बांग्लादेश एक बार फिर नेतृत्व संकट से घिर गया है. ढाका की राजनीति संवेदनशील मोड़ पर आ खड़ी हुई है. देश के अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार और नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. मुहम्मद यूनुस अब खुद को बढ़ते दबावों के बीच घिरा पा रहे हैं. सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज़-ज़मान की दो टूक चेतावनी के बाद यूनुस इस्तीफा देने पर विचार कर रहे हैं और प्लान B की तैयारी में जुट गए हैं. कहा जा रहा है कि यूनुस अब सत्ता में बने रहने के लिए सड़कों पर ताकत दिखाने जा रहे हैं. वहीं, राजनीतिक गलियारों और सैन्य हलकों में उनकी मंशा को लेकर गंभीर सवाल उठने लगे हैं.
पिछले साल बांग्लादेश में जनविरोध के बाद सत्ता में उलटफेर हुआ था और 84 साल के यूनुस के हाथों में सत्ता सौंपी गई थी. बांग्लादेश के आर्मी चीफ जनरल वकर-उज-जमान ने रॉयटर्स को दिए इंटरव्यू में कहा था कि मुहम्मद यूनुस अगले डेढ़ साल तक सत्ता में रहेंगे. इसी बीच चुनाव कराए जाएंगे और नई सरकार का गठन होगा.उन्होंने आगे कहा था, हम जल्द ही देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू करना चाहते हैं. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने आर्मी को मजिस्ट्रेट की पावर सौंपी है, जिसके बाद अंदेशा लगाया जा रहा था कि शायद अब सेना के हाथ में देश की सत्ता होगी और दोनों मिलकर सरकार चलाएंगे.
सेना प्रमुख ने साफ किया था कि जब तक अंतरिम सरकार रहेगी, तब तक सेना उसके पीछ रहकर काम करेगी. यह तब तक चलेगा, जब तक कि यूनुस देश में चल रहे सुधारों को पूरा नहीं कर लेते हैं. आर्मी चीफ ने यह भी आश्वासन दिया था कि वे अंतरिम सरकार के साथ हमेशा खड़े रहेंगे, कैसी भी परिस्थिति हो.
अब विवाद क्यों भड़का…
दरअसल, सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज़-ज़मान ने यूनुस के सुधार एजेंडे को खारिज कर दिया है और दिसंबर 2025 तक चुनाव कराने का आह्वान किया. जनरल वाकर-उज़-ज़मान ने पहली बार सार्वजनिक तौर पर कहा कि अंतरिम सरकार का काम सिर्फ चुनाव कराना है, नीतिगत निर्णय लेना नहीं. सैन्य मामलों में हस्तक्षेप, आंतरिक सुरक्षा में एकपक्षीय निर्णय और बाहरी शक्तियों के दबाव को अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. सेना को हर रणनीतिक और सुरक्षा नीति में विश्वसनीय साझेदार की तरह शामिल किया जाना चाहिए. यह बयान यूनुस की सत्ता को खुली चुनौती के रूप में देखा गया.
ज़मान ने इस बात पर भी जोर दिया कि अंतरिम सरकार कोई भी ऐसा महत्वपूर्ण निर्णय ना ले, जिससे बांग्लादेश की स्थिरता और संप्रभुता पर असर पड़े. ऐसे मुद्दों को भविष्य में निर्वाचित सरकार पर छोड़ दिया जाए. बुधवार को सेना प्रमुख ने स्पष्ट किया कि अब और देरी नहीं चलेगी. सेना को नजरअंदाज कर रणनीतिक फैसले नहीं लिए जा सकते हैं.
सेना प्रमुख ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि वे सैन्य अधिग्रहण के खिलाफ हैं. वे यूनुस से बस यही उम्मीद करते हैं कि वे स्वतंत्र, निष्पक्ष और समावेशी चुनाव करवाएं ताकि सत्ता का सुचारू और शांतिपूर्ण हस्तांतरण निर्वाचित सरकार को हो सके, जिसके बाद सेना वापस अपने बैरक में जा सकती है. बुधवार को उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि सेना अब भीड़तंत्र और अराजकता, अंतरिम सरकार द्वारा सैन्य मामलों में किसी भी तरह का हस्तक्षेप और बांग्लादेश की संप्रभुता और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण निर्णयों में सेना को दरकिनार करने के किसी भी प्रयास को बर्दाश्त नहीं करेगी. उन्होंने जोर देकर कहा कि सभी सुरक्षा और रणनीतिक मामलों में सैन्य नेतृत्व से सलाह ली जानी चाहिए और पीठ पीछे कुछ भी नहीं किया जाना चाहिए.
