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    पौराणिक इतिहास, तीन देशों के बीच फैलाव और वॉटर पॉलिटिक्स…. ब्रह्मपुत्र की कहानी

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    असम सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने मंगलवार को कहा कि यदि चीन ब्रह्मपुत्र नदी के जल प्रवाह को कम करता है, तो इससे राज्य को लाभ होगा और यह हर साल आने वाली बाढ़ को कम करने में मदद करेगा. सीएम सरमा पाकिस्तान के उस बयान का जवाब दे रहे थे जिसमें कहा गया था कि चीन अपने ‘दोस्त’ के समर्थन में ब्रह्मपुत्र के जल को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकता है और भारत द्वारा सिंधु जल संधि को निलंबित करने के जवाब में प्रतिक्रिया दे सकता है.

    यह पढ़ेंः अगर चीन ब्रह्मपुत्र का पानी रोक दे तो क्या होगा? असम CM ने पाकिस्तानी धमकी का तथ्यों के साथ दिया करारा जवाब

    हिमालय के जरिये बहने वाली हर नदी की तरह, ब्रह्मपुत्र भी अपना खुद का इतिहास और पौराणिक कथाओं को समेटे हुए है, लेकिन देवी की तरह पूजी जाने वाली अन्य भारतीय नदियों और ब्रह्मपुत्र के बीच एक अंतर है. यह भारत की उन कुछ प्रमुख नदियों में से एक है जिसका नाम स्पष्ट रूप से पुरुषवाचक है. इसे भगवान ब्रह्मा के साथ इसके पौराणिक संबंध से लिया गया है.  

    ब्रह्मपुत्र के दो पौराणिक पिता माने जाते हैं. भगवान ब्रह्मा (जाहिर तौर पर) और ऋषि शांतनु. 16वीं शताब्दी के ग्रंथ योगिनी तंत्र में, जो काली और कामाख्या जैसी देवियों की पूजा को समर्पित है, इस ग्रंथ में नदी को एक प्राचीन स्नान अनुष्ठान से जोड़ा गया है जिसमें ऐसा आह्वान है:  

    हे ब्रह्मा के पुत्र! हे शांतनु के पुत्र! हे लोहित! हे लोहित के पुत्र!
    मैं तुम्हें नमन करता हूँ, मेरे पिछले तीन जन्मों के पापों को धो दो.  

    ब्रह्मा, सृष्टि के देवता से क्या है नदी का संबंध ?
    पूर्वी लोककथाओं के अनुसार, ऋषि शांतनु और उनकी पत्नी अमोघा हिमालय में लोहित झील के पास रहते थे. एक दिन, अमोघा की सुंदरता से आकर्षित होकर भगवान ब्रह्मा उनके पास आए जब वह अकेली थीं, लेकिन अमोघा ने खुद को एक झोपड़ी में बंद कर लिया. उनके शाप से डरकर, ब्रह्मा ने अपना बीज त्याग दिया और लज्जित होकर चले गए. जब शांतनु को यह पता चला, तो उन्होंने अमोघा से वह बीज ग्रहण करने को कहा. बाद में अमोघा के नथुनों से ब्रह्मा का पुत्र प्रवाहित हुआ, इसलिए इसका नाम ब्रह्मपुत्र पड़ा.  

    हिमालय में यह किंवदंति भी है प्रचलित
    तिब्बती लोककथाओं के अनुसार, नदी की उत्पत्ति माउंट तिसे (कैलाश पर्वत, भगवान शिव का निवास) से एक छोटी धारा के रूप में होती है. इसके जन्म स्थल पर, नदी की रक्षा चार दैवीय प्राणी करते हैं, जिनमें एक शेर, एक हाथी, एक घोड़ा और एक मोर शामिल हैं.
    असम और अरुणाचल प्रदेश के स्वदेशी समुदायों, जैसे मिसिंग, बोडो आदि, के लिए ब्रह्मपुत्र एक जीवित देवता है. द ट्राइब्स ऑफ असम (बी.एन. बोरदोलोई) के अनुसार, मिसिंग लोग नदी को “पितृ नदी” या उनके पैतृक देवता अबो तानी के अवतार के रूप में देखते हैं.

    असम में, ब्रह्मपुत्र को बिहू जैसे त्योहारों के दौरान उत्सव में प्रमुख देवता के तौर पर शामिल किया जाता है. जहां समुदाय इसकी प्रचुरता के लिए नदी का सम्मान करते हैं. प्रसिद्ध गायक भूपेन हजारिका का नदी को समर्पित गीत ‘महाबाहु ब्रह्मपुत्र’ रचा था, जिसे असमिया संगीत का एक महान गीत माना जाता है.  

