16 अगस्त 1980 को कोलकाता और 4 जून 2025 बेंगलुरु- दोनों तारीखों में करीब 45 साल का फासला है, लेकिन एक चीज समान है- वो खेल देखने का जुनून और भीड़ का बेकाबू हो जाना. बुधवार शाम बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर हुई भगदड़ में 11 लोगों की मौत हो गई और कई घायल हुए. इस पूरे मामले में कर्नाटक सरकार और क्रिकेट एसोसिएशन पर अव्यवस्था के आरोप हैं, वहीं भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने इस पूरे मामले में पल्ला झाड़ लिया है.
ध्यान रहे इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) के इतिहास में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु को 18 साल बाद पहली खिताबी जीत मिली, इस पर RCB के फैन्स आउट ऑफ कंट्रोल हो गए और भीषण हादसा हो गया. बेंगलुरु में 4 जून को RCB की जीत पर विक्ट्री परेड का आयोजन किया गया था, पहले यह ओपन बस में होनी थी, लेकिन बाद में इसे टाल दिया गया. इस हादसे पर IPL फ्रेंचाइजी RCB का भी रिएक्शन आया.
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𝗢𝗳𝗳𝗶𝗰𝗶𝗮𝗹 𝗦𝘁𝗮𝘁𝗲𝗺𝗲𝗻𝘁: 𝗥𝗼𝘆𝗮𝗹 𝗖𝗵𝗮𝗹𝗹𝗲𝗻𝗴𝗲𝗿𝘀 𝗕𝗲𝗻𝗴𝗮𝗹𝘂𝗿𝘂
We are deeply anguished by the unfortunate incidents that have come to light through media reports regarding public gatherings all over Bengaluru in anticipation of the team’s arrival this… pic.twitter.com/C0RsCUzKtQ
— Royal Challengers Bengaluru (@RCBTweets) June 4, 2025
लेकिन बेंगलुरु में इस हादसे ने 1980 में कोलकाता के ईडन गार्डन्स में हुई घटना को याद दिलाई थी. 16 अगस्त 1980 को ईडन गार्डन्स (तब सॉल्ट लेक स्टेडियम नहीं था, यह 1984 बनकर तैयार हुआ) में चिर प्रतिद्वंद्वी मोहन बागान और ईस्ट बंगाल के बीच कोलकाता फुटबॉल मैच में दो टीमों के फैन्स के बीच जबरदस्त झड़प हुई, जिसमें 16 लोगों की मौत हो गई. मैच में भीड़ में झगड़ा हुआ, पत्थरबाजी हुई और भगदड़ मच गई. लोग उस दिन कोलकाता में जोश था, लेकिन दुख में बदल गया.
बुधवार (4 जून) को रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (RCB) की 18 साल में पहली बार आईपीएल जीतने के जश्न में 11 फैन्स की मौत हो गई, जो विराट कोहली की एक झलक पाने के लिए थे. 1980 में ईडन गार्डन्स और बुधवार को गार्डन सिटी में हुई दोनों ही त्रासदी को टाला जा सकता था.
ईडन गार्डन्स में क्या हुआ था?
ईडन गार्डन्स में अगस्त की उस दोपहर में 70,000 से अधिक दर्शक गैलरी में जमा थे और मोहन बागान के तेज तर्रार राइट विंगर बिदेश बसु को ईस्ट बंगाल के साइड बैक दिलीप पालित ने गिरा दिया, जो अपनी रफ टैकलिंग के लिए कुख्यात थे. उस समय की रिपोर्टों के अनुसार, उस मैच के रेफरी स्वर्गीय सुधीन चटर्जी का मैच की प्रोसिडिंग पर कंट्रोल नहीं था और एक बार जब बिदेश और दिलीप के बीच हाथापाई हुई, तो स्टैंड में तनाव फैल गया.
दोनों पक्षों के दर्शकों की ओर से पत्थरबाजी हुई और कोलकाता पुलिस इतनी सतर्क नहीं थी कि भगदड़ जैसी स्थिति को समझ सके क्योंकि भीड़ घबरा गई और इधर-उधर भागने की कोशिश करने लगी.
