बीते बुधवार की रात दिल्ली से श्रीनगर जा रही इंडिगो की एक फ्लाइट में 220 से ज्यादा यात्री सवार थे. इस फ्लाइट को रास्ते में भयंकर एयर टर्बुलेंस का सामना करना पड़ा. यह टर्बुलेंस इतना भयानक था कि विमान एक मिनट से कम समय में ही करीब 1200 मीटर यानी एक किलोमीटर से ज्यादा नीचे आ गया था. यह जानकारी Flightradar24 नाम की एक वेबसाइट से मिले डेटा के आधार पर सामने आई है, जो हवाई जहाजों की उड़ान को ट्रैक करती है.
क्या हुआ था उस रात?
इंडिगो की फ्लाइट IGO262E दिल्ली से श्रीनगर जा रही थी. यह घटना तब हुई जब विमान पंजाब के गुरदासपुर जिले के ऊपर से गुजर रहा था. Flightradar24 के डेटा के मुताबिक, शाम 5:57 बजे विमान पास्सनवाल गांव के ऊपर 35,825 फीट (लगभग 11 किलोमीटर) की ऊंचाई पर उड़ रहा था. लेकिन सिर्फ एक मिनट बाद, यानी 5:58 बजे, जब यह जगतपुर कलां गांव के ऊपर पहुंचा, तब इसकी ऊंचाई घटकर 31,950 फीट (लगभग 9.7 किलोमीटर) रह गई. यानी, एक मिनट में विमान करीब 3,875 फीट नीचे आ गया. इस दौरान विमान ने 20 किलोमीटर की दूरी तय की थी.
इतनी तेजी से विमान का नीचे आना सामान्य नहीं होता है. इस समय विमान ओलावृष्टि (हेलस्टॉर्म) वाले इलाके से गुजर रहा था, जहां हवा के तेज झटके और खराब मौसम ने हालात को और मुश्किल बना दिया. जब विमान पास्सनवाल गांव के ऊपर था, तब इसकी गति लगभग 907 किलोमीटर प्रति घंटा थी. लेकिन जैसे ही यह जगतपुर कलां के ऊपर पहुंचा और ऊंचाई कम हुई, इसकी गति बढ़कर 938 किलोमीटर प्रति घंटा हो गई. यानी, ऊंचाई कम होने के साथ-साथ विमान की रफ्तार भी बढ़ गई थी.
डेटा की सटीकता पर सवाल
हालांकि, फ्लाइटराडार24 जैसे (थर्ड-पार्टी) स्रोतों से मिलने वाला डेटा हमेशा पूरी तरह सटीक नहीं होता. ऐसा इसलिए, क्योंकि ये वेबसाइटें विमानों से सीधे डेटा नहीं लेतीं, बल्कि रडार और अन्य उपकरणों के जरिए जानकारी इकट्ठा करती हैं. इसमें कुछ गलतियां हो सकती हैं. फिर भी, इस डेटा से यह साफ है कि इंडिगो की उड़ान को बहुत गंभीर स्थिति का सामना करना पड़ा.
DGCA का बयान
DGCA, ने इस घटना पर बयान जारी किया है. DGCA के मुताबिक, हवाई झटकों के दौरान विमान की नीचे आने की गति (डिसेंट रेट) 8,500 फीट प्रति मिनट तक पहुंच गई थी. यह बहुत ज्यादा है, क्योंकि सामान्य तौर पर इस तरह के विमान (एयरबस 321 नियो) को 1,500 से 2,000 फीट प्रति मिनट की गति से नीचे उतरना सुरक्षित माना जाता है. इतनी तेज गति से नीचे आने की वजह से चालक दल (पायलट और को-पायलट) को विमान को मैन्युअली उड़ाना पड़ा, यानी ऑटोपायलट सिस्टम की जगह उन्होंने खुद विमान को नियंत्रित किया. यह तब तक करना पड़ा, जब तक विमान उस खराब मौसम वाले इलाके से बाहर नहीं निकल गया.
