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    आखिर कहां गया 400 किलो यूरेनियम? ईरान-उत्तर कोरिया की सांठगांठ से अमेरिका-इजरायल की बढ़ी टेंशन

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    ईरान और इजरायल में युद्धविराम हो गया, लेकिन नॉर्थ कोरिया से दुनिया को डराने वाली खबर आई हैं. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने ईरान और नॉर्थ कोरिया के खतरनाक गठजोड़ का दावा किया है. दावा ये कि ईरान के सुप्रीम लीडर खामेनेई हर कीमत पर परमाणु बम बनाना चाहते हैं. खामेनेई की हसरत को पूरा करने के लिए किम जोंग ने मोर्चा संभाल लिया है.

    भले ही ईरान के परमाणु सेंटर अमेरिकी हमले में तबाह किए जाने के दावे किए जा रहे हों, लेकिन नॉर्थ कोरिया में मौजूद ईरान के परमाणु सेंटर में युद्धविराम के बाद हलचल बढ़ गई हैं. सवाल यही है कि ईरान से गायब हुआ 400 किलो यूरेनियम क्या नॉर्थ कोरिया पहुंच गया, क्या किम जोंग की मदद से खामेनेई परमाणु बम बनाने की कसम पूरी कर लेंगे?

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    नॉर्थ कोरिया की सबसे बड़ी ताकत परमाणु बम!

    नॉर्थ कोरिया के किम जोंग की सबसे बड़ी ताकत उसके एटम बम हैं. वही एटम बम जिसके दम पर किम जोंग खुल्लम-खुल्ला अमेरिका को धमकाने से पीछे नहीं हटते. तमाम प्रतिबंधों के बावजूद 2006 में नॉर्थ कोरिया ने परमाणु परीक्षण किया. अब अमेरिका के पूर्व एनएसए जॉन बोल्टन ने किम जोंग के एटमी प्लान को लेकर सनसनीखेज दावा किया है.

    • दावा नंबर 1- एक ईरान के एटम बम वाले प्लान में किम जोंग का अहम रोल.
    • दावा नंबर 2- गुपचुप तरीके से ईरान की मदद कर रहा है नॉर्थ कोरिया. 
    • दावा नंबर 3- नॉर्थ कोरिया में ईरान के परमाणु प्रोग्राम का एक हिस्सा मौजूद है.
    • दावा नंबर 4- नॉर्थ कोरिया में भी ईरान का अंडरग्राउंड परमाणु सेंटर है. 

    एक इंटरव्यू क दौरान जॉन बोल्टन ने ईरान के परमाणु प्रोग्राम को लेकर कहा कि मुझे सबसे बड़ी चिंता यह है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम के कुछ हिस्से उत्तर कोरिया के एक पहाड़ के नीचे स्थित हैं. जॉन बोल्टन का दावा यही है कि नॉर्थ कोरिया के अंदर भी ईरान के परमाणु प्रोग्राम का एक हिस्सा मौजूद हैं. यानी आज नहीं तो कल ईरान एटम बम बना सकता. वहीं दूसरी तरफ एंजेलो स्टेट यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर ब्रूस बेकटोल मानते हैं कि ईरान के परमाणु प्रोग्राम के पीछे नॉर्थ कोरिया का बड़ा हाथ है.

    ईरान को यूरेनियम की सप्लाई नॉर्थ कोरिया से हुई!

    ब्रूस बेकटोल एक विशेषज्ञ हैं और नॉर्थ कोरिया पर कई किताबे लिख चुके हैं. ब्रूस बेकटोल की माने तो ईरान को यूरेनियम की सप्लाई नॉर्थ कोरिया से हुई. यही नहीं ईरान के तीन अंडरग्राउंड परमाणु सेंटर फोर्डो, नतांज और इस्फ़हान को बनाने में नॉर्थ कोरिया ने पूरी मदद की. अब नॉर्थ कोरिया की पूरी कोशिश है कि ईरान जल्द से जल्द परमाणु बम बनाने में कामयाब हो. 

