अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आर्थिक नीतियों को बड़ा झटका लगा है. न्यूयॉर्क स्थित एक संघीय अदालत ने बुधवार को ट्रंप के उस फैसले पर रोक लगा दी जिसके तहत वो दुनिया के लगभग हर देश पर व्यापक टैरिफ लगाने जा रहे थे. यूएस कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड के तीन जजों के एक पैनल ने अपने फैसले में कहा कि 1977 के इंटरनेशनल इमर्जेंसी इकोनॉमी पावर्स एक्ट (IEEPA) कानून की आपातकालीन शक्तियां राष्ट्रपति को अधिकार नहीं देता कि वो लगभग हर देश पर टैरिफ लगा दें.
अदालत ने कहा कि अमेरिका का संविधान संसद को दूसरे देशों के साथ व्यापार को मैनेज करने का विशेष अधिकार देता है और यह अधिकार अमेरिकी अर्थव्यवस्था की सुरक्षा के लिए राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों से प्रभावित नहीं होता है.
ट्रंप ने 2 अप्रैल को दुनिया के लगभग हर देश पर रेसिप्रोकल टैरिफ का ऐलान किया था यानी जो देश अमेरिकी सामानों पर जितना टैरिफ लगाएगा, अमेरिका भी उन देशों की वस्तुओं पर उतना ही टैरिफ लगाएगा.
ट्रंप ने हालांकि, चीन, कनाडा और मैक्सिको को छोड़कर बाकी देशों पर लगाए जाने वाले टैरिफ पर 90 दिनों की रोक लगा दी थी. तीनों देशों को छोड़कर सभी देशों पर 10% का बेस टैरिफ ही लागू रहा और बाकी टैरिफ पर रोक लगा दी गई.
ट्रंप ने व्यापार घाटे को देखते हुए दुनिया के देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ की घोषणा की थी जिसमें अधिकतम 50% और न्यूनतम 10% टैरिफ की बात गई थी. ट्रंप की टैरिफ घोषणा ने वैश्विक व्याापर में भारी अनिश्चितता छा गई थी और वित्त बाजार भी डगमगा गया जो अब तक ठीक से संभल नहीं पाया है. इससे दुनिया भर में मुद्रास्फीति और मंदी का डर छा गया है. इन्हीं परिस्थितियों में कोर्ट ने ट्रंप के टैरिफ को पलट दिया है.
इन टैरिफ पर कोर्ट ने नहीं लगाई रोक
कोर्ट ने हालांकि, स्टील एल्यूमिनियम और ऑटो पर लगाए ट्रंप प्रशासन के टैरिफ पर किसी तरह की रोक नहीं लगाई है. ट्रंप प्रशासन ने पहले कार्यकाल में स्टील पर 25% और एल्यूमिनियम पर 10% का टैरिफ लगाया था और जब वो दोबारा सत्ता में आए तब उन्होंने फिर से यह टैरिफ लागू कर दिया.
हालांकि, इस बार एल्यूमिनियम पर लगा टैरिफ भी बढ़ाकर 25% कर दिया है. ऑटोमोबाइल पर भी 25% का टैरिफ लगा है. ये तीनों टैरिफ अमेरिका के साथ व्यापार करने वाले हर देश पर लगे हैं और आगे भी जारी रहेंगे क्योंकि कोर्ट ने इन पर रोक नहीं लगाई है.
ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ का अब क्या होगा?
ट्रंप ने अप्रैल में IEEPA कानून का इस्तेमाल कर अपनी आपात शक्तियों के तहत रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया था. उनका दावा था कि व्यापार असंतुलन की वजह से नेशनल इमर्जेंसी की स्थिति पैदा हो गई है. फरवरी में उन्होंने IEEPA कानून का ही इस्तेमाल कर कनाडा, मैक्सिको और चीन पर लगाए टैरिफ को सही ठहराया था.
उनका कहना था कि कनाडा और मैक्सिको अमेरिका से लगे अपने बॉर्डर से हो रहे अवैध शरणार्थियों और ड्रग्स की तस्करी रोकने में नाकाम रहे हैं और चीन के जरिए भी अमेरिका में अवैध तरीके से ड्रग्स पहुंच रहा है.
अमेरिका का संविधान संसद को टैरिफ तय करने की शक्ति देता है और सभी सांसद, चाहें वो किसी भी पार्टी के हों, मिलकर तय करते हैं कि किसी देश पर कितना टैरिफ लगेगा. ट्रंप ने अपने आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल कर एकतरफा तरीके से टैरिफ लगाया जो कि उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर था.