विमान का प्रकार और उसकी क्षमता
जिस विमान में यह घटना हुई, वह एयरबस 321 नियो था. यह एक आधुनिक और सुरक्षित विमान है, जो आमतौर पर 180 से 230 यात्रियों को ले जा सकता है. इसकी डिजाइन ऐसी है कि यह सामान्य परिस्थितियों में 1,500 से 2,000 फीट प्रति मिनट की गति से सुरक्षित रूप से नीचे उतर सकता है. लेकिन इस घटना में हवाई झटके इतने तेज थे कि विमान की नीचे आने की गति सामान्य से कहीं ज्यादा थी. फिर भी, चालक दल ने अपनी सूझबूझ से स्थिति को संभाला और सभी यात्रियों को सुरक्षित रखा.
मार्ग बदलने की कोशिश और चुनौतियां
जब विमान को खराब मौसम और ओलावृष्टि का सामना करना पड़ा, तो चालक दल ने हालात से बचने के लिए मार्ग बदलने की कोशिश की. उन्होंने भारतीय वायुसेना (IAF) के उत्तरी नियंत्रण केंद्र से संपर्क करके अंतरराष्ट्रीय सीमा (पाकिस्तान की ओर) की तरफ मार्ग बदलने की अनुमति मांगी. लेकिन यह अनुमति नहीं मिली. इसके बाद, चालक दल ने पाकिस्तान के लाहौर वायु नियंत्रण केंद्र से संपर्क किया, ताकि उनके हवाई क्षेत्र में प्रवेश करके खराब मौसम से बच सकें. लेकिन लाहौर ने भी अनुमति देने से इनकार कर दिया.
यहां यह समझना जरूरी है कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद से पाकिस्तान ने अपना हवाई क्षेत्र भारतीय विमानों के लिए बंद कर रखा है. इस वजह से विमान को कोई वैकल्पिक रास्ता नहीं मिल सका.
चालक दल ने शुरू में दिल्ली वापस लौटने की योजना बनाई, क्योंकि खराब मौसम के कारण श्रीनगर की ओर जाना जोखिम भरा लग रहा था. लेकिन बाद में उन्होंने फैसला किया कि वे खराब मौसम के बीच से गुजरकर श्रीनगर में ही उतरने की कोशिश करेंगे. यह एक मुश्किल फैसला था, क्योंकि मौसम बहुत खराब था और विमान को पहले ही भयंकर हवाई झटकों का सामना करना पड़ चुका था.
भारतीय वायुसेना ने इस मुश्किल स्थिति में विमान की मदद की. सूत्रों के मुताबिक, जब लाहौर ने विमान को अपने हवाई क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति नहीं दी, तब भारतीय वायुसेना ने दिल्ली क्षेत्र के नियंत्रण केंद्र के जरिए विमान को सहायता दी. उन्होंने लाहौर के वायु नियंत्रण केंद्र की संपर्क आवृत्तियां (फ्रीक्वेंसी) उपलब्ध कराईं, ताकि चालक दल वहां से संपर्क कर सके. जब लाहौर ने अनुमति नहीं दी और विमान श्रीनगर की ओर बढ़ा, तब वायुसेना ने विमान को सही दिशा दिखाने (नेविगेशन) और उसकी गति की जानकारी देकर श्रीनगर हवाई अड्डे पर सुरक्षित उतरने में मदद की.
सभी मुश्किलों के बावजूद, इंडिगो का यह विमान आखिरकार श्रीनगर हवाई अड्डे पर सुरक्षित उतर गया. यह चालक दल की कुशलता और भारतीय वायुसेना की त्वरित मदद का नतीजा था. इस घटना में किसी भी यात्री को चोट नहीं आई, और विमान को भी कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ.
हवाई झटके क्या होते हैं?
हवाई झटके या टर्बुलेंस तब होता है, जब हवा में अचानक तेज बदलाव आते हैं. यह मौसम की स्थिति, जैसे तूफान, ओलावृष्टि या तेज हवाओं की वजह से हो सकता है. हल्के झटके तो आम बात हैं, लेकिन इस मामले में झटके इतने तेज थे कि विमान की ऊंचाई में भारी गिरावट आई. ऐसे हालात में पायलटों को बहुत सावधानी और कौशल से विमान को नियंत्रित करना पड़ता है.