    कहां है नदी का उद्गम स्थल?
    ब्रह्मपुत्र, जिसे तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो, अरुणाचल प्रदेश में सियांग या दिहांग और बांग्लादेश में जमुना के नाम से जाना जाता है, अपनी यात्रा के दौरान अलग-अलग नाम धारण करती है. 18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों को राजनीतिक बाधाओं के कारण तिब्बत में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी, इसलिए उन्होंने भारतीय खोजकर्ताओं को भिक्षुओं के वेश में ब्रह्मपुत्र के मार्ग का पता लगाने के लिए भेजा. 20वीं शताब्दी की शुरुआत में, ब्रह्मपुत्र का स्रोत अंततः दक्षिण-पश्चिमी तिब्बत में कुबी कांगरी पर्वत श्रृंखला में चेमायुंगडुंग ग्लेशियर तक खोजा गया, जो हिमालय के पास लगभग 5,200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यह ग्लेशियर यारलुंग त्सांगपो का प्राथमिक स्रोत है, जो नीचे की ओर ब्रह्मपुत्र बन जाता है.  

    किस रास्ते से होकर बहती है ब्रह्मपुत्र नदी?
    चेमायुंगडुंग ग्लेशियर से शुरू होकर, यह विशाल नदी तीन देशों चीन, भारत और बांग्लादेश से होकर गुजरती है, और फिर बांग्लादेश में पद्मा नदी (गंगा की मुख्य सहायक नदी) के साथ मिल जाती है. मेघना नदी के साथ जुड़कर, यह विश्व के सबसे बड़े नदी संगमों में से एक बनाती है, जो बंगाल की खाड़ी में जाकर समाप्त होती है. स्रोत से समुद्र तक इसकी कुल यात्रा लगभग 2,900 किलोमीटर है.

    यह हिमालय से नाटकीय ढंग से नीचे उतरती है, तिब्बत-अरुणाचल प्रदेश सीमा पर यारलुंग त्सांगपो ग्रैंड कैन्यन, विश्व की सबसे गहरी घाटी, से होकर गुजरती है.  चीन मेदोग में एक विशाल बांध बना रहा है, जहां नदी 50 किलोमीटर की दूरी में 2,000 मीटर नीचे गिरती है. भारत में, तिब्बत-अरुणाचल सीमा पर इस तीव्र ढलान का उपयोग जलविद्युत के लिए करने के लिए प्रस्तावित बांध ने पर्यावरणीय चिंताओं और नदी के हथियारीकरण की आशंकाओं को जन्म दिया है. (इसके बारे में बाद में और जानकारी)

    जैसे ही ब्रह्मपुत्र नदी हिमालय से होकर गुजरती है, यह 7,782 मीटर ऊंचे नमचा बरवा पर्वत पर पहुंचती है, जिसे अक्सर हिमालयी श्रृंखला का ‘पूर्वी लंगर’ कहा जाता है. इस विशाल अवरोध को भेदने में असमर्थ, नदी एक बड़ा यू टर्न लेती है, जिसे ग्रेट बेंड के नाम से जाना जाता है. इस शानदार चाल के साथ, नदी पूर्व की ओर से दक्षिण की ओर मुड़ती है और अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है, जहां इसे सियांग नदी (या दिहांग) के नाम से जाना जाता है.

    उत्तर-पूर्व भारत से होकर बहते हुए, यह असम के मैदानों में प्रवेश करती है, जहां इसे लोकप्रिय नाम ब्रह्मपुत्र मिलता है. असम में, नदी काफी चौड़ी हो जाती है और लगभग 800 किलोमीटर तक पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम दिशा में एक विशाल, उपजाऊ घाटी से होकर बहती है, जिसमें डिब्रूगढ़, गुवाहाटी और धुबरी जैसे प्रमुख शहर शामिल हैं.

    इसके बाद, यह बांग्लादेश में प्रवेश करती है, जहां इसे जमुना नदी के नाम से जाना जाता है. यह दक्षिण की ओर बहती रहती है और बांग्लादेश में पद्मा नदी (गंगा की मुख्य सहायक नदी) के साथ मिल जाती है. मेघना नदी के साथ जुड़कर, यह विश्व के सबसे बड़े नदी संगमों में से एक बनाती है. मेघना भी आगे जाकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है. 

    मेघना को पार करना एक साहसिक फैसला
    संयोगवश, 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में, भारतीय सेना ने मेघना नदी को वीरतापूर्ण ढंग से पार किया था. लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह के नेतृत्व में मेघना को पार करना युद्ध के सबसे साहसी कार्यों में से एक माना जाता है, जिसने बांग्लादेश की मुक्ति के लिए युद्ध की दिशा बदल दी थी.  

    क्या चीन नदी को पूरी तरह रोक सकता है?

    ब्रह्मपुत्र को पूरी तरह रोकना असंभव है, क्योंकि यह नदी भारत में बहते हुए अपने जल का लगभग 40 प्रतिशत इकट्ठा करती है. जब तक इस विशाल बेसिन में बदलाव नहीं किया जाता, ब्रह्मपुत्र भारत और बांग्लादेश को जल प्रदान करती रहेगी.  