    बड़ी बात ये है कि साल 2003 में नॉर्थ कोरिया परमाणु अप्रसार संधि से बाहर आया और 2006 में पहला परमाणु परीक्षण किया. ठीक ऐसे ही ईरान ने परमाणु अप्रसार संधि से बाहर निकलने से संकेत दे दिए हैं. यानी एटम बम बनाने की अपनी कमस पर खामेनेई कायम है, जबकि युद्धविराम के बाद भी अमेरिकी. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दावा कर रहे हैं कि ईरान को एटम बम नहीं बनाने देंगे.

    ऐसे में सवाल यही है कि ईरान के पास मौजूद 400 किलो यूरेनियम कहां है? वहीं 400 किलो यूरेनियम जिसकी मदद से ईरान एक दो नहीं बल्कि 10 एटम बम बना सकता है. आज 400 किलो यूरेनियम को लेकर सबसे बड़ा सस्पेंस है. वजह है हमले से ठीक पहले फोर्डो परमाणु सेंटर के बाहर नजर आए ट्रंक.

    फोर्डो परमाणु केंद्र के बाहर कों का काफिला दिखा था!

    सैटेलाइट तस्वीरों में फोर्डो परमाणु केंद्र के बाहर 16 ट्रकों का काफिला दिखाई दिया था. आशंका जताई जा रही है कि इन्हीं ट्रकों के जरिए यूरेनियम को शिफ्ट कर दिया गया था. हालांकि, यूरेनियम को लेकर अ भी तस्वीर साफ नहीं है, लेकिन ईरान के उप विदेश मंत्री अली बाकेरी का दावा है कि 400 किलो यूरेनियम को पहले ही हटा दिया गया था.

    अगर दावा यही है तो ईरान का वो सीक्रेट ठिकाना कहां है, क्या यूरेनियम को नॉर्थ कोरिया भेज दिया गया या फिर किसी दूसरे अंडरग्राउंड लोकेशन पर शिफ्ट कर दिया गया. अमेरिका के उप-राष्ट्रपति जेडी वेंस ने कहा है हमले से पहले गायब हुए 400 किलो यूरेनियम के बारे में ईरान से बात होगी.

    यह भी पढ़ें: मिडिल-ईस्ट में ‘अमन’ के नाम पर ट्रंप की पैंतरेबाजी को ईरान ने कुचल डाला, अमेरिकी गेम प्लान ध्‍वस्त

    जेडी वेन्स ने कहा, ”अमेरिका को यकीन है कि फोर्डो, नतांज और इस्फहान में मौजूद ईरानी परमाणु ठिकानों को या तो “गंभीर क्षति” पहुंची है या वो “पूरी तरह से नष्ट” हो चुके हैं.” जेडी वेन्स ये भी कहते हैं कि वो इसकी सटीक जानकारी नहीं दे सकते हैं, और इसको लेकर वो पूरी तरह से निश्चित नहीं हैं.

    चीन, नॉर्थ कोरिया और रूस का ईरान को मिला साथ

    अगर ईरान के न्यूक्लियर प्रोगाम को देखें तो तीन मुल्कों का हमेशा साथ मिला. चीन, नॉर्थ कोरिया और रूस. चीन की मदद से ईरान का सबसे बड़ परमाणु रिसर्च कॉम्प्लेक्स इस्फ़हान 1984 में बना. चीन ने तीन रिएक्टर सप्लाई किए. नॉर्थ कोरिया ने परमाणु केंद्रों पर अंडरग्राउंड सुरंगों के डिजाइन और निर्माण में मदद की, जबकि रूस के सैकड़ों परमाणु वैज्ञानिक आज भी ईरान के परमाणु केंद्र में काम कर रहे हैं.

    ईरान बीते तीन दशकों से एटमी हथियार बनाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन नाकाम रहा, जबकि नॉर्थ कोरिया ने तमाम प्रतिबंधों के बावजूद एटम बम बनाने में कामयाब रहा. आज नॉर्थ कोरिया के पास 50 परमाणु बम है, दूसरी तरफ नॉर्थ कोरिया की ईरान के साथ लंबी दूरी की मिसाइलों के निर्माण को लेकर पार्टनरशिप है. यही वजह है कि दुनियाभर के तमाम एक्सपर्ट मानते हैं कि इस वक्त सिर्फ और सिर्फ किम जोंग ही, खामेनेई के एटमी बम वाले सपने को पूरा करवा सकते हैं.



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