीतिक दलों पर निर्भर है जो एनडीए को बिहार में सत्ता में लौटने से रोकना चाहते हैं.’
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बिहार के सीमांचल क्षेत्र में मजबूत स्थिति रखने वाली AIMIM को 2022 में बड़ा झटका लगा, जब उसके पांच में से चार विधायक तेजस्वी यादव की आरजेडी में शामिल हो गए. ओवैसी ने कहा कि उनकी पार्टी न सिर्फ सीमांचल बल्कि उससे बाहर भी उम्मीदवार उतारेगी.
‘हम सभी सीटों पर लड़ने को तैयार’
उन्होंने कहा, ‘अगर वे (महागठबंधन) तैयार नहीं हैं, तो मैं हर जगह चुनाव लड़ने के लिए तैयार हूं. आने वाले समय का इंतजार करें. सीटों की सटीक संख्या का ऐलान करना अभी जल्दबाजी होगी.’ उन्होंने कहा कि हमने पहले भी साथ आने की कोशिश की है और इस बार भी कोशिश कर रहे हैं ताकि बाद में ये लोग हमें दोष न दें.
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इससे पहले ओवैसी ने बिहार में वोटर लिस्ट की दोबारा जांच का विरोध करते हुए भारत के मुख्य चुनाव आयोग को पत्र लिखा था. उन्होंने एक्स पर दावा किया, ‘यह कानूनी रूप से संदिग्ध अभ्यास है जो चुनावों में वास्तविक मतदाताओं को बाहर कर देगा.’ ओवैसी ने चुनाव आयोग पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि आयोग पिछले दरवाजे से बिहार में एनआरसी लागू कर रहा है.
वोटर लिस्ट की जांच पर उठाए सवाल
उन्होंने एक्स पर लिखा, ‘वोटर लिस्ट में नाम दर्ज कराने के लिए अब हर नागरिक को न सिर्फ यह साबित करने वाले दस्तावेज दिखाने होंगे कि उनका जन्म कब और कहां हुआ, बल्कि यह भी साबित करना होगा कि उनके माता-पिता का जन्म कब और कहां हुआ. यहां तक कि सबसे अच्छे अनुमानों के अनुसार भी सिर्फ तीन-चौथाई बर्थ रजिस्ट्रेशन होते हैं. ज्यादाकर सरकारी दस्तावेज खामियों से भरे हुए हैं.’
उन्होंने यह भी दावा किया कि इस तरह की कवायद से गरीबों के नाम वोटर लिस्ट से बाहर हो जाएंगे, जो उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है.