सेना ने बढ़ा दी यूनुस की टेंशन
जानकारों का कहना है कि ज़मान का भाषण यूनुस की टेंशन बढ़ाने वाला है. यूनुस चुनावों में उतरे बिना सत्ता में बने रहने की उम्मीद पाल रहे है. ऐसे में अब वे सत्ता बनाए रखने के लिए सड़कों की ताकत पर भरोसा करते दिखाई दे रहे हैं. गुरुवार को नेशनल सिटिज़न्स पार्टी (NCP) के नेता नाहिद इस्लाम ने मीडिया से कहा कि यूनुस इस्तीफे पर विचार कर रहे हैं. उनके मुताबिक, बुधवार को जो कुछ हुआ, उसके बाद डॉ. यूनुस को लग रहा है कि वो अब इस भूमिका में काम नहीं कर सकते. हालांकि यूनुस ने आधिकारिक तौर पर अभी तक कोई इस्तीफा नहीं दिया है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह एक रणनीतिक भावनात्मक कार्ड है, जिससे वे अपने समर्थकों को सक्रिय और आंदोलित रख सकें.
शाहबाग में जुटेगा ‘यूनुस मार्च’, सड़क से शक्ति प्रदर्शन की तैयारी
शुक्रवार को यूनुस ने अपने समर्थकों की ओर रुख किया. विशेष रूप से कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों जमात-ए-इस्लामी और हिफाज़त-ए-इस्लाम की तरफ, जो मदरसों के बड़े छात्र समूहों और यहां तक कि ढाका के अंडरवर्ल्ड के अपराधियों को भी एकजुट करने की क्षमता रखते हैं. ठीक उसी समय सेना के कुछ कमांडरों द्वारा कथित रूप से पर्चे बांटे गए, जिनमें गैर-निर्वाचित अंतरिम सरकार पर तीखा हमला किया गया. इन पर्चों में आरोप लगाया गया कि यह सरकार पिछले वर्ष के लोकतंत्र समर्थक आंदोलनों की भावना के साथ विश्वासघात कर रही है.
शाहबाग में आज ‘March for Yunus’
यूनुस समर्थकों ने शनिवार को ढाका के ऐतिहासिक शाहबाग चौराहे पर ‘March for Yunus’ नाम से एक विशाल जनसभा की घोषणा की है. समर्थकों की तरफ से पोस्टर लगाए जा रहे हैं और सोशल मीडिया पर नारे दिए जा रहे हैं. ‘पांच साल तक यूनुस को सत्ता में रखा जाए’, ‘पहले सुधार, फिर चुनाव’ जैसे नारे दिए जा रहे हैं.
ढाका में शाहबाग चर्चित विरोध स्थल रहा है. ये जगह कभी 1971 के युद्ध अपराधियों के खिलाफ जनक्रांति का केंद्र थी. आज उन्हीं कट्टरपंथी ताकतों जमात-ए-इस्लामी और हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम के द्वारा यूनुस के समर्थन में प्रदर्शन का मंच बन रही है. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि ये संगठन यूनुस के चेहरे का इस्तेमाल कर बांग्लादेश को इस्लामी राष्ट्र में बदलने की योजना बना रहे हैं. इसके लिए वे 1972 के धर्मनिरपेक्ष संविधान को समाप्त करने और ‘जुलाई डिक्लेरेशन’ के जरिए यूनुस को राष्ट्रपति बनाए रखने का प्रस्ताव दे सकते हैं.
एक्टिव हो गया यूनुस खेमा
डॉ. यूनुस के विशेष सलाहकार फैज़ तैयब ने फेसबुक पर लिखा, सेना को राजनीति में दखल नहीं देना चाहिए. यूनुस साहब को सुधारों को पूरा करने का मौका मिलना चाहिए. वहीं, सलाहकार परिषद की सदस्य सयैदा रिज़वाना ने कहा, हम सिर्फ चुनाव के लिए नहीं आए हैं. हम लोकतंत्र की बहाली और फासीवाद से न्याय के लिए आए हैं.
सेना के भीतर असंतोष?
