कौशांबी में 8 साल की बच्ची से बलात्कार के बाद जो यूपी पुलिस ने किया है वो वाकई में बेहद शर्मिदगी वाला मामला है. इस मामले में पुलिस की कार्रवाई पर जातिगत पक्षपात और पीड़ित परिवार को धमकाने जैसे गंभीर आरोप लगे हैं. मामला थाना सैनी क्षेत्र के लोहंदा गाँव में हुआ, जहां एक कथा आयोजन के दौरान एक बच्ची के साथ बलात्कार की घटना सामने आई. पहले पुलिस ने बच्ची से रेप करने के आरोपी को गिरफ्तार किया. आरोपी के पिता ने इस घटना के बाद सुसाइड कर लिया. फिर पुलिस ने पीड़िता के पूरे परिवार को भी गिरफ्तार करके जेल भेज दिया. अब पीडि़ता का परिवार गांव छोड़कर कहीं और शरण लिए हुए है. बच्ची से रेप का मामला ही गौण हो गया है. राजनीतिक दलों के कूदने के बाद यह मुद्दा ब्राह्रण बनाम अति पिछड़ा/दलित हो गया है. अब अगर ऐसी खबरें भी चल रही हैं कि नाबालिग पीड़िता ने मान लिया है कि उसके साथ दु्ष्कर्म नहीं हुआ है तो अब कौन उस पर यकीन करेगा. हालांकि कोर्ट तो वही मानती है जो पुलिस कहती है.
कौशांबी में जिस बच्ची से रेप हुआ वो पाल समाज (अति पिछड़े समाज ) से है, के साथ सिद्धार्थ तिवारी द्वारा कथित तौर पर बलात्कार किया गया. पुलिस ने सिद्धार्थ को POCSO एक्ट के तहत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया, लेकिन इस मामले में एक नया मोड़ तब आया जब सिद्धार्थ के पिता, रामबाबू तिवारी, ने अपने बेटे को निर्दोष बताते हुए आत्महत्या कर ली. बताया जाता है कि इसके बाद पीड़ित परिवार पर ही पुलिस ने दबाव बनाया और बच्ची के परिजनों को जेल भेज दिया.
पुलिस की कार्रवाई को जातिगत पक्षपात से प्रेरित बताया जा रहा है.जाहिर है कि ऐसे मामलों पर राजनीतिक दल कहां दूर रहने वाले थे.मामले को अगड़ा बनाम पिछड़ा करने की कोशिश जमकर हुई है . पर हैरानी ये रही कि इस मुद्दे पर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का दोनों का प्रांतीय नेतृत्व ने थोड़ा संयम बरता है. इस मामले में भारतीय जनता पार्टी , कांग्रेस, समाजवादी पार्टी की आवाज पीड़ित के बजाए आरोपी के साथ ज्यादा सुनाई दे रही है. दरअसल इन पार्टियों में किसी में भी सवर्ण आरोपी को निशाना बनाने की हिम्मत नहीं हुई. यहां तक अखिलेश यादव और कांग्रेस नेता अजय राय ने भी अपरोक्ष रूप से रेप पीड़िता के बजाय आरोपी के पिता के सुसाइड कर लेने के चलते उसे प्रताड़ित मानना ज्यादा उचित समझा.
सबसे हैरानी करने वाला बयान तो अखिलेश यादव का रहा है. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया एक्स पर किए पोस्ट में कहा है कि भाजपा की अंदरूनी राजनीति की शर्मनाक लड़ाई में कौशांबी पिस रहा है. कौशांबी में दो भाजपाई उपमुख्यमंत्री दो समाज के लोगों को आपस में लड़वा रहे हैं. अखिलेश का इशारा केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक की ओर था. उन्होंने बिना नाम लिए कहा कि पहले एक उप मुख्यमंत्री ने नाइंसाफी करते हुए ‘पाल’ समाज के लोगों को मोहरा बनाया. इसके बाद दूसरे उप मुख्यमंत्री ने अपने उस समाज के नाम पर झूठी सहानुभूति दिखाई, जो समाज इन दोनों के ‘ऊपरवालों’ को नहीं भाता है.
हैरान करने वाली बात ये है कि अखिलेश यादव अपना पीडीए कार्ड भूलकर ब्राह्मणों के बहाने बीजेपी को टार्गेट करने में लगे हुए है. अखिलेश को कौशांबी में अपने पिछड़े और अति पिछड़े समाज की चिंता नहीं है. वो बस बीजेपी की अंदरूनी राजनीति को ही टार्गेट किए हुए हैं. वो कहते हैं कि ध्यान से समझा जाए तो ये भाजपा की अंदर की राजनीति में मचा एक बड़ा घमासान है. इसमें दो या दो से अधिक समाजों को आपस में भिड़वाकर ‘कौशांबी, लखनऊ, दिल्ली’ की भाजपाई राजनीति अपना वीभत्स खेल-खेल रही है. इसका शिकार जनता हो रही है. इस लड़ाई में वो भी कूद पड़े हैं, जिनका समाज ‘सत्ता सजातीय’ राजनीति का विशेष रूप से शिकार है.
अखिलेश यादव ब्राह्मण समाज के प्रति हमदर्दी दिखाते हैं. वो कहते हैं कि लगातार सत्ता के वे निशाने पर हैं, दूसरे उप मुख्यमंत्री अपने समाज पर हो रहे अत्याचार और अपमान पर अपनी कुर्सी बचाने के लिए सुविधाजनक चुप्पी साधे बैठे हैं.
BJP, जो उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी है, इस मामले में सबसे अधिक निशाने पर रही. सोशल मीडिया पर लोगों ने BJP पर आरोप लगाया कि उसने उच्च जाति के आरोपी को बचाने के लिए दबाव बनाया और पीड़ित परिवार को प्रताड़ित किया.पर बीजेपी के लिए राहत की बात यह रही कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों ही ने इस मुद्दे को इस एंगल से उठाने में जानबूझकर कोताही बरती.
BJP ने इस मामले में आधिकारिक तौर पर कोई बड़ा बयान नहीं दिया, लेकिन स्थानीय नेताओं पर दबाव बनाने के आरोप लगे. हालांकि स्थानीय स्तर के विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया कि BJP नेताओं के दबाव में पीड़ित परिवार के पिता, भाई, और चाचा को जेल भेजा गया, जो एक गंभीर आरोप है.
कांग्रेस ने इस मामले में सक्रियता दिखाने की कोशिश की, लेकिन उसकी भूमिका पर भी दोहरे रवैये के आरोप लगे. कांग्रेस का एक प्रतिनिधिमंडल पीड़ित परिवार से मिलने लोहंदा गांव पहुंचा और न्याय की मांग की. यह कदम दलित/पिछड़े समुदायों को लुभाने की रणनीति का हिस्सा माना गया.कांग्रेस पर आरोप लग रहा है कि एक तरफ कांग्रेस पीड़िता से मिल रही थी, तो दूसरी तरफ कुछ कांग्रेस नेता आरोपी के परिवार को पीड़ित बता रहे थे. जाहिर है कि यह दोहरा रवैया कांग्रेस की विश्वसनीयता को कमजोर करता है.
BKU, जो एक गैर-राजनीतिक संगठन है, ने इस मामले में सक्रिय भूमिका निभाई. BKU ने पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने के लिए रेल रोको आंदोलन शुरू करने की बात की. BKU की सक्रियता ने इस मामले को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में लाने में मदद की. यह अन्य राजनीतिक दलों के लिए भी दबाव का कारण बना, क्योंकि जनता का आक्रोश बढ़ता जा रहा था.