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    ममता का प्रयोग वायनाड में फेल हुआ, नीलांबुर उपचुनाव के नतीजे में सबके लिए कुछ मैसेज है

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    ममता बनर्जी का केरल प्लान औंधे मुंह गिर पड़ा है. नीलांबुर उपचुनाव के जरिये ममता बनर्जी ने केरल की राजनीति में मजबूती से पांव जमाने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन मिशन नाकाम रह गया. तृणमूल कांग्रेस समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार पीवी अनवर नीलांबुर उपचुनाव में तीसरे नंबर पर पहुंच गये हैं. 

    असल में, नीलांबुर उपचुनाव ममता बनर्जी को बढ़िया मौका इसलिए भी लगा क्योंकि वो वायनाड लोकसभा सीट का ही एक विधानसभा क्षेत्र है – और वहां के लोगों ने कांग्रेस को उस स्थिति में भी सपोर्ट किया था जब राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार गये थे, और अब उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा लोकसभा में वायनाड का प्रतिनिधित्व करती हैं.  

    कांग्रेस के सीनियर नेता और पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी सहित यूडीएफ के सभी प्रमुख नेता नीलांबुर में कांग्रेस की जीत को केरल में मजबूत सत्ता-विरोधी लहर की साफ झलक देख रहे हैं. एके एंटनी का कहना है, नीलांबुर में यूडीएफ की जीत के साथ बदलाव पहले ही हो चुका है, मौजूदा सरकार तो अब सिर्फ कार्यवाहक सरकार है.

    पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केरल में ‘खेला’ नहीं कर पाईं, अफसोस तो बहुत हो रहा होगा. 2026 के पश्चिम बंगाल विधानसभा से पहले ममता बनर्जी ने कांग्रेस को बड़ा झटका देने का प्रयास किया था, लेकिन पूरा प्लान ही फेल हो गया है.  

    टीएमसी की नीलांबुर एक्सपेरिमेंट तो फेल हो गया

    वाम दलों से तो ममता बनर्जी की पुरानी अदावत रही ही है, लेकिन फिलहाल तो दुश्मन नंबर 1 कांग्रेस ही है. और, केरल की राजनीति में पांव जमाने के लिए ममता बनर्जी ने वायनाड का रास्ता भी सोच समझकर ही चुना था. वायनाड भी अब एक तरीके से कांग्रेस का गढ़ बन चुका है, और यही सोचकर ममता बनर्जी ने धावा बोल दिया था. 

    कांग्रेस उम्मीदवार अरध्यान शौकत ने सीपीआई के एम के एम स्वराज को 11077 वोटों के अंतर से शिकस्त दी है, लेकिन टीएमसी उम्मीदवार तो कुल 19760 वोट ही मिल पाये. फिर भी खुश होने का एक ख्याल ये हो सकता है कि वो बीजेपी उम्मीदवार से एक पायदान ऊपर जगह बना पाये हैं. बीजेपी उम्मीदवार को तो दस हजार वोट भी नहीं मिल सके हैं.  

    पीवी अनवर एलडीएफ के टिकट पर दो बार नीलांबुर से विधायक रह चुके हैं. 2016 में तो पीवी अनवर ने कांग्रेस के अरध्यान शौकत को ही हराकर चुनाव जीता था, लेकिन इस बार उनसे ही शिकस्त मिल गई. पीवी अनवर से ममता बनर्जी को बहुत उम्मीदें थीं, और यही वजह है कि जनवरी, 2025 में उनके टीएमसी में आते ही केरल में पार्टी की कमान सौंप दी गई.

    पीवी अनवर का स्वागत करते हुए टीएमसी महासचिव अभिषेक बनर्जी ने सोशल साइट X पर लिखा था, केरल के नीलांबुर से माननीय विधायक पीवी अनवर का तृणमूल कांग्रेस परिवार में हार्दिक स्वागत है. जनता की सेवा की उनकी निष्ठा और केरल के लोगों के अधिकारों की वकालत हमारे साझा मिशन को समृद्ध करती है.

    पीवी अनवर अभी 58 साल के हैं, यानी प्रियंका गांधी और राहुल गांधी से थोड़े ही बड़े हैं. पीवी अनवर का परिवार कांग्रेस से जुड़ा रहा है, और वो भी कांग्रेस, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और लेफ्ट के बाद अब तृणमूल कांग्रेस में पहुंच चुके हैं. एक बार अपनी पार्टी बनाकर भी खुद को आजमा चुके हैं, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. 

    नीलांबुर का नतीजा क्या संदेश दे रहा है

    केरल में भी अगले ही साल यानी पश्चिम बंगाल के साथ ही 2026 में ही विधानसभा के लिए चुनाव होने हैं. मुख्यमंत्री पी. विजयन की ये लगातार दूसरी पारी है, और एक बार फिर सत्ता में वापसी की तैयारी कर रहे हैं. तैयारी तो इस बार कांग्रेस भी कर रही है, इसलिए भी क्योंकि अब वहां प्रियंका गांधी भी आधिकारिक रूप से पहुंच गई हैं. 

    केरल में कांग्रेस के पास अच्छा सपोर्ट बेस है, लेकिन शशि थरूर जैसे नेता भी हैं जो कांग्रेस का सिरदर्द बढ़ा रहे हैं. ऑपरेशन सिंदूर के तहत विदेश दौरे पर भेजे गये सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में शशि थरूर को शामिल किये जाने पर तो बवाल हुआ ही, नीलांबुर उपचुनाव को लेकर उनकी नाराजगी भी सामने आई. शशि थरूर का कहना था कि चुनाव कैंपेंन के लिए उन्हें पूछा तक नहीं गया, जबकि कांग्रेस का दावा है कि वो तो स्टार कैंपेनर की लिस्ट में भी शामिल थे. 

    रही बात नीलांबुर के नतीजे के संदेश की, तो थोड़ा बहुत तो सभी के लिए मैसेज है ही. सत्ताधारी एलडीएफ और मुख्यमंत्री पी. विजयन के लिए तो ये खतरे का ही संकेत है. ये भी मैसेज है कि वायनाड इलाके में कांग्रेस के आगे उनकी नहीं चलने वाली है. राहुल गांधी के लिए नीलांबुर का नतीजा अच्छा संदेश लेकर आया है. आने वाले चुनाव में कांग्रेस केरल में कुछ बेहतर उम्मीद कर सकती है, और अगर सत्ता विरोधी लहर भारी पड़ा तो सरकार बनाने का मौका भी मिल सकता है. 

    ममता बनर्जी के लिए नीलांबुर का रिजल्ट बेहद निराशाजनक है. कांग्रेस को घेरने का दांव उल्टा पड़ गया है. जिस पीवी अनवर पर भरोसा करके ममता बनर्जी ने सूबे में टीएमसी की कमान सौंप दी, वो तो अपने इलाके में भी संभल कर खड़े नहीं हो पाये, जहां कल तक वो विधायक हुआ करते थे – अब अगर पश्चिम बंगाल के लिए भी ममता बनर्जी के पास कांग्रेस के खिलाफ ऐसे ही प्लान हैं, तो समय रहते समीक्षा कर लेनी चाहिये.



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