कुछ रिपोर्टों के अनुसार, सेना के भीतर निचले स्तर के अधिकारी सरकार से नाराज हैं. कुछ पर्चे और घोषणाएं सामने आईं, जिनमें कहा गया कि हम अब और बर्दाश्त नहीं करेंगे कि हमारी सेना को एक गैर-निर्वाचित सरकार के लिए गाली दी जाए या जनता के खिलाफ इस्तेमाल किया जाए. एक पर्चे में लिखा था, अब और नहीं… सेना इस राष्ट्र की रक्षक है, किसी भी ऐसी जनविरोधी प्रतिशोध मुहिम को सहन नहीं करेगी, जो देश को टुकड़ों में बांट रही है और उसे अराजकता व अंधकार की ओर धकेल रही है.
पूर्व सेना प्रमुख इकबाल करीम भुइयां ने आगाह किया कि 2006 के जैसे हालात दोबारा न बनने दें. यानी जब सेना समर्थित सरकार चुनाव टालती रही थी और अंततः वैश्विक दबाव में चुनाव कराए गए थे.
‘नया किम जोंग उन’ बनने की चाह?
यूनुस पर आरोप है कि वे बांग्लादेश को सिंगापुर जैसा बनाना चाहते हैं, लेकिन चुनाव के बिना. उनके आलोचक उन्हें ‘बिना भीगे नहाने वाला व्यक्ति’ कहते हैं. यानी वे सत्ता चाहते हैं, लेकिन जनता की अदालत से गुजरने को तैयार नहीं हैं. यूनुस के आलोचकों का कहना है कि वे बिना चुनाव जीते सत्ता में बने रहना चाहते हैं, ठीक जैसे उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन. जबकि समर्थक कहते हैं कि बांग्लादेश को सिंगापुर बनाने का सपना तभी पूरा होगा, जब यूनुस को निर्विरोध सत्ता में रहने दिया जाए. वहीं, पश्चिमी देशों का दोहरा रवैया भी उजागर होने लगा है. जो पहले हसीना को लोकतंत्र का हत्यारा कहते थे, वे अब एक गैर-निर्वाचित नेता को समर्थन दे रहे हैं.
मिलिट्री और सरकार के बीच टकराव क्यों?
सूत्रों के अनुसार, हाल ही में सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज़-ज़मान ने यूनुस से मुलाकात कर दिसंबर में चुनाव कराने की मांग दोहराई और म्यांमार के रखाइन राज्य को लेकर प्रस्तावित ‘मानवीय सहायता गलियारे’ पर असहमति जताई. इसके बाद सेना प्रमुख ने अगले दिन अपने वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक भी बुलाई और बताया कि उन्हें कई रणनीतिक नीतिगत निर्णयों की जानकारी नहीं दी जा रही है, जबकि सेना मौजूदा संकट में कानून-व्यवस्था बनाए रखने में भूमिका निभा रही है. रिपोर्ट के मुताबिक, यूनुस ने कैबिनेट बैठक में यह संकेत दिया कि यदि उन्हें राजनीतिक दलों का समर्थन नहीं मिला तो वे इस्तीफा दे सकते हैं. हालांकि, उनके सहयोगियों ने उन्हें ऐसा करने से रोका.
जन आंदोलन के बाद सत्ता में आए थे यूनुस
पिछले वर्ष जुलाई में छात्र आंदोलन ‘Students Against Discrimination (SAD)’ के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर विरोध हुआ था, जिसके चलते 5 अगस्त 2024 को शेख हसीना की सरकार को इस्तीफा देना पड़ा था. इसके तीन दिन बाद नोबेल शांति पुरस्कार विजेता यूनुस को पेरिस से बुलाकर अंतरिम सरकार का मुखिया बनाया गया था. यूनुस की सरकार ने हाल ही में शेख हसीना की आवामी लीग को आतंकवाद-रोधी कानून के तहत भंग कर दिया और कई नेताओं को गिरफ्तार किया है. वहीं, विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) ने जल्द चुनाव कराने की मांग के साथ बड़ी रैली की है.
दूसरी ओर NCP चाहती है कि पहले यूनुस की सुधार योजनाएं लागू हों, फिर चुनाव हो. वहीं, BNP ने यूनुस कैबिनेट से छात्र प्रतिनिधियों को हटाने की मांग की है. इधर, जमात-ए-इस्लामी के प्रमुख शफीकुर रहमान ने यूनुस से अपील की है कि वे सभी राजनीतिक दलों की एक बैठक बुलाकर मौजूदा संकट का हल निकालें.