ताइवान को अपना हिस्सा बताना वाला चीन हमेशा यही मानता है कि वक्त आने पर वो ताइवान पर कब्जा कर लेगा. इसी बीच चीन की सैन्य पत्रिका नेवल एंड मर्चेंट शिप्स ने एक लेख प्रकाशित किया है जिसके अनुसार, चीन ताइवान के प्रमुख इंफ्रास्ट्रक्चर को बर्बाद कर उसे कुचल सकता है. चीन स्थित थिंक टैंक के लेख में कहा गया है कि चीन ताइवान के सिस्टम में सेंध लगाकर उसे इतना कमजोर कर सकता है कि वो बिना किसी विरोध के हथियार डाल दे और चीन में शामिल हो जाए.
लेख में 30 से 40 बेहद महत्वपूर्ण टार्गेट्स का विवरण देते हुए कहा गया है कि अगर बिल्कुल सही समय पर इन टार्गेट्स पर हमला किया जाए तो ताइवान का सभी जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर पूरी तरह तबाह हो जाएगा. इन टार्गेट्स में लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस (एलएनजी) फैसिलिटीज भी शामिल हैं, जहां हाल ही में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA, चीनी सेना) ने मिलिट्री ड्रील किया था.
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीनी पत्रिका के मई के अंक में लिखा है, ‘सिस्टम के ढहने से ताइवान की आजाद सेना की प्रतिरोध करने की इच्छाशक्ति जल्द ही खत्म हो जाएगी और बिना लड़ाई जीत का माहौल तैयार होगा. यह ताइवान मुद्दे को हल करने के लिए कम लागत वाला, उच्च दक्षता वाला सैन्य विकल्प हो सकता है.’
लेख में अनुमान लगाया गया है कि बिजली और पानी की आपूर्ति कई दिनों तक रुक सकती है जिससे ट्रैफिक पूरी तरह ठप्प पड़ सकता है, संचार और इंटरनेट की सुविधा बाधित हो सकती है, मेडिकल सेवाओं में बाधा आ सकती है और खाने-पीने के सामानों की कमी हो सकती है.
लेख में सन त्जु (Sun Tzu) की किताब ‘द आर्ट ऑफ वॉर’ का हवाला देते हुए कहा गया है कि शहरों के इंफ्रास्ट्रक्चर को पूरी तरह से ध्वस्त करने की रणनीति न्यूनतम सैन्य लागत के साथ अधिकतम रिजल्ट दे सकती है. यह बिना युद्ध किए दुश्मन को हराने की सबसे अच्छी स्थिति है.
लेख में बताया गया है कि ताइवान एक ऐसा द्वीप है जो ऊर्जा और वस्तुओं के लिए आयात पर निर्भर है और जो नियमित रूप से भूकंप और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करता रहा है. ऐसे में वो इस तरह की रणनीति का आदर्श टार्गेट है.
चीनी सेना नकली LNG डिपो पर हमला कर वास्तविक हमले की कर रही तैयारी
फिलहाल यह साफ नहीं है चीनी पत्रिका के लेख में जो रणनीति बताई गई है, वो चीन का आधिकारिक सोच है या नहीं लेकिन अप्रैल में चीन की इसी तरह की एक रणनीति देखने को मिली थी जब ताइवान के पास PLA के एक बड़े अभ्यास में एक नकली LNG डिपो पर हमला किया गया था. नकली LNG डिपो ताइवान की सबसे बड़ी LNG डिपो के बराबर था.
लेख के अनुसार, ताइवान की बिजली प्रणाली के लिए 78 प्रतिशत बिजली थर्मल पावर प्लांट्स से आती है. ताइवान 11 प्रतिशत बिजली परमाणु ऊर्जा से हासिल करता है जबकि इसका 98% ईंधन आयात किया जाता है. बिजली ताइवान के इंफ्रास्ट्रक्चर के नेटवर्क का मूल है और यह देखते हुए कि बिजली के लिए यह पूरी तरह से आयात पर निर्भर है, इसे टार्गेट करना आसान हो जाता है.
अप्रैल में चीनी सेना ने स्ट्रेट थंडर 2025ए मिलिट्री ड्रील के दौरान ताइवान के सबसे बड़े एलएनजी टर्मिनल के नकली टार्गेट पर लंबी दूरी के रॉकेट दागे थे.