टैरिफ को लेकर क्या कहता है ट्रंप प्रशासन
कोर्ट का फैसला आने के मिनटों बाद ही ट्रंप प्रशासन ने उसके खिलाफ अपील दायर कर दी है. टैरिफ को लेकर प्रशासन ने तर्क दिया कि 1970 में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने भी इसी तरह की आपात शक्तियों का इस्तेमाल किया था.
लेकिन कोर्ट ने ट्रंप प्रशासन की तुलना को खारिज कर दिया और कहा कि ट्रंप के टैरिफ बहुत व्यापक हैं और जिस काम के लिए उन्हें लाए जाने की प्लानिंग की जा रही है, वो उन मुद्दों को संबोधित नहीं करते.
ट्रंप को कोर्ट के फैसले से लगा बड़ा झटका
पूर्व अमेरिकी व्यापार वार्ताकार और एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के उपाध्यक्ष वेंडी कटलर ने समाचार एजेंसी एपी से बात करते हुए कहा कि कोर्ट के फैसले ने राष्ट्रपति की व्यापार नीति में भारी उलट-फेर कर दिया है.
कटलर ने कहा, ‘ट्रंप ने टैरिफ पर जो 90 दिनों की रोक लगाई है, उसे लेकर कई देश उनसे बातचीत कर रहे थे और रियायतों की पेशकश कर रहे थे. लेकिन अब कोर्ट के फैसले के बाद वो अमेरिका को सभी तरह की रियायतें रोक सकते हैं.’
ट्रंप प्रशासन ने कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील कर दी है और माना जा रहा है कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है. कॉर्नेल विश्वविद्यालय में व्यापार नीति के प्रोफेसर ईश्वर प्रसाद ने कहा कि यह फैसला ट्रंप की उस नींव को ही कमजोर करता है जिसके आधार पर उन्होंने आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल कर टैरिफ लगाया था.
ईश्वर प्रसाद ने कहा, ‘फैसले से यह साफ हो जाता है कि ट्रंप ने एकतरफा तरीके से जो व्यापक टैरिफ की घोषणा की है वो कार्यकारी शक्तियों का अतिक्रमण है.’
भारत पर क्या होगा असर?
ट्रंप ने 2 अप्रैल को दुनिया के लगभग हर देश पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया था जो कि 1930 के बाद से अमेरिका का सबसे अधिक टैरिफ था. रेसिप्रोकल टैरिफ स्कीम के तहत अमेरिका ने भारत पर 26% टैरिफ लगाया. लेकिन 9 अप्रैल को ट्रंप प्रशासन ने टैरिफ लागू होने पर 90 दिनों की रोक लगा दी थी. हालांकि, सभी रेसिप्रोकल टैरिफ लगे देशों पर 10 प्रतिशत का बेस टैरिफ लागू रहा.
दुनिया के देशों पर 10 प्रतिशत का बेस टैरिफ और चीन पर अतिरिक्त 30% का टैरिफ वैश्विक आर्थिक विकास को प्रभावित कर रहा है. क्रेडिट रेटिंग फर्म Moody ने कुछ समय पहले ही कहा था कि इससे भारत की जीडीपी ग्रोथ 2025 में 6.7% से घटकर 6.3% हो सकती है.
इसी के साथ ही मूडीज ने कहा था कि भले ही अमेरिकी नीतियों में बदलाव से खतरा है लेकिन भारत का आर्थिक विकास उसके घरेलू खपत पर निर्भर है. इंफ्रास्ट्रक्चर पर सरकार का खर्च जीडीपी ग्रोथ में योगदान देता है. सरकार अगर टैक्स में भी कटौती कर दे तो लोग खर्च करने को प्रोत्साहित होते हैं. मूडीज ने कहा था कि ट्रंप के टैरिफ से भारत पर बहुत ज्यादा असर नहीं होगा.
टैरिफ को लेकर भारत और अमेरिका के बीच एक व्यापार वार्ता भी चल रही है जिसमें काफी अच्छी प्रगति देखी गई है. अब कोर्ट के फैसला भारत के पक्ष में माना जा रहा है क्योंकि इससे व्यापार वार्ता में भारत को रियायतें मिल सकती हैं. अगर आगे भी रेसिप्रोकल टैरिफ पर रोक जारी रही तो इससे अमेरिका में भारत का निर्यात अप्रभावित रह सकता है.