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    मिडिल-ईस्ट में ‘अमन’ के नाम पर ट्रंप की पैंतरेबाजी को ईरान ने कुचल डाला, अमेरिकी गेम प्लान ध्‍वस्त

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    अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप बड़बोले जरूर हैं पर अमेरिका के हित में किसी भी तरह का फैसला लेने के लिए हर वक्त हर तरह के फैसले लेने के लिए तैयार बैठे होते हैं. अब ये अलग बात है कि उनके फैसलों से अमेरिका का कितना हित होता है या कितना नुकसान, वो खुद भी नहीं समझते हैं. ट्रंप का ईरान के प्रति व्यवहार जिस तरह अचानक बदला है वह हैरान करने वाला है. अमेरिकी प्रतिबंधों में हाल के नरम रुख, ईरान की जंग में बहादुरी की तारीफ और तेल निर्यात प्रतिबंधों को हटाने की संभावना जताना बेहद आश्चर्यजनक फैसले हैं. 22 जून 2025 को ईरान के परमाणु ठिकानों (फोर्डो, नटंज, और इस्फहान) पर अमेरिकी हवाई हमलों के बाद ट्रंप का यह फैसला अप्रत्याशित लगता है. जाहिर है कि ट्रंप का यह नरम रवैया यूं ही नहीं है; यह एक रणनीतिक कदम है, जो परमाणु वार्ता, वैश्विक तेल बाजार, क्षेत्रीय भू-राजनीति, और घरेलू राजनीतिक दबाव से प्रेरित है. हालांकि ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामनेई पर ट्रंप के सहृदयता वाले बयानों का रत्ती भर असर नहीं है. खामनेई ने आज फिर अमेरिका और ट्रंप के खिलाफ जहर उगला है.

    24 जून 2025 को, ट्रंप ने Truth Social पर लिखा था कि चीन को ईरान से तेल खरीदने की अनुमति दी जा सकती है. इतना ही नहीं उन्होंने ईरान की स्ट्रेट ऑफ होर्मुज को बंद न करने की सराहना की. अगले दिन, नीदरलैंड्स में नाटो समिट में भी यह क्रम रुका नहीं. उन्होंने जंग में बहादुरी के लिए भी ईरान की तारीफ की और सुझाव दिया कि वह अपने तेल संसाधनों से आर्थिक पुनर्निर्माण करे .

    1-ट्रंप के नरम पड़ने के रणनीतिक कारण

    ट्रंप का पहला लक्ष्य ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकना है. इसके लिए उनका उद्देश्य ईरान को कूटनीति की मेज पर लाना है. 25 जून को फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रो ने संकेत दिया कि अगले कुछ हफ्तों में अमेरिका, यूरोप, और ईरान के बीच परमाणु वार्ता शुरू हो सकती है. ट्रंप ने 13 मई 2025 को सऊदी अरब में ईरान को शांति की प्रक्रिया में शामिल होने का न्योता दिया था.

    इसके साथ ही ट्रंप ने बार-बार तेल की कीमतों को कम रखने की मांग की है, क्योंकि तेल की बढ़ती कीमतें अमेरिकी मतदाताओं के बीच नेताओं की लोकप्रियता को घटाती हैं . ईरान, OPEC का तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक है. वो प्रतिदिन 1.6 मिलियन बैरल तेल निर्यात करता है. मुख्य रूप से चीन को. इजरायल-ईरान युद्ध के दौरान तेल की कीमतें पांच महीने के उच्चतम स्तर पर थीं, लेकिन युद्धविराम और ट्रंप के तेल निर्यात की अनुमति की बात से कीमतें 6-8% गिर गईं. जाहिर है कि अमेरिकी जनता के लिए यह सुखद संदेश जैसा रहा होगा.

