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    मुनीर के बाद ट्रंप के ‘दस्तरखान’ पर एर्दोगन… चीन के दोस्तों को अपने पाले में लाने में जुटे अमेरिकी राष्ट्रपति

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    अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इन दिनों तेज गति के डिप्लोमैटिक गेम खेल रहे हैं. कुछ ही दिन हुए उन्होंने पाकिस्तान आर्मी चीफ और फील्ड मार्शल के पोस्ट पर नए नए प्रमोट हुए आसिम मुनीर को होस्ट किया और उनके साथ लंच किया. आसिम मुनीर ट्रंप के ऐसे गेस्ट थे जिनका देश पाकिस्तान चीन का करीबी माना जाता है. लेकिन ऑपरेशन सिंदूर के बाद एक बड़ा सहारा तलाश रहे आसिम मुनीर को ट्रंप ने तुरंत वाशिंगटन बुला लिया. आसिम मुनीर कई दिनों तक अमेरिका में रहे इसके बाद उन्हें ट्रंप के साथ लंच का ‘सौभाग्य’ मिला. पाकिस्तान इस लंच को अपनी कूटनीति कामयाबी बताता है. 

    इस बार भी ट्रंप नाटो समिट में जिस शख्स से मिले हैं उन्हें चाइनीज खेमे का राष्ट्राध्यक्ष माना जाता है. ये शख्स हैं तुर्किए के राष्ट्रपति तैय्यप एर्दोगन. तुर्की ने हाल के वर्षों में चीन के साथ आर्थिक और रणनीतिक संबंध बढ़ाए हैं विशेष रूप से बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत.

    नीदरलैंड के द हेग शहर में हो रहे नाटो समिट के दौरान राष्ट्रपति तैय्यप एर्दोगन बड़ी गर्मजोशी के साथ अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिले. ये मुलाकात तब हुई जब ट्रंप ईरान और इजरायल के बीच सीजफायर करवा चुके थे. एक भव्य इमारत में हुई इस मुलाकात पर वर्ल्ड मीडिया की चर्चा रही. 

    इस मीटिंग में दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय संबंधों, रक्षा सहयोग और मध्य पूर्व और यूक्रेन सहित वैश्विक संघर्षों पर बातचीत हुई. 

    तुर्की के संचार निदेशालय के एक बयान के अनुसार एर्दोगन ने ऊर्जा और निवेश जैसे प्रमुख क्षेत्रों में तुर्की और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच सहयोग की विशाल संभावना पर जोर दिया. 

    एर्दोगन अमेरिकी डिफेंस उद्योग के साथ लंबी पारी खेलने को तैयार दिखे. उन्होंने कहा कि रक्षा उद्योग में सहयोग बढ़ाने से दोनों देशों को द्विपक्षीय व्यापार में 100 बिलियन डॉलर के अपने लक्ष्य तक पहुंचने में मदद मिलेगी.

    ट्रंप की वैश्विक नेतृत्व क्षमता में भरोसा

    एर्दोगान ने ट्रम्प की मदद से इजरायल और ईरान के बीच हुए युद्ध विराम का स्वागत किया और आशा व्यक्त की कि यह स्थायी हो जाएगा. इसका मतलब है कि एर्दोगन ट्रंप की वैश्विक नेतृत्व क्षमता में अपना भरोसा जता रहे हैं.

    इस मीटिंग के दौरान दोनों नेताओं के बीच काफी अच्छी केमिस्ट्री देखने को मिली. मीडिया में आई तस्वीरों में फोटो सेशन के दौरान ट्रंप और एर्दोगन काफी करीब आकर बात कर रहे थे. इस दौरान ट्रंप उनके हाथ को थपकी देते रहे. 

    नाटो के दो प्रमुख सहयोगियों के रूप में एर्दोगन और ट्रंप ने क्षेत्रीय और वैश्विक खतरों के सामने गठबंधन की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने और रणनीतिक एकता बनाए रखने के महत्व को रेखांकित किया. 

    अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से रूस से मिल रही चुनौती को देखते हुए नाटो के रक्षा खर्च में 5 फीसदी बढ़ोतरी की मांग कर रहे हैं. ट्रंप के लिए राहत की बात यह है कि तुर्की इस मुहिम का समर्थन कर रहा हे. तुर्की का ये सपोर्ट उन्हें इस लक्ष्य को हासिल करने में मदद कर सकता है.

    यूं तो हेग में चलने वाले नाटो समिट में ट्रंप कई राष्ट्राध्यक्षों से मुलाकात कर रहे हैं. लेकिन तुर्की के राष्ट्रपति से उनकी मुलाकात खास मानी जा रही है क्योंकि उन्हें चीन के खेमे का नेता माना जाता है. तुर्की के राष्ट्रपति ने चीन, रूस और ईरान के साथ पिछले कुछ सालों में मजबूत संबंध बनाए हैं. 

    लेकिन अब उनका सुर बदला बदला सा दिखता है. एर्दोगन नाटो विस्तार पर नरमी दिखा रहे हैं, स्वीडन की सदस्यता पर हामी भर रहे हैं, इसके बाद वे ट्रंप से सीधी बातचीत कर रहे हैं. 

    हालांकि इसके पीछे एर्दोगन की घरेलू दिक्कतें भी हैं. तुर्की अभी आर्थिक संकट से जूझ रहा है और अमेरिका इसमें बड़ी राहत बन सकता है. इसके अलावा एर्दोगन को घरेलू मोर्चे पर भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. 

    स्ट्रैटेजिक क्लाइंट्स” को अपने पाले में लाने की कोशिश

    ट्रंप जानते हैं कि चीन को सीधे टक्कर देने से ज्यादा अच्छा है कि उसके “स्ट्रैटेजिक क्लाइंट्स” को अपने पाले में लाकर उसका प्रभाव कम किया जाए. पाकिस्तान, तुर्की जैसे देश इस समीकरण में फीट बैठते हैं. 

    वहीं पाकिस्तान, तुर्की, ईरान जैसे देशों से चीन को डिप्लोमैटिक और इकोनॉमिक ताकत मिलती रही है. ट्रंप के लिए इस गठजोड़ को तोड़ना जरूरी है.

    ऐसे माहौल के बीच ट्रंप खुद को ऐसे नेता के रूप में प्रोजेक्ट कर रहे हैं जो ‘डील मेकर’ है. इसकी मिसालें दुनिया के सामने हैं. ट्रंप ऐसे नेता हैं जो दोस्ती भी कर सकते हैं और दबाव भी बना सकते हैं.

    तुर्की नाटो का एक महत्वपूर्ण सदस्य है, जो रूस, ईरान और चीन के साथ भी संबंध रखता है. वह ब्रिक्स (BRICS) समूह में शामिल होने की इच्छा जता चुका है और रूस से S-400 मिसाइल सिस्टम खरीदने के कारण अमेरिका के साथ तनाव भी झेल चुका है.

    ट्रंप का तुर्की के साथ नजदीकी को बढ़ाने की कोशिश को एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा सकता है, ताकि तुर्की को पश्चिमी गठबंधन में मजबूती से बनाए रखा जाए और चीन-रूस के प्रभाव को कम किया जा सके. 
     



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