ऑपरेशन सिंदूर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “हम घर में घुस कर मारेंगे” जैसे बयानों के साथ कड़ा रुख अपनाया है, जिससे राष्ट्रवाद की राजनीति गरमा गई है. विपक्ष इस ऑपरेशन को “फेल्यूर ऑपरेशन” बताकर इसकी सफलता पर प्रश्नचिह्न लगा रहा है, जबकि गुजरात जैसे राज्यों में रोड शो के दौरान जनता प्रधानमंत्री का समर्थन करते हुए “तुम रक्षक काहु को डरना” जैसे श्लोक उद्धृत कर रही है. इस राजनीतिक माहौल का प्रभाव अगले दो वर्षों में तेरह राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों पर पड़ने की संभावना है, जिसके लिए प्रधानमंत्री सघन दौरे भी कर रहे हैं.
क्या विपक्ष को लगने लगा है कि ऑपरेशन सिंदूर को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हर ललकार अब विरोध की राजनीति को अस्थिर करती जा रही है? क्या विपक्ष को लगता है कि ऑपरेशन सिंदूर से नरेंद्र मोदी को राष्ट्रवाद की राजनीति का वह लाभ होगा, जितना छह साल पहले बालाकोट स्ट्राइक के बाद भी नहीं हुआ था?
ऑपरेशन सिंदूर पर दुनिया की नजर, लेकिन विपक्ष क्यों आलोचना कर रहा है?
जिस ऑपरेशन सिंदूर की ताकत को पूरी दुनिया स्वीकार कर रही है, वहां अचानक विपक्ष इसे छोटा युद्ध, फेल ऑपरेशन, और “मिला क्या?” जैसे सवालों से क्यों घेर रहा है? क्या विपक्ष को लग रहा है कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद मोदी को वही मजबूती मिलने जा रही है जैसी बालाकोट के बाद मिली थी?
विपक्ष ने ऑपरेशन सिंदूर पर क्या कहा?
शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राऊत ने कहा है कि ऑपरेशन सिंदूर फेल्यूर ऑपरेशन है. लेकिन देश के हित में हम विपक्ष वाले उस पर ज्यादा बात नहीं करना चाहते.
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि जो सिंदूर उजड़े हैं, क्या उन आतंकियों को आप लेकर आए हो? क्या सीजफायर में वो आतंकियों को लाने की शर्त रखी है? प्रधानमंत्री तो वहां गए भी नहीं, वह छोड़ दीजिए.
प्रधानमंत्री के छह सार्वजनिक संबोधन और छिपा हुआ संदेश
पाकिस्तान के आतंक के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर के 20 दिन के भीतर प्रधानमंत्री अब तक छह बार सार्वजनिक संबोधन कर चुके हैं. क्या इसमें कोई संदेश छिपा है? इसे समझने के लिए प्रधानमंत्री के छह बयानों की मुख्य बातें जानिए.
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प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन की बड़ी बातें – तारीख और स्थान अनुसार
- 12 मई, दिल्ली: जिन आतंकियों ने हमारी मां-बहनों का सिंदूर मिटाया, हमने उन्हें मिटा दिया.
- 13 मई, आदमपुर एयरबेस: हम घर में घुसकर मारेंगे और बचने का एक मौका तक नहीं देंगे.
- 22 मई, बीकानेर: अब तो मोदी की नसों में लहू नहीं, गर्म सिंदूर बह रहा है.”
- 26 मई, दाहोद: आतंकवादियों ने जो कुछ भी किया, क्या भारत चुप बैठ सकता है? क्या मोदी चुप बैठ सकता है?
- 26 मई, भुज: सीना तानकर बिहार की जनसभा में, मैंने घोषणा की थी, मैं आतंकवाद के ठिकानों को मिट्टी में मिला दूंगा.”
- 27 मई, गांधीनगर: सिंदूरिया सागर की गर्जना हर जगह दिख रही है.
रोड शो और राष्ट्रवाद का संदेश
प्रधानमंत्री मोदी जो कह रहे हैं और रोड शो में जो नजर आ रहा है, उसे देखकर तस्वीर और साफ होती है. जहां भारतीय जनता पार्टी का झंडा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा चारों तरफ लेकर लोग पहुंचते हैं. जहां प्रधानमंत्री का स्वागत किया जाता है. जहां सेना को पूरी ताकत के साथ कार्यवाही की छूट देने के लिए प्रधानमंत्री का धन्यवाद किया जाता है.
क्या ऑपरेशन सिंदूर से विपक्ष की रणनीति पर असर पड़ रहा है?
क्या विपक्ष को लगता है कि पहलगाम हमले के बाद जिस तरह का जन समर्थन बढ़ सकता है, वह लोकसभा चुनाव के एक साल के भीतर विरोधियों की राजनीति के लिए नुकसानदायक है? और इसीलिए विपक्षी नेता ऑपरेशन सिंदूर को ‘फेल’ बताने लगे हैं?
क्या ऑपरेशन सिंदूर दोहराएगा बालाकोट वाला असर?
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि पुलवामा हमले के बाद भारत की बालाकोट स्ट्राइक ने 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी को उनके बड़े फैसले की वजह से जीत दिलाई थी. जहां चुनाव से पहले सर्वे में तमाम एजेंसियां दावा कर रही थीं कि भारतीय जनता पार्टी बहुमत से दूर है, वहीं बालाकोट स्ट्राइक के बाद राष्ट्रवाद की लहर ने बीजेपी को ऐतिहासिक जीत दिलाई. क्या विपक्ष को आशंका है कि इस बार ऑपरेशन सिंदूर से वही फायदा फिर मोदी को मिल सकता है?
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प्रधानमंत्री के दौरे और आगामी चुनावों का समीकरण
प्रधानमंत्री छह दिन में छह राज्यों के दौरे पर हैं.
- 26 और 27 मई: गुजरात
- 29 मई: पश्चिम बंगाल (अलीपुर द्वार), सिक्किम, पटना
- 30 मई: बिहार (शाहाबाद), उत्तर प्रदेश (कानपुर)
- 31 मई: मध्य प्रदेश (भोपाल)
ये अधिकतर राज्य वे हैं, जहां अगले दो साल में चुनाव होना है.
आगामी राज्य चुनाव: कहां असर डालेगा राष्ट्रवाद?
अगर दो साल में देश में होने वाले राज्यों के चुनाव देखें तो:
- 2025 में बिहार
- 2026 में पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल
- 2027 में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर, गोवा, गुजरात
इन 13 राज्यों में 7 में अभी एनडीए की सरकार है. लोकसभा सीटों के हिसाब से इन राज्यों में 288 में से 135 सीटें एनडीए के पास हैं.
तो क्या इन राज्यों में, जहां विपक्ष का भी प्रभाव रहा है, ऑपरेशन सिंदूर के बाद राष्ट्रवाद की राजनीति और मजबूत होगी?