ईडन गार्डन्स के दूसरे टियर से भगदड़ से बचने की कोशिश कर रहे प्रशंसकों की ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर आज भी उन परिवारों को डराती है. 18 से 60 वर्ष की आयु के 16 फैन्स, जो दोपहर में अपने घरों से बेकाबू खुशी और उत्साह के साथ निकले थे, वे मैटाडोर (उन दिनों शव वाहन नहीं थे) में बेजान होकर वापस आए.
फिर 2012 में 40 लोग घायल
9 दिसंबर 2012 को इसी तरह की त्रासदी हो सकती थी, जब जब मोहन बागान के रहीम नबी के माथे पर विपक्षी टीम के स्टैंड से एक पत्थर आकर लगा. लेकिन, यह नजारा तब देखने को मिला, जब ईस्ट बंगाल के डिफेंडर अर्नब मंडल मोहन बागान के स्टार को सुरक्षित स्थान पर ले जा रहे थे. उस मैच को रद्द कर दिया गया और ईस्टर्न मेट्रोपॉलिटन बाईपास की सड़कों पर झड़पों में 40 से अधिक लोग घायल हो गए. दोनों पक्षों के समर्थकों के साथ हाथापाई में पुलिसकर्मी भी घायल हुए थे.
1969 के क्रिकेट मैच में हुआ हादसा
1969 में ऑस्ट्रेलिया की भारत में टेस्ट सीरीज के दौरान कोलकाता (ईडन गार्डन्स) और मुंबई के ब्रेबोर्न स्टेडियम में दो घटनाएं हुईं. मुंबई में यह घटना एक विवादास्पद निर्णय के बाद हुई थी, जिसमें एस वेंकटराघवन को बाहर होना पड़ा था. ऑल इंडिया रेडियो की कमेंट्री सुन रहे दर्शक भड़क गए और उन्होंने उत्पात मचा दिया. स्टैंड में आग लग गई, लेकिन सौभाग्य से कोई मौत नहीं हुई. ईडन गार्डन्स में भगदड़ जैसी स्थिति बंगाल क्रिकेट संघ के तत्कालीन भ्रष्ट अधिकारियों के कारण थी, जिन्होंने क्षमता से अधिक नकली टिकट छपवाए थे और वहां कम से कम 20,000 लोग थे. अफवाह यह थी कि जब पुलिस दर्शकों को बाहर निकालने की कोशिश कर रही थी, तो कुछ सीएबी अधिकारी अपनी मेजों के नीचे छिप गए थे.
खेल आयोजनों के दौरान दर्शकों की अन्य प्रमुख मौतें
हिल्सबोरो (1989): इंग्लैंड के शेफ़ील्ड में हिल्सबोरो स्टेडियम में भगदड़ मचने से लिवरपूल और नॉटिंघम फॉरेस्ट के बीच FA कप सेमीफाइनल के दौरान 97 लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों लोग घायल हो गए. यह अभी भी खेल से जुड़ी भीड़ की मौत की सबसे बुरी घटनाओं में से एक है.
हेसेल स्टेडियम आपदा (1985): ब्रसेल्स के हेसेल स्टेडियम में एक स्टेडियम की दीवार ढह गई, जिससे लिवरपूल और जुवेंटस के बीच यूरोपीय कप फाइनल के दौरान 39 फैन्स की मौत हो गई.
लीमा स्टेडियम दंगे (1964): मौतों की संख्या के लिहाज से, यह पिछले 60 वर्षों में खेल भीड़ की सबसे बड़ी त्रासदी है. यह अर्जेंटीना और पेरू के बीच ओलंपिक क्वालिफायर था. दंगे हुए जिसके कारण 300 से ज्यादा लोग मारे गए और लगभग 1000 लोग घायल हुए.
लुज्निकी स्टेडियम (1982): यह स्पार्टक मॉस्को और हार्लेम एफसी के बीच यूईएफए कप मैच था और इसमें 66 फैन्स की मौत हो गई, जिनमें से ज्यादातर किशोर थे, जो इसे रूसी इतिहास की सबसे बड़ी खेल त्रासदी बनाता है.
हौफोएट-बोइग्नी भगदड़ (2009): अबिदजान में आइवरी कोस्ट और मलावी के बीच विश्व कप क्वालिफायर के दौरान भगदड़ में 19 फैन्स की मौत हो गई और 135 गंभीर रूप से घायल हो गए.