द्वीप के महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे में 15 बिजली फैसिलिटी और 10 संचार स्टेशन शामिल हैं, जबकि बाकी परिवहन और जल आपूर्ति सिस्टम के इंफ्रास्ट्रक्चर हैं. लेख में कहा गया कि इनमें से 60 प्रतिशत उत्तरी ताइवान में हैं जिससे उन पर स्ट्रैटेजिक तरीके से हमला करना आसान हो जाता है.
लेख में ताइवान के एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर को बर्बाद करने का पूरा विवरण दिया गया है. लेख में दावा किया गया, ‘तीन प्रमुख सबस्टेशनों पर एक साथ हमला होने से उत्तरी ताइवान में पूरी तरह ब्लैकआउट होने की 99.7 प्रतिशत संभावना होगी. और अगर ब्लैकआउट लंबे समय के लिए हुआ तो अन्य इंफ्रास्ट्रक्टर सिस्टम 40 प्रतिशत तेजी से बर्बाद हो सकता है.’
कृत्रिम आपदा पैदा कर ताइवान को कमजोर कर सकता है चीन
लेख में सुझाव दिया गया है कि तूफान या चुनाव जैसे समय पर ताइवान को चीन में मिलाने की यह रणनीति अपनाई जा सकती है.
लेख में कहा गया कि इस तरह से हमला करने का सबसे बेहतरीन समय गर्मियों में तूफान से पहले की दोपहर रहेगी. खासकर तूफान की चेतावनी जारी होने और तूफान आने के बीच के समय में.
इसमें यह भी कहा गया कि चीन विशेष हथियारों का इस्तेमाल कर नकली प्राकृतिक आपदाएं भी पैदा कर सकता है जिससे कि ताइवान के इंफ्रास्ट्रक्चर को नुकसान हो. जैसे बिजली के केबलों को नुकसान पहुंचाने के लिए कृत्रिम भूस्खलन पैदा करना.
ताइवान को अपना हिस्सा मानता है चीन
चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है और उसका मानना है कि भविष्य में ताइवान चीन का हिस्सा बन जाएगा. हालांकि, ताइवान इस बात का विरोध करता है.
चीनी सेना ने ताइवान और ताइवान स्ट्रैट के पास चारों तरफ अपनी सैन्य स्थिति को मजबूत किया है जिसके बाद ताइवान के जबरन एकीकरण की चर्चाएं तेज हैं.
ताइवान के मुख्य अंतरराष्ट्रीय साझेदार अमेरिका समेत अधिकांश देश इस द्वीप को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता नहीं देते हैं. हालांकि, अमेरिका यथास्थिति में किसी भी एकतरफा बदलाव का विरोध करता है और आत्मरक्षा के लिए ताइवान को हथियार मुहैया कराता रहा है.
नीदरलैंड्स का उपनिवेश था ताइवान
चीन और ताइवान के इतिहास की बात करें तो, ताइवान कभी नीदरलैंड्स का उपनिवेश था. 1642-1661 तक यह नीदरलैंड्स के अधीन रहा और उसके बाद चीन के चिंग राजवंश ने 1683 से 1895 तक ताइवान पर शासन किया.
1895 में चीन को जापान के हाथों हार का सामना करना पड़ा. जीत के बाद जापान ने ताइवान को अपना हिस्सा बताया और शासन करने लगा. लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका और ब्रिटेन से हारने के बाद जापान के हाथ से ताइवान चला गया.
अमेरिका और ब्रिटेन ने ताइवान पर खुद शासन करने के बजाए इसे चीन के बड़े राजनेता और मिलिट्री कमांडर चैंग काई शेक को सौंप दिया. चैंग काई उस वक्त चीन के बड़े क्षेत्र पर अपना कब्जा रखते थे लेकिन कुछ ही समय बाद उन्हें चीन की कम्यूनिस्ट सेना से हार मिली.
हार के बाद चैंग चीन से भागकर ताइवान चले आए और लंबे समय तक ताइवान पर शासन किया. 1980 के दशक में चीन ताइवान के रिश्ते बेहतर होने शुरू हुए लेकिन फिर चीन ने ताइवान को अपने में मिलाने का प्रस्ताव दिया जिसे ताइवान ने ठुकरा दिया.
इसके बाद से ही चीन और ताइवान के रिश्ते तनावपूर्ण बने हुए हैं जहां ताइवान पर अकसर यह खतरा मंडराता है कि चीन बलपूर्वक उस पर कब्जा कर लेगा.
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