    अमेरिका में 60% जनता मध्य पूर्व में युद्ध के खिलाफ थी. ट्रंप ने परमाणु ठिकानों पर हमले बिना कांग्रेस की मंजूरी लिए किए. जिसे डेमोक्रेट सीनेटरों ने असंवैधानिक बताया था. यह घरेलू दबाव ट्रंप को कूटनीति और नरम रुख की ओर ले जा रहा है, ताकि वह युद्ध-विरोधी मतदाताओं का समर्थन बनाए रखें.

    2- सहयोगियों के हर तरह के हितों की रक्षा जरूरी

    इजरायल और सऊदी अरब ईरान के परमाणु कार्यक्रम और क्षेत्रीय प्रभाव को रोकना चाहते हैं. हालांकि सभी जानते हैं कि सख्त तेल प्रतिबंध स्ट्रेट ऑफ होर्मुज के बंद होने का जोखिम बढ़ा सकते हैं.यह जगजाहिर है कि ईरान अगर ऐसा करता है तो सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों के लिए बेहद नुकसानदायक होगा. ट्रंप को अपने इन सहयोगियों के हितों की रक्षा करना हर हाल में जरूरी है. इसलिए अमेरिका के लिए तेल निर्यात में राहत की पेशकश क्षेत्रीय स्थिरता को बनाए रखने का सबसे सटीक हल है.

    3-शांति के नोबेल पुरस्कार की लालसा

    ट्रंप की तारीफ उनकी छवि को एक शांतिदूत के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास भी हो सकती है. ऐसा माना जा रहा है कि ट्रंप शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए बेहत लालायित हैं. इसलिए खुद को शांति और स्थिरता के प्रतीक के रूप में स्थापित कर रहे हैं. यही कारण है कि वो बार-बार भारत और पाकिस्तान के बीच जंग को रुकवाने का श्रेय भी लेते रहते है. इसके साथ ही ईरान के खिलाफ उनका नरम रुख अमेरिका में उन 60% मतदाताओं के बीच खुद को शांति का मसीहा साबित करने की कोशिश भी हो सकता है, जो मध्य पूर्व में युद्ध के खिलाफ हैं . 

    4-चीन की तेल निर्भरता और शैडो फ्लीट को रोक न सकने का मलाल

    चीन ईरान के तेल का 90% खरीदता है और शैडो फ्लीट जैसे अप्रत्यक्ष तरीकों से प्रतिबंधों को बायपास करता है. ट्रंप ने चीन की रिफाइनरी और शिपिंग कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए, लेकिन वह तेल व्यापार को पूरी तरह रोक नहीं सके.यह मजबूरी ट्रंप को तेल निर्यात की अनुमति देने की बात करने के लिए प्रेरित कर रही है, ताकि वह वैश्विक तेल बाजार पर नियंत्रण बनाए रखें. 

    5- ईरान की जवाबी क्षमता

    ईरान ने कतर में अमेरिकी अल उदेद एयरबेस पर 14 मिसाइलें दागीं, जिनमें से 13 को नष्ट कर दिया गया. द गार्जियन के अनुसार, ईरान के पास क्षेत्र में अमेरिकी ठिकानों पर हमला करने की क्षमता है. सोचने वाली बात यह है कि क्या यह जोखिम ट्रंप को सैन्य टकराव के बजाय कूटनीति और आर्थिक रियायतों की ओर ले जा रहा है?

    क्या यह नया गेम प्लान है?

    ट्रंप को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. इससिए इस तरह की शांति की बातों को अमेरिका की कमजोरी समझना या मजबूरी समझना भी भूल हो सकता है. यह भी हो सकता है कि ट्रंप का यह नया गेम प्लान हो. इसके कई कारण हैं.

    ट्रंप की नीति में कूटनीति और दबाव का संतुलन दिख रहा है. वह एक तरफ ईरान को आर्थिक राहत देने की बात करते हैं, तो दूसरी तरफ परमाणु हथियारों को लेकर अभी भी पहले की तरह सख्त हैं.उनकी बातों मे ईरान के लिए राहत और तारीफ तो होता है पर अमेरिकी ताकत का घमंड भी होता है. जिसका एक मात्र उद्दैश्य ईरान को धमकाना भी होता है.