    तो, क्या भारत को चीन के जल को हथियार की तरह इस्तेमाल करने की संभावना की चिंता नहीं करनी चाहिए?
    भू-रणनीतिकार (Geostrategist) ब्रह्मा चेलेनी के अनुसार, चीन के ऊपरी बांध अभी भी जल प्रवाह को नियंत्रित कर सकते हैं, जिससे कृत्रिम बाढ़ या सूखे का खतरा पैदा हो सकता है. चेलेनी तर्क देते हैं कि तिब्बती पठार पर चीन का नियंत्रण इसे एशिया के जल संसाधनों पर अभूतपूर्व प्रभुत्व प्रदान करता है (वाटर: एशियाज न्यू बैटलग्राउंड). इसकी ऊपरी स्थिति चीन को नदी के प्रवाह को एकतरफा रूप से नियंत्रित करने की स्वतंत्रता देती है, जिसका उपयोग भारत में कृत्रिम सूखा या बाढ़ पैदा करने के लिए किया जा सकता है.

    इसके अलावा, ग्रेट बैंड के पास ब्रह्मपुत्र पर चीन की विशाल बांध परियोजना भारत के लिए भूकंपीय और रणनीतिक जोखिम पैदा करती है. चेलेनी का तर्क है कि यह परियोजना अरुणाचल प्रदेश, एक विवादित क्षेत्र, पर चीन के दावे को मजबूत करने और निचले देशों पर दबाव डालने के लिए सीमापार प्रवाह को नियंत्रित कर सकती है.  

    चीन का इस पर क्या नजरिया है?

    चीन ने अपनी प्रस्तावित जलविद्युत बांध परियोजना के बारे में चिंताओं को ‘षड्यंत्र सिद्धांत’ बताकर खारिज किया है, चीन का दावा है कि यह एक रन-ऑफ-रिवर परियोजना है जो नदी के प्रवाह को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित नहीं करेगी या निचले देशों के अधिकारों को प्रभावित नहीं करेगी.’

    27 दिसंबर, 2024 को चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग के एक बयान के अनुसार, तिब्बत के मेदोग काउंटी में स्थित इस बांध का दशकों तक वैज्ञानिक मूल्यांकन के साथ अध्ययन किया गया है ताकि सुरक्षा और पारिस्थितिक संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके. माओ ने जोर देकर कहा कि यह परियोजना ‘निचले क्षेत्रों पर निगेटिव इफेक्ट नहीं डालेगी, यानी भारत और बांग्लादेश पर’ इसे ऊर्जा विकास को तेज करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए डिज़ाइन किया गया है.

    हालांकि, विशेषज्ञ और निचले देश चीन के आश्वासनों पर संदेह जताते हैं. जर्नल ऑफ इंडो-पैसिफिक अफेयर्स में 2024 के एक अध्ययन ने चेतावनी दी कि मेदोग बांध तलछट प्रवाह को बाधित कर सकता है, जो भारत के पूर्वोत्तर मैदानों और बांग्लादेश के डेल्टा में कृषि के लिए महत्वपूर्ण है, इससे लाखों किसानों पर प्रभाव पड़ सकता है.
    बांग्लादेश के पर्यावरण मंत्रालय की 2022 की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि ब्रह्मपुत्र के प्रवाह में 5% की कमी से कुछ क्षेत्रों में कृषि उत्पादन में 15% की गिरावट हो सकती है, जिससे खाद्य सुरक्षा को खतरा हो सकता है.  

    जल एक मूल्यवान संसाधन है, विशेष रूप से 21वीं सदी में, जहां पर्यावरणीय परिवर्तन कमी और बाढ़ का कारण बन सकते हैं. कोई भी देश जो ब्रह्मपुत्र जैसी गतिशील नदी के प्रवाह को नियंत्रित करने की क्षमता रखता है, उसे रणनीतिक और जलवैज्ञानिक लाभ प्राप्त होता है. भारत को ब्रह्मपुत्र के मुद्दे पर चीन के साथ कूटनीतिक रूप से निपटना होगा. इसे यह सुनिश्चित करना होगा कि नदी को तीन देशों, जिनसे होकर यह गुजरती है के साझा संसाधन और विरासत के रूप में माना जाए, ताकि पाकिस्तान को इस त्रिपक्षीय मुद्दे में गैरजरूरी तरीके से हस्तक्षेप करने का मौका न मिले. भारत और चीन, आर्थिक और तकनीकी विकास पर केंद्रित प्रमुख शक्तियों के रूप में, सहयोग को संघर्ष से अधिक मूल्यवान मानते हैं, जिससे पाकिस्तान के इशारे पर ब्रह्मपुत्र को लेकर तनाव बढ़ने की संभावना कम हो जाती है.
     



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