    ट्रंप की नीति का एक उद्देश्य चीन और रूस के बढ़ते प्रभाव को कम करना भी हो सकता है. अगर अमेरिका प्रतिबंधों में ढील देता है, तो यह ईरान को पश्चिमी देशों के करीब लाने का प्रयास हो सकता है, जिससे रूस और चीन का क्षेत्रीय प्रभाव कम हो सके.

    ट्रंप ने इजरायल के साथ अपने मजबूत संबंधों को बनाए रखा है. उनकी नीति का एक हिस्सा इजरायल को संतुष्ट करना भी हो सकता है, खासकर ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर. प्रतिबंधों में ढील देकर वह ईरान को परमाणु वार्ता की मेज पर लाने की कोशिश कर सकते हैं. जाहिर है कि यह केवल और केवल ईरान को कंट्रोल करने की कोशिश ही है.

    क्‍या ईरान मानेगा?

    ईजरायल और अमेरिका के हमलों से ईरान को भले कितना ही नुकसान हुआ हो. उनके बड़े सैन्‍य अधिकारी, वैज्ञानिक मारे गए. करीब 900 नागरिकों के मारे जाने की रिपोर्ट आई. लेकिन, अचानक हुए सीजफायर के बाद नैरेटिव के युद्ध में ईरान विजेता बन गया. लंबे अरसे अमेरिकी और इजरायली घेरेबंदी का सामना करता आ रहा ईरान आज ज्‍यादा आत्‍मविश्‍वास से भरा हुआ है. क्‍योंकि, इजरायल और अमेरिका मिलकर भी ईरान के नेतृत्‍व का कुछ नहीं बिगाड़ पाए. उसने इजरायल और अमेरिका के मिडिल ईस्‍ट में सैन्‍य और असैनिक ठिकानों पर हमला करके अपने मिसाइलों की ताकत भी साबित कर दी. अमेरिका की एक डिफेंस इंंटेलिजेंस रिपोर्ट ने ट्रंप को हिलाकर रख दिया है, जिसमें कहा जा रहा है कि अमेरिका के B-2 विमानों से ईरान में किए गए हमले से वहां के परमाणु कार्यक्रम का भी कुछ खास नहीं बिगड़ा है.

    सीजफायर के बदले हुए माहौल ने ईरानी नेतृत्‍व खासकर खामेनेई को और मजबूत बनाया है. इस्‍लामिक उम्‍मा के बीच ईरान ने य‍ह साबित किया है कि बिना किसी की मदद के भी वह सबसे लोहा लेने के लिए काफी है. ऐसे में फिलिस्‍तीनी संघर्ष के नाम पर वह हमास और हेजबुल्‍ला जैसे संगठनों की मदद वो जारी रखेगा. इतना ही नहीं, सऊदी अरब पर नकेल कसने के लिए वह हुती लड़ाकों को हथियार देता रहेगा. उसके पास तेल है, और वो जानता है कि इस संसाधन के बिना दुनिया का काम नहीं चलेगा. तेल की जरूरतें दुनिया को उसके सामने झुकने पर मजबूर करेंगी ही. जहां तक उसकी डिफेंस क्षमताओं की बात है, हाल के युद्ध ने साबित कर दिया है कि ईरान हलवा नहीं है. डोनाल्‍ड ट्रंप और बाकी पश्चि‍मी दुनिया के खतरे की बात ये है कि ईरानी नेतृत्‍व को अपनी ताकत का अंदाजा हो गया है.

    अब ईरान जो करेगा, वो अपनी शर्तों पर करेगा. किसी डोनाल्‍ड ट्रंप में हिम्‍मत नहीं कि उसे मजबूर